Saturday 13 August 2016

अखिल भारतीय सीरवी महासभा

समाज की राष्ट्रिय स्तर की कमेठी
"अखिल भारतीय सीरवी महासभा " को निरस्त कर देना चाहिए ।
महासभा बने 3 साल से ज्यादा समय बीत चूका, लेकिन योजनाअनुरूप काम कुछ नहीं हुआ,

सामाजिक विकास ?
सामाजिक चेतना ?
सामाजिक न्याय ?
सामाजिक महत्व ?

समाजी बंधू अपने अपने क्षेत्र के अनुसार योजनाये बना रहे है ,उसमे कुछ तो धरातल पर काम भी कर रहे, कई अभी सिर्फ startup के लिए विचार विमर्श में लगे है ।

हालाँकि यह नितांत सत्य है कि संगठन के बिना शक्ति नहीं ,

संगठन बना ,संगठन से ही अखिल भारतीय सीरवी महासभा का गठन भी हुआ, संगठन से ही पदाधिकारी चुने गए,
और संगठन से ही सौभाग्य से सीरवी समाज ने राजनीति में  बहुत बड़ा हाथ मारा ,

मगर उस संगठन की activity अब stop हो चुकी ,
जो समाजी बंधू उस संगठन के लिए दिन रात एक कर बहुत जोर शोर से संगठन बनाने में अपना योगदान दिए अब वही समाजी एक एक कर उस संगठन से हाथ खीचते चले गए ।

क्यों ?

महासभा लचर नहीं , महासभा को कमजोर भी उन्ही समाजी बुद्दिजीवि महानुभावो ने बनाया जिन्होंने इसका गठन किया ।

और फिर समाजी किसान बंधुओ व समाज के अंतिम व्यक्ति को महासभा के लिए प्रेरित भी नहीं किया तो उनकी दिलचस्पी भी नहीं ,
फिर कैसा संगठन जब सम्पूर्ण समाज एक साथ नहीं ?
कई बुद्दिजीवी कहते समाज में एकता बनी हुई है तभी तो बढेर पर बढेर बने जा रहे है ।
सही
मगर वो temporary United है
समाज में morality का स्तर बहुत निम्न स्तर तक जा चूका है , और यही वजह है समाज में अव्यवस्था ।
समाज को बहुत से reformation की जरूरत है ,
हर कोई एक न एक खामी गिना ही देगा

पर क्या वाकई में उन खामियों को पूरा करना चाहते है ?
मेरा अनुमान 80% लोग खामियों को जैसा का तैसा बने रहने देना चाहते । (and this is internally bitter truth & ratio can be high more than above I mentioned )
पूर्ण सच कहने का जोखिम कोई नहीं लेना चाहता ।

आज समाजी अपने अपने स्तर पर सामाजिक कार्यो को आगे बढ़ा रहे है, एक तरह से वर्चस्व की भागदौड़ कहो ।
सामाजिक विकास के लिए वर्चस्व को स्वीकार कर लेना चाहिए ।
पर अपने अपने स्तर के अनुसार अपना दायरा सिमित रह जायेगा,
दायरा "मेरे" तक ही रहेगा
हमको दायरा "हमारा" बनाने की तरफ की ध्यान देना होगा ।

हम सीरवी किसान राजस्थान में गाँवो तक ही सिमित है आजकल कुछ पढ़े लिखे नौकरी पेशा समाजी शहर में बसे है फिर भी हमारा दायरा गांव तक ही सिमित है, क्योकि बहुत बड़ा तबका गाँवो तक ही सिमित है । अब दायरा बढ़ाना है तो गांव व शहर के मध्य तालमेल बढ़ाना आवश्यक और उसके के सामाजिक सहयोग की दरकार रहती ।

समस्याए बहुत है पर समाधान ?

हर समस्या का समाधान है ।
बस बेहतर रस्ते की खोज कर ले ।

वैसे बदलाव चाहते किसलिए ? बदलाव से फायदा किसको ?

बदलाव कोई नयी बात नही है , बदलाव सदियों से होते आये है और होते रहेंगे ,
मगर यह जो वर्तमान का दौर है बहुत ही तेजी के साथ बदल रहा है, एक तरह से बदलाव का संक्रमण काल है ।
आज के बदलाव का लाभ हमारी आने वाली पीढ़ी को मिलेगा ।
मतलब आज समाज अव्यवस्थित है तो इस अव्यवस्था की कुछ जिम्मेदारी हमारी एक कदम पीछे की पीढ़ी की भी है जिन्होंने भविष्य को न भांपा , और कुछ हमने बिगाड़ दी ।

खैर जो भी हो बदलाव तो निरंतर है ही ,
अच्छे बुजुर्ग बनाना ही एक अच्छे समाज का निर्माण होगा ।

No comments:

Post a Comment