Thursday, 8 December 2011

::मैं मुस्कान हूँ::

होंठो से है नाता मेरा ,हर ख़ुशी में झलकती हूँ
चाहे जो मुझको पाना , मैं उनके साथ रहना चाहती हूँ
दुआओं में सबकी ,मैं पहचान अपनी देखती हूँ
लबों पर सज के मैं पहचान ख़ुशी की जताती हूँ
मायूसी जब छा जाये,तो पल भर के लिए गुमनाम हो जाती हूँ 
पर क्षण भर की ख़ुशी में फिर से महक जाती हूँ
गरीब हो या अमीर सब की मैं चहेती हूँ
हिन्दू हो या मुस्लिम,जाति मैं ना देखती हूँ 
मुस्कान हूँ मैं सब को खुश रखना चाहती हूँ
पर एक दुसरे से बैर जो रखते ,तो मैं मायूस होकर चली जाती हूँ
:- राजू सीरवी (राठौड़)

Monday, 5 December 2011

::खुद की दृष्टि बदलो ,दुनिया को नहीं::

एक अमीर व्यक्ति अपनी आँखों के गंभीर दर्द से बहुत परेशान था | उसने कई डॉक्टरो से इलाज लिया पर सब बेअसर रहा | डॉक्टर की बताई दवाई लेता रहा , सैकड़ो इंजेक्शन लगवाता रहा , पर उसकी आँखों के दर्द से निजात मिलना तो दूर उल्टा दर्द और भी ज्यादा होने लगा | आखिर में वह अमीर व्यक्ति  एक साधू से मिला जो ऐसे रोगियों के उपचार के लिए विशेषज्ञ माना जाता है | उसने अपनी समस्या साधू को बताई | साधू ने उस अमीर व्यक्ति की उसकी समस्या को समझा और कहा कि कुछ समय के लिए वह केवल हरे रंग पर अपना ध्यान केन्द्रित करे , किसी और रंग पर बिलकुल धयन न दे | अमीर व्यक्ति ने  एक साथ  बहुत से बैरल हरा रंग माँगा लिया और हर वस्ति जिस पर उसकी आँख पड़ती उसे हरे रंग में रंगवा देता , जैसा कि कि सदु ने कहा कि वोह सिर्फ और सिर्फ हरे रंग पर देखे | जब साधू कुछ दिनों बाद यात्रा से वापस उसके पास आये तो उस अमीर के नौकर ने हरे रंग कि बाल्टी को साधू पर डाल दिया ताकि मालिक के पास जाये तो मालिक को साधू भी हरा रंग का ही दिखे नहीं तो मालिक कि आंखे फिर दर्द करने लगेगी | साधू ने अमीर के नौकर को फटकारा कि यह क्या किया ! नौकर ने कहा " मालिक कि आज्ञा का पालन कर रहे है , मालिक ने कहा जिस वास्तु पर उनकी नज़र पड़े उसे हरे रंग से रंग दिया जाये | साधू को हंसी आ गयी | साधू उस अमीर व्यक्ति के पास गए और हंस कर कहा आप इतने रंग रोगन का खर्चा करने के बजाय कोई सस्ता हरे रंग का चश्मा ला सकते थे ,, इन दीवारों ,पेड़ो , बर्तनों और अन्य सभी वस्तुओ  को हरा करने कि जरुरत भी कहा थी ! अगर अपने अपने dimag से सोच समझ कर काम किया होता तो आपका इतना बड़ा खर्चा बच सकता था |
आप पूरी दुनिया को हरे रंग से नहीं  पुतवा सकते | हमें अपनी दृष्टि को बदलना है दुनिया देखने के लिए न कि दुनिया को बदलना अपनी दृष्टि को दिखाने के लिए | 
:- राजू सीरवी (राठौड़)

Sunday, 4 December 2011

::आज मौसम बहुत अच्छा है पर मैं देख नहीं सकता::

अक्सर हम विकलांग और अपंग लोगो को उपेक्षित करते या उनको नज़र अंदाज़ कर देते है | उनकी हम सहायता तो करते या नहीं भी पर उनके लिए सकारात्मक काम करने से कतराते है | हा अपनी पेट पूजा के लिए वो लोग कई जतन करते है ,पर कुछ ऐसे भी होते जो पेट की भूख मिटने में भी शक्षम नहीं हो सकते | एक लड़का जिसकी आँखों की रोशनी नहीं है , वोह सड़क के किनारे कटोरा लिए और हाथ में एक ठप्पे पर लिखवाया कि " अँधा हूँ मेरी सहायता करो " अक्सर लोग उनके कटोरे में कुछ सिक्के जरुर दल देते है | वोह सड़क किनारे हाथ में वो ठप्पा लिए बेठा, कुछ लोगो ने उसके कटोरे में कुछ सिक्के डाले , एक व्यक्ति उधर से गुजर रहा था उसने उस लड़के को देखा और उसके हाथ में उस ठप्पे को भी जिस पर लिखा " अँधा हूँ मेरी सहायता करो " उस व्यक्ति ने ने भी उसके कटोरे में सिक्का तो डाला पर उसने उस लड़के से वोह ठप्पा लेकर ठप्पे के दूसरी तरफ कुछ लिख कर चला गया | शाम के वक्त जब वोह व्यक्ति वापस उस लड़के के पास आया तो उसने देखा उसके कटोरे में बहुत से सिक्के थे | उस व्यक्ति ने लड़के के पास बैठ कर कहा " आज तो तुम्हारे पास बहुत से सिक्के हो गए | लड़के ने कहा " श्रीमान क्या अपने ही सुबह में मेरे ठप्पे पर कुछ बदलाव किया जिसकी वजह से मुझे आज इतने सिक्के मिले | हाँ बेटा " उस व्यक्ति ने कहा | आपके क्या लिखा -लड़के ने पूछा | तुम्हारे और मेरे लिखने का मकसद एक ही है पर नजरिया अलग है , तुमने लिखा " अँधा हूँ मेरी सहायता करो " और मैंने लिखा " आज मौसम बहुत अच्छा है पर मैं देख नहीं सकता " | इस कहानी से मेरा मकसद यही है कि हमको किसी विकलांग या अपंग की उपेक्षा के बजाय सहायता निस्वार्थ भाव से करनी चाहिए | पर उसमे बहुत से ठगी भी होते जैसे " कोहू राम नाम जपे कोहू रात धुणी तपे कोहू राम के नाम पर ठगे सारी दुनिया को | तो ऐसो को सबक भी सिखाना चाहिए | 

:-राजू सीरवी (राठौड़)

::भाग्य का निर्माण::

विचारो से शब्द बनाते है
शब्दों से कार्यशैली बनती है
कार्यशैली से आदत बनती है
आदत से चरित्र का निर्माण होता है
चरित्र से भाग्य का निर्माण होता है
:-राजू सीरवी (राठौड़)

Saturday, 3 December 2011

::भावना गरीब है तो कुछ भी नहीं है हमारे पास::

एक दिन एक पिता और उसका आमिर परिवार कुछ खास उदेश्य के साथ भ्रमण के लिए गए | वोह अपने बेटे को दिखाना चाहते कि गरीब लोग कैसे रहते है | इसके लिए वोह एक दिन और एक रात एक बहुत ही गरीब के घर रहे जो खेत में था | जब वोह सब यात्रा से वापस आये अपने घर तो पिता ने अपने बेटे से पूछा " यात्रा कैसी रही बेटा " .. बेटे ने कहा " बहुत ही अच्छी रही पिताजी " .. तुमने देखा गरीब लोग किस तरह से रहते है ? पिता ने पूछा .. "हाँ पिताजी " बेटे ने कहा | तो बेटा तुमने उनसे क्या सीखा | बेटे ने कहा -पिताजी मैंने देखा  है कि हमारे पास एक कुत्ता है इनके पास ४ है | हमारा एक छोटा बगीचा है इनके खेत हमारे बगीचों से भी अच्छे है | हमारे बगीचे में एक आयातित बल्ब लगा है रौशनी के लिए पर इनके पास सितारों की रौशनी है , हमारा आंगन उस यार्ड तक सिमित है पर उनका पूरा वह एरिया , हम सब्जी बाज़ार से खरीदते है , वह खुद सब्जी की पैदावार करते है | दूध ,पानी भी हम मोल लेते है पर उनको यह सब खरीदने की जरुरत नहीं | वह गरीब भले ही हो पर हर वस्तु से तृप्त है खुश है  पर हम नहीं ,,, हमको जितना है उससे ज्यादा पाने का लालच है |छोटे लड़के ने अपनी बाते समाप्त की | लड़के के पिता अवाक् थे | लड़के ने उसके पिता से कहा " धन्यवाद् पिताजी कि अपने मुझे दिखाया  " कितने गरीब है हम  | क्या यह सही नहीं कि यह सब हमारे देखने के नज़रिए पर निर्भर करता है ? यदि हम परिवार ,हेल्थ ,अच्छे स्वाभाव , दोस्ती ,प्यार और जीवन के प्रति सकारात्मक रवैया रखते है तो हमको सब कुछ मिल गया समझो | हम यह सब खरीद नहीं सकते | हम हमारे भविष्य के लिए हर कोई वस्तु सामग्री या सम्पति अनेको की कल्पना कर सकते है पर अगर हमारी भावना गरीब है तो हमारे पास सब कुछ होकर भी कुछ नहीं है 
:- राजू सीरवी (राठौड़)