पिछले तीन-चार वर्षों में हमारे देश की राजनीतिक उथल-पुथल से आम आदमी का कुछ भला हुआ हो या नहीं हुआ हो, शान्तिपूर्ण जीवन के लिए एक नकारात्मक संदेश ने प्रायः सभी के मन में स्थान बनाया है और वह संदेश है, "भय का संदेश". सत्ता हासिल करने के लिए सबकुछ जायज है, छल-कपट-झूठ, गाली-गलौच, जनता को बरगलाने के लिए जुमलेबाजी, धनबल-भुजबल-सत्ता का दुरुपयोग, सरकारी एजंसियों का दुरुपयोग, न्यायपालिका का दुरुपयोग, मीडिया की खरीद-फरोख्त, चरित्र हनन, लोगों की खरीद-फरोख्त, पार्टियों में तोडफोड, धार्मिक भावनाओं से खिलवाड, उन्माद फैलाना, भीडतंत्र के माध्यम से मार-काट करना और ऐसा कुछ भी....किसी भी हद तक करना, जिससे अपनी सत्ता कायम हो जाए...। अब जब राजनीतिक सत्ता के लिए यह सब जायज ठहरता है तो फिर तथाकथित प्यार में भी यह सब जायज है, क्योंकि वहां भी एक जंग है, न्यायपालिका में भी फिर सब जायज है, क्योंकि वहां भी जंग है, व्यापार में भी इसी तर्क से सबकुछ जायज ठहराया जा सकता है, रोजगार या पेट पालने के लिए तो फिर सब जायज होना लाजिमी है, समाज में और अपने मोहल्ले में भी फिर वर्चस्व कायम करने के लिए सबकुछ जायज.....! परिणाम.....सब ओर अराजकता....! सोचिए जरा....! आने वाले समय में क्या होने वाला है....घरों में घुसकर लूट-खसोट, सरे आम मारपीट-कत्ल-बलात्कार....! क्या आपको यह सब मंजूर है....? यह कैसी चाल...कैसा चरित्र...और कैसा वीभत्स चेहरा है...?
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Wednesday, 9 August 2017
राजनीति
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