Saturday 13 August 2016

सफर में debate

ट्रेन में मैं अपनी धुन में बैठा था, सुबह की ठंडी हवाए, सरसराती चल रही थी, 3-4 जने पास वाली सीट पर बैठे अपने पारिवारिक बातो में मग्न थे। मैं उनकी बाते सुन रहा था, एकबारगी तो अनसुना कर कानो में earpeace डाल कर गाने सुनने लग गया पर न जाने क्यों मैंने गाने बंद कर उन सब की बाते ध्यान से सुनी , कुछ असहजता हो रही कि उनकी सोच ऐसी क्यों ?
कैसी ?
वही यार । पुराने खयालात , पारिवारिक धंधो पर जोर देना, शिक्षा से दुरी बनाना, और generation gape पीढ़ियों की दूरिया आज के तकनिकी के जमाने में कम करने की बजाय बढ़ाने जैसी बाते कर रहे थे। मतलब अपने पूर्वजो के सिद्दांत को लागू करना नहीं थोपने वाली मानसिकता को तवज्जो फे रहे थे ।

दरअसल मैंने दखल डरना उचित नहीं समझ मगर रहा नहीं गया , तपाक से अपना भाषण शुरू कर दिया , मैंने हर एंगल से उन सब को शिक्षा का महत्व समझाया खासकर बालिका शिक्षा के सन्दर्भ में असहजता को विस्तार से समझाया कि पढाई से बढ़कर इस जमाने में कुछ नहीं। और रही बात असहजता की तो आप शुरू से गलत सही का फर्क समझाते रहे, और अपनी संतान पर भरोषा करो ताकि वो आप पर भरोषा कर सके और गलत राह पर जाने से बचाएंगे । भरोसा कमजोरी नहीं है भरोसा मजबूती है जिसको असल में कमजोरी मानकर चलते है ।

तभी उनमे से एक सज्जन ने कहा "ये भाई सही कह रहा है "

मैंने उनको पूछा कि आप बच्चों में दोष निकालते हो यह बताओ कि आप परिवार को समय कितना देते हो , सुबह को काम पर निकलते और शाम को देरी तक घर आकर खा पी कर सो जाते, कभी अपने परिवार के साथ सुख दुःख की बात कर कुछ पल इत्मीनान से बिताये, कभी काम की चिंता को दूर रख घर परिवार में संस्कृति ,संस्कार की बात भी की ?

एक सज्जन बोले कि हम जो भी भागदौड़ करते वो उनके लिए ही तो है ।

मैंने कहा - यही तो खामी है आज के समाज की कि जो भी कर रहे वो भावी पीढ़ी के लिए ,अपनी संतान के लिए ही तो कर रहे, पर क्या उनसे कभी प्यार से पूछा भी कि वो असल में क्या चाहते है ? उनको अथाह धन की जरुरत है या कुछ समय की मांग जो आप उनके साथ बिताते नहीं ।
अगर आप अपनी संतानो को Needs और Wants का असली फर्क समझा दे तो आप अपनी ज़िन्दगी को बेहतर तरीके से जी सकते साथ ही अपनी संतानो के बेहतरीन मार्गदर्शी बन सकते है ।
इस तरह की दौड़ से न आप सुकून से जी रहे न अपने परिवार को ख़ुशी दे पा रहे ।
आज समाज में तमाम तरह की कलहो की वजह है हमने अपने जीवन को अव्यवस्थित बना रखा है,
जिंदगी को जीना है तो व्यवस्थित बनाये बाकी जिंदगी काटने की बात तो हर कोई करता ही है ।

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