Tuesday, 7 November 2017

Virtual दुनिया की चोट असल ज़िन्दगी पर न ठोके

एक बात पूछना चाहता हूँ ,

क्या किसी के विचारों का विरोध करना व्यक्तिगत विरोध माना जायेगा ??

फिर तो हर कोई बंधु अपनी पोस्ट के नीचे #नोट अवश्य लिखा करे कि

"इस पोस्ट पर सिर्फ मेरी पसंद के कमेंट ही लिखा करे "

अरे यह सोशल मीडिया है हर इंसान की अपनी अपनी थ्योरी है अपनी अपनी विचारधारा है ,

मतभेद को मनभेद क्यों बनाते ?
संयम रखो ,धैर्य से सब के विचारों को पढ़ो , अभद्र शब्दो लिख कर फूहड़ता का परिचय नही देना चाहिए ।

सोशल मीडिया पर कुछ लोग ऐसे भी होते जब उनके पर डिबेट के लिए जवाब नही हो तो अभद्र शब्द ,जबरदस्ती पार्टी पक्ष के सर्टिफिकेट थमाने लग जाते,
अरे भाई जब तर्कसंगत जवाब नही तो इग्नोर कर दो न ,छोटे थोड़ी हो जाओगे .. पर कम से कम शब्दों की मर्यादा का तो ख्याल रखो , हिंदी को तो शर्मसार मत करो ।

मैं सिर्फ यही कहना चाहता हूँ कि यह सोशल मीडिया है यहां भांति भांति के लोग है सबकी अपनी अपनी सोच है ,कोई भी डिबेट हो स्वच्छ डिबेट हो ,सही शब्दो का चयन करो ,शुध्द शब्द लिखो ताकि सोशल मीडिया का सदुपयोग हो सके,

Wednesday, 9 August 2017

राजनीति

पिछले तीन-चार वर्षों में हमारे देश की राजनीतिक उथल-पुथल से आम आदमी का कुछ भला हुआ हो या नहीं हुआ हो, शान्तिपूर्ण जीवन के लिए एक नकारात्मक संदेश ने प्रायः सभी के मन में स्थान बनाया है और वह संदेश है, "भय का संदेश". सत्ता हासिल करने के लिए सबकुछ जायज है, छल-कपट-झूठ, गाली-गलौच, जनता को बरगलाने के लिए जुमलेबाजी, धनबल-भुजबल-सत्ता का दुरुपयोग, सरकारी एजंसियों का दुरुपयोग, न्यायपालिका का दुरुपयोग, मीडिया की खरीद-फरोख्त, चरित्र हनन, लोगों की खरीद-फरोख्त, पार्टियों में तोडफोड, धार्मिक भावनाओं से खिलवाड, उन्माद फैलाना, भीडतंत्र के माध्यम से मार-काट करना और ऐसा कुछ भी....किसी भी हद तक करना, जिससे अपनी सत्ता कायम हो जाए...। अब जब राजनीतिक सत्ता के लिए यह सब जायज ठहरता है तो फिर तथाकथित प्यार में भी यह सब जायज है, क्योंकि वहां भी एक जंग है, न्यायपालिका में भी फिर सब जायज है, क्योंकि वहां भी जंग है, व्यापार में भी इसी तर्क से सबकुछ जायज ठहराया जा सकता है, रोजगार या पेट पालने के लिए तो फिर सब जायज होना लाजिमी है, समाज में और अपने मोहल्ले में भी फिर वर्चस्व कायम करने के लिए सबकुछ जायज.....! परिणाम.....सब ओर अराजकता....! सोचिए जरा....! आने वाले समय में क्या होने वाला है....घरों में घुसकर लूट-खसोट, सरे आम मारपीट-कत्ल-बलात्कार....! क्या आपको यह सब मंजूर है....? यह कैसी चाल...कैसा चरित्र...और कैसा वीभत्स चेहरा है...?
Copied

Tuesday, 8 August 2017

ईश्वर पर यकीन रखो ...जो लिखा है वो मिलेगा।
खुद पर यकीन रखो ...ईश्वर वो लिखेगा जो तुम चाहोगे ।

जंगल में आग लगी है ,अगर अंधे और लंगड़े नहीं मिले तो खतरा भारी है ।

समाज में कई महत्वपूर्ण बदलाव अतिआवश्यक है
आज समाज में कई समस्याएं है जिनमे तलाक,
बुजुर्गो का उपेक्षा,अपनों से दूरियां,युवा पीढ़ी का गुमराह होना ... ऐसी कई समस्याएं है

प्रेम सबकुछ सह लेता है पर उपेक्षा नहीं सह सकता.बदलाव की इस बयार को समय रहते संज्ञान नहीं लिया तो यह विकट समस्या बन कर समाज को तहस नहस कर देगी ।

." घर को लगा दी आग घर के चिराग ने " यह कहकर दूसरों के ऊपर तरस खाने की जगह समाज के लोगों को आगे बढ़कर समाज उत्थान में भागीदार बनाना पड़ेगा ,
अन्यथा..... आने वाला समय हमें माफ नहीं करेगा ।
समस्याएं विकराल बने उससे पहले इन पर गौर कर काबू में कर लिया जाना आवश्यक है ।

वस्तुतः पुरानी और नई पीढ़ियों का संघर्ष नूतन और पुरातन का संघर्ष है,जो थोड़ी बहुत मात्रा में सदैव रहता है,
मगर वर्तमान समय में अचानक भारी परिवर्तन हो जाने के कारण पीढ़ियों में टकराव की परिस्थितियाँ अधिक स्पष्ट और प्रभावशाली  बन गई है ,जिसमें संघर्ष को और अधिक बल मिला है ।

युवा जीने की क्षमता तो रखता है,लेकिन अनुभव नहीं रखता या बुजुर्गो से कम,

बुजुर्ग अनुभव रखते है ,लेकिन जीने की जोश की क्षमता खो
गई होती है ,ऊर्जा खो गई होती है ।

जरुरत है कि दोनों मिल जाएँ ।

जंगल में आग लगी है ,अगर अंधे और लंगड़े नहीं मिले तो खतरा भारी है ।

ना तो भौतिकवादी अकेला बच सकता है और ना ही  अध्यात्मवादी अकेला बच सकता है।

अतः समन्वय में ही सारी मनुष्यता का बचाव है ।

विजय बहुर्मुखी होता है , पराजय अंतर्मुखी ।
अतः हमें सशर्त आत्म -मंथन की जरूरत है।

Saturday, 20 August 2016

समाज

सीरवी कौम को पीछे धकेलने में सीरवी का योगदान:

आज की चर्चा का विषय यही है,हो सकता है कई बुद्दिजीवी महानुभावो को अटपटा और कुछ को बुरा लगे परन्तु आज इस विषय पर थोडा गौर कर लिया जाए. आज अपने सीरवी समाज के बढेर व उससे जुड़े संगठन,मंडली और पता नही क्या क्या सभाएं बन चुकी / बन रहेे हैं । 
लगभग सभी इतने हाईटेक हैं कि बिरादरी का सारा उत्थान कीबोर्ड के द्वारा सोशल प्लेटफार्म पर ही कर दे रहे हैं. 
किधर भी निकल जाओ किसी न किसी सीरवी संगठन के पदाधिकारी से आप टकरा जाओगे. कोई मंत्री कोई सचिव कोई अध्यक्ष कोई उपाध्यक्ष तरह तरह के पदाधिकारी मगर कार्यकता कोई नहीं.. अगर है भी तो कार्य मगर कर्ता सिर्फ नाम के, जीमण जीमाने , स्वागत करवाने ,जयकारे लगवाने । 
आजकल काबिल नहीं होने के बावजूद भी कोई भी पदाधिकारी बन सकता बशर्ते काबिलियत से ज्यादा आर्थिक रूप से मजबूत हो, और जब आर्थिक रूप से मजबूत हो तो समर्थक तो पहले से तैयार (चापलूसी किश्म के लोग) फिर एक स्मार्ट फ़ोन हो जिसके थ्रू ज्यादा कुछ नहीं करना बस फोटो खीचकर सोशल प्लेटफार्म पर चिपका दो, I am with फलाना साहब , selfi with ढिमका जी |
असल में जो है वो दिखने में feeling ashamed होने वाले अपने Leval को बड़ा करने के लिए बड़ी हस्तियों से दूर की रिश्तेदारी निकालने की काबिलियत भी रखते हों.
इन बेचारो ने आजकल अपने कंधो पर दो दो जिम्मेदारियां उठा रखी हैं, बिरादरी का उत्थान करने के साथ साथ ये धर्मभीरु युवा देश और धर्म की भी रक्षा कर रहे हैं (only on social platform अगर सीरवी हो तो यह लाइक करो, देखते कितने हिन्दू है कमेंट करो, पागल हो तो Share करो)( it is good if doing #FROM social platform for needful pplz)
आजकल समाजी अपनी संस्कृति को थोथी संस्कृति में बदलने को आमादा हैं , इनमे से बहुतेरे ठेकेदार ऐसे भी हैं जो शहरी पृष्ठभूमि से हैं और अपनी असली  संस्कृति की जड़ो से कटे हुए हैं वो रात दिन हां "सा" ना " सा" समाज -समाज  चिल्लाया करते हैं (फौरा मान सम्मान) जबकि जड़ो से जुड़ा हुआ समाजी सबका सम्मान करता है, कोई भेदभाव नहीं रखते । एक ग्रामीण  समाजी जो खेती किसानी या पशुपालन से जुड़ा हुआ है उसको अपने बिरादर (चाहे एक बीघे जमीन वाला हो या सौ बीघा का मालिक ) के यहाँ अपनापन महसूस होता है ना कि किसी तथाकथित सेठ के यहाँ (दक्षिणी दिखावा समाजी). लेकिन अफ़सोस कि बात ये है कि इनमे से अधिकतर ठेकेदार आज मनुवादियों के #मानसिक गुलाम हैं और पाखंडियो के शंख बनकर बज रहे हैं और अपने संगठनों के साथ साथ समाज को भी खोखला करने में लगे हैं.
अब देखिये इन बढेर वाइज संगठनो  के सामाजिक उत्थान कार्यक्रम. 
हकीक़त ये है कि जिस प्रकार भारत में विभिन्न पार्टिया खुद को दूसरी से बेहतर बताती हैं वही हाल इन संगठनों का भी है.. समाज से ज्यादा इनमे एक दुसरे को नीचा दिखने की और खुद को बड़ा ठेकेदार दिखाने की होड़ रहती है ।
अपना सीरवी समाज इतना सीधा है कि ये नहीं पूछ पाते     कि बुद्दिजियों जब आप खुद एक नहीं हो सकते तो समाज को क्या खाक एक करोगे. 
दरअसल बहुत से पदासीन महानुभ समाज उत्थान के बजाय विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के स्वार्थी नेताओ की हांजी हांजी , अंधभक्ति में व्यस्त रहते हैं समाज के बहाने खुद को चमकाने की किसी की कोशिश छुपी हुई नहीं है.

कोई इन ठेकेदारों से सवाल करने वाला हो कि आप क्या करते हैं? आपका विज़न तो बताईये.. क्या आपके पास भारत के विभिन्न हिस्सों में रह रहे सीरवी आबादी की शैक्षिक, सामाजिक स्थिति के आंकड़े हैं?

क्या आपको समाज की वास्तविक समस्याएं पता भी हैं?अगर है तो समाधान के लिए क्या कदम उठाये ? 
कोई समाजी के साथ सामाजिक अन्याय होता है तो क्या पदाधिकारियों को  कुछ ठोस कदम नहीं उठाने चाहिए.. उठाएंगे कैसे खारा कौन पड़े की मानसिकता में जकड़े जो है फिर भले अन्याय होते रहे । 
समाज उत्थान कार्यक्रम में उत्थान बस इन्ही का होता है.. 
कोई समाजी खुद के दम पर कुछ करता है तो उसको सम्मानित करने की नौटंकी खूब करते हैं ये लोग, जब वो प्रतिभा संघर्ष कर रही होती है तो ये सो रहे होते हैं और वो दम तोड़ दे तो कोई नहीं हाँ वो आगे आ जाये तो इन्हें राजनीती चमकाने का मौका मिल जाता है.. 
और उसके बाद उस प्रतिभा को सम्मानित करने की खबर को ये लोग फेसबुक पर और अख़बार में ऐसे फैलायेंगे मानो वो उपलब्धि उस प्रतिभा की नहीं बल्कि इनकी है.. 
अरे क्या समाज में कमी है प्रतिभाओ की आप उन्हें आगे लाने के लिए क्या कर रहे हो? या सिर्फ समाज के पैसे फूंककर बड़े बड़े सम्मलेन करके उनमे एक दुसरे को मालाये पहनाते रहोगे और सम्मानित करने का ढोंग करते रहोगे.

कुछ दिनों पहले ही 2 नए बढ़ेरो की खबर सोशल मीडिया पर पढ़ी , फिर दो बढ़ेरो के संगठन / पदाधिकारी , चलो बढेर तो सही, पर सामाजिकता ? 
कार्यकर्ता कोई बनना नहीं चाहता क्योंकि इनके पास कोई विज़न ही नहीं होता कि करना क्या है ये सभी नेता बनना चाहते हैं. 
बस अपने संगठन के नाम से एक फेसबुक पेज बनाओ एक ग्रुप बनाओ ये लो हो गया काम बन गए नेता जी ज्यादा करो तो एक वेबसाइट बनवालो. सीरवी समाज की कितनी आबादी इन्टरनेट यूज़ करती है इस सम्बन्ध में इनके पास कोई जानकारी नहीं. और जो यूज़ करते क्या वो वाकई सोशल प्लेटफार्म पर सामाजिकता में दिलचस्पी लेते है ? 
समाज को माध्यम बना कर अपने अपने एजेंडा चलाने वाले ये लोग समाज को भ्रमित करने में लगे रहते हैं। जितनी जल्दी जागो उतना अच्छा.
ऐसा नहीं है कि समाज के लिए काम करने वाले लोग नहीं हैं, बहुत हैं जिनका लक्ष्य समाज के हर तबके को एक समान मान सामाजिकता के हर कार्य को जिम्मेदारी करना होता है ,वो महज दिखावा नहीं बल्कि काम करते हैं. 
बहुत से लोग बिना किसी प्रचार या प्रसिद्धि के लालच के काम करते है  
हमे 100-50 संगठनों की भीड़ नहीं चाहिए हमे एक संगठन चाहिए जो समस्त भारत की एक आवाज़ बन सके। पर अफ़सोस राष्ट्रिय स्तर का एक संगठन जो समाज को बेहतर दिशा दे सकता तो वो तो पंगु हो चूका है । 
ऐसे राष्ट्रिय स्तर के संगठन का निर्माण  हो जिसमे काबिल लोग हों जिन्हें समाज की समस्यायों और जरुरतो का ज्ञान हो.. जिनके पास समाज के लिए एक विज़न हो. जो अपनी रोटिया ना सेककर बिरादरी के लिए सत्ता से कुछ हासिल करने का दम रखते हों.

यह भी है जैसे लोग होंगे वैसे लीडर होंगे ,जब तक बेवकूफ बनते रहोगे वो बनाते रहेंगे. अब जागने का वक़्त है जागो 
जो आपका ठेकेदार बनने का दम भरे उसकी जवाबदेही तय करो तभी इस समाज की हालत बदलेगी.

Wednesday, 17 August 2016

बिज़नस या शोषण

आज हमारा समाज बिज़नस में बुलंदिया छू रहा,
मगर क्या वाकई में वह बिज़नस है ?

निम्नलिखित कहानी के माध्यम से समझे ...

लोहार की ईमानदारी

एक बढ़ई किसी गांव में काम करने गया, लेकिन वह अपना हथौड़ा साथ ले जाना भूल गया। उसने गांव के लोहार के पास जाकर कहा, 'मेरे लिए एक अच्छा सा हथौड़ा बना दो।

मेरा हथौड़ा घर पर ही छूट गया है।' लोहार ने कहा, 'बना दूंगा पर तुम्हें दो दिन इंतजार करना पड़ेगा। हथौड़े के लिए मुझे अच्छा लोहा चाहिए। वह कल मिलेगा।'

दो दिनों में लोहार ने बढ़ई को हथौड़ा बना कर दे दिया। हथौड़ा सचमुच अच्छा था। बढ़ई को उससे काम करने में काफी सहूलियत महसूस हुई। बढ़ई की सिफारिश पर एक दिन एक ठेकेदार लोहार के पास पहुंचा।

उसने हथौड़ों का बड़ा ऑर्डर देते हुए यह भी कहा कि 'पहले बनाए हथौड़ों से अच्छा बनाना।' लोहार बोला, 'उनसे अच्छा नहीं बन सकता। जब मैं कोई चीज बनाता हूं तो उसमें अपनी तरफ से कोई कमी नहीं रखता, चाहे कोई भी बनवाए।'

धीरे-धीरे लोहार की शोहरत चारों तरफ फैल गई। एक दिन शहर से एक बड़ा व्यापारी आया और लोहार से बोला, 'मैं तुम्हें डेढ़ गुना दाम दूंगा, शर्त यह होगी कि भविष्य में तुम सारे हथौड़े केवल मेरे लिए ही बनाओगे। हथौड़ा बनाकर दूसरों को नहीं बेचोगे।'

लोहार ने इनकार कर दिया और कहा, 'मुझे अपने इसी दाम में पूर्ण संतुष्टि है। अपनी मेहनत का मूल्य मैं खुद निर्धारित करना चाहता हूं। आपने फायदे के लिए मैं किसी दूसरे के शोषण का माध्यम नहीं बन सकता।

आप मुझे जितने अधिक पैसे देंगे, उसका दोगुना गरीब खरीदारों से वसूलेंगे। मेरे लालच का बोझ गरीबों पर पड़ेगा, जबकि मैं चाहता हूं कि उन्हें मेरे कौशल का लाभ मिले। मैं आपका प्रस्ताव स्वीकार नहीं कर सकता।'

सेठ समझ गया कि सच्चाई और ईमानदारी महान शक्तियां हैं। जिस व्यक्ति में ये दोनों शक्तियां मौजूद हैं, उसे किसी प्रकार का प्रलोभन अपने सिद्धांतों से नहीं डिगा सकता।

Tuesday, 16 August 2016

राजनीति बनाम समाज

हर कोई राजनेता, मंत्री अक्सर कहते कि हमने लोगो के लिए फलाना योजना लागू की ,ढिमका योजना लाये है, पर असल में उन योजनाओं का लाभ किसको कितने पैमाने पर होती ?
देश की आधी से ज्यादा आबादी सरकार की कई योजनाओं से वंचित रहती जिसका कारण लोगो में जागरूकता की कमी, सरकारों की लीपापोती , शिक्षित वर्ग की उदासिनता , और सबसे बड़ी समस्य सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के प्रक्रिया की पेचीदगियां ।

और योजनाओ पर काम करने से ज्यादा सरकारे आरोप प्रत्यारोप में ज्यादा व्यस्त रहती है,

मैं तो कहता, पिछली सरकारों ने जो किया सो किया अब आप उनकी खामियों का बखान करने की बजाय अपनी योजनाओ को जन जन तक पहुंचने के हर प्रयास करो ,
यानि खुद की मार्केटिंग करो ।

अब

समाज और राजनीति ।

समाज को राजनीति में आगे बढ़ना चाहिए,
मगर समाज में राजनीति नहीं होनी चाहिए ।

PP चौधरी जी अखिल भारतीय सीरवी महासभा के अध्यक्ष है

साथ ही पाली लोकसभा क्षेत्र के MP और अपनी काबिलियत से पहले ही प्रयास में केंद्र में मंत्री बने ,जो वाकई में समाज के लिए गौरव की बात है ।

मगर महासभा कहाँ गयी ?

साहब आपने नीव रखी ,उस पर दीवार बनाई, और उसके सहारे आशियाना बना ,

तो साहब दीवार के खंभे ढह गए है , आशियाना खोखला हुआ जा रहा है ।

राजनीति समाज सेवा के लिए बेहतर विकल्प है जब आप जमीन से जुड़कर रहे ।

आज हम महासभा के द्वारा सामाजिक कार्यो की बात करते तो कई सीरवी बुद्दिजीवी कहते महासभा ने समाज को एकमात्र सांसद दिया जो समाज की पहचान व समाज के गौरव है,

भाई साहब अब लाइन में बदलाव कर सकते ।

महासभा ने एक केंद्रीय मंत्री दिया ।

और अब उस महासभा का कोई मतलब,महत्व नही जिसकी बदौलत केंद्र मंत्री तक पहुंचे ।

असल में महासभा समाज के लिए बनाई या राजनीति के लिए ?
3 साल से ज्यादा समय गुजर गया, कोई खास उपलब्धि बताओ महासभा की जो सीरवी समाज के लिए महत्वपूर्ण साबित हुई ।

अब ये ढर्रा चालु मत कर देना कि महासभा ने सांसद दिया,मंत्री दिया ।

चलिये बढ़ते राजनीति से समाज को क्या फायदा हुआ अब तक के कार्यकाल में ,

महासभा (एक सामाजिक संगठन) से राजनीति में केंद्र तक पहुंचे महासभा अध्यक्ष महोदय ने अब तक समाजहित के लिए राजनितिक तौर पर क्या सहयोग मिला ?

सरकारी योजनाये ?

वो भी आप पाली या आसपास देख सकते बाकी पूरा सर्वे कर लीजिए कोई खास फायदा आम जन को नहीं मिल रहा, सड़के चमचमा रही वो प्रोजेक्ट तो मैंने वर्तमान सरकार से पहले ही चलते देखे थे जो अभी तक चल रहे, चलते रहेंगे ।
समाज को होस्टलों की शीघ्र जरुरत है जिसके लिए राजनितिक स्तर पर क्या सहयोग मिला ?

महानुभावों ऐसे कई विषय है जो हमेशा अधूरे ही रहेंगे, चाहे महासभा बन जाए, या समाज के "साहब" लोग मंत्री बन जाए ।

क्योकि ज्यादा फ़िक्र समाज की हम आप भी नहीं करते ।

कृपया बीते समय की इनकी उनकी खामियों को गिनाकर समय व्यर्थ न करे ,
हम वर्तमान की बात कर रहे, वर्तमान में जो कार्य जिनसे संभव है उनके बारे में चर्चा करे ।

पुरानी बातों का कोई मतलब नहीं, कल को आज वालो का कार्यकाल भी बीत जाएगा, तब आज वालो की कमियां गिनाना बेकार की बात होगी ।

हो सकता मेरे विचारों से कई समाजी बंधू मुझे किसी एक पक्ष का समर्थक मानेंगे जिससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ना है, क्योकि मैं सिर्फ और सिर्फ सामाजिकता का पक्षधार हूँ ।

दिक्कत तब शुरू होती जब इंसान को इंसान बने रहने नहीं देते, नेता को नेता ही रहने नहीं देते ,