शब्दों को यूं सँजोकर ,सुकून से लिखना है
चाहे आज अंबर है ,कल छप्पर भी होना है
ख़्वाहिशों की गहराई में ,जागकर भी सोना है
ख़्वाहिशों को छोडकर ,कोने में सिसककर रोना है
मंज़िले मिले या ना मिले आज ,गहरे समंदर में आँसू को भी धोना है
आजगम है आहिस्ता सा मगर ,वक़्त भी एक खिलौना है
खिलौने के इस खेल से ,कभी अलविदा भी होना है
वक़्त है अभी मजबूर ,पर मन्नतों को भी संजोना है
ख़्वाहिशों की चादर से उठकर ,
हकीकत की जमीं पर भी सोना है ...
चाहे आज अंबर है ,कल छप्पर भी होना है
ख़्वाहिशों की गहराई में ,जागकर भी सोना है
ख़्वाहिशों को छोडकर ,कोने में सिसककर रोना है
मंज़िले मिले या ना मिले आज ,गहरे समंदर में आँसू को भी धोना है
आजगम है आहिस्ता सा मगर ,वक़्त भी एक खिलौना है
खिलौने के इस खेल से ,कभी अलविदा भी होना है
वक़्त है अभी मजबूर ,पर मन्नतों को भी संजोना है
ख़्वाहिशों की चादर से उठकर ,
हकीकत की जमीं पर भी सोना है ...
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