Monday 18 March 2013

भारत में लोकतन्त्र और मानवाधिकार कागजों में तो है ,लेकिन एक बेहद छोटे वर्ग के पास इन अधिकारों को मांगने की हैसियत ,पैसा ,पहुँच और किस्मत है (धनाढ्य, राजनीतिक और गैर सरकारी संस्थाएं )
बाकी लोगो के लिए संविधान कागज़ का एक टुकड़ा भर है । जब किसी राष्ट्र में कुछ हासिल करने के लिए "संबंधों " और "पहुँच" का सहारा लेना पड़े तो उस राष्ट्र का तंत्र असफल साबित होता है ।
कई देशभक्त लोग भारत के भविष्य को लेकर बेहद चिंतित है ,अलग अलग ताकते भारत के गणतन्त्र पर चारों और से दबाव डाल रही है । अमीर श्रेणी के बीच अपना खुद का गणतन्त्र बनाने की एक नयी अवधारणा पनप रही है । अमीर वर्ग ने अपने लिए निजी सुरक्षा व्यवस्था ,निजी स्वास्थ्य व्यवस्था ,निजी पेयजल व्यवस्था तैयार कर एक तरह से अपने अपने निजी गणतन्त्र खड़े कर लिए है । पड़ोसी अंजान अपरिचित हो गए ,सरकार से उम्मीद मर गई और "समुदाय" की भावना खत्म हो रही है
दूसरी तरह भारत के गरीब वर्ग में एक अलग ही तरह की सोच इसे खोखला कर रही है । नकसलवाद और वामपंथी उग्रवाद आज देश के लगभग 30 % हिस्से को तोड़ रहा है । मौजूदा हालात में आने वाले एक लंबे दौर तक भारत की लगभग 50 करोड़ जनता संपन्नता और खुशहाली से वंचित रहेगी   करोड़ो भारतीय इतने गरीब है कि "मार्क्स और एंजेल्स " के शब्दों में कहे तो उनके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है , सिवाय अपनी आबादी के ।
अगर आज हर भारतीय को भारत के विकास में अंशधारक का मौका नहीं दिया तो भारत का भविष्य निश्चित रूप से अंधेरे में होगा ।
जैसा मोदी जी ने कहा ,सुनियोजित व्यवस्था तेज और पर्यावरण के अनुकूल विकास सुनिश्चित करेंगे और देश की कमान देश के नागरिकों के हाथ में सोंप दी जाएगी तब ही इस देश का सर्वांगीण विकास हो सकता है ।
इसमे सिर्फ नेता ही नहीं आम जन को भी भागीदार बनाना होगा , लोगो में देश के विकास की भावना जगाना होगा , मोटिवेट करना होगा , तब ही संभव है ।
भारत का प्रबंधन ,इस विशाल रथ को हांकना आज विश्व के सामने एक बड़ी चुनौती है । भारत के राजनेताओ और जनता दोनों को मिलकर इस चुनौती से निपटने की जरूरत है ,बशर्ते लीडर साहसी और विकास पुरुष हो ,जो देश की रग रग से वाकिफ हो , देश की वर्तमान सरकार पूर्ण रूप से हर क्षेत्र में नाकाम साबित हो चुकी है ।
जरूरत है एक स्पष्ट भविष्योंन्मुख दृष्टि की ,एक विचारधारा की और एक साहस की । अब समय आ गाया है कि अब यह देश अपनी वर्षों पुरानी दक़ियानूसी सोच और नीतियाँ छोड़े और एक नए विकास मार्ग ,एक नयी सोच के साथ विश्व का अगुआ बन खड़ा हो । बात में निहित है -संतुलन
जय हिन्द ।

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