एक राजा ने अपने सलाहकारों को बुला कर उनसे बीते इतिहास
की समझदारी भरी बाते लिखने के लिए कहा ,ताकि वह उन्हें आने वाली पीढियों
तक पहुंचा सके | सलाहकारों ने काफी मेहनत कर समझदारी भरी बातो पर कई किताबे
लिखी ,और उन्हें राजा के सामने पेश किया | राजा को वो किताबे काफी भरी
भरकम लगी | उन्होंने सलाहकारों से कहा कि लोग इन्हें पढ़ नहीं पाएंगे ,
इसलिए इन्हें छोटा करो | सलाहकारों ने फिर काम किया और केवल एक किताब लेकर
ए | राजा को वह भी काफी मुस्किल लगी | राजा ने सलाहकारों को इसे और छोटा
करने का आग्रह किया | इस बार सलाहकार सिर्फ एक अध्याय लेकर आए | राजा को
वह भी काफी लम्बा लगा ,अतः राजा ने उसे और छोटा करने का आग्रह किया | तब
सलाहकारों ने उसे और छोटा कर सिर्फ एक पन्ना पेश किया | लेकिन राजा को एक
पन्ना भी लंबा लगा | आखिरकार सलाहकार राजा के पास सिर्फ एक वाक्य लेकर आये
और राजा उससे संतुष्ट हो गया | राजा ने कहा कि अगर उसे आने वाली पीढ़ियों
तक समझदारी का केवल एक वाक्य पहुँचाना हो तो वह वाक्य होगा ""भोजन मुफ्त
में नहीं मिलता ""
""भोजन मुफ्त में नहीं मिलता"" का मतलब दरसल यह है कि हम कुछ दी बिना कुछ पा भी नहीं सकते | दूसरो लफ्जों में कहे तो जो हम लगते है ,बदले में वही पाते है | अगर हमने किसी योजना में ज्यादा लागत नहीं लगाई तो हमको ज्यादा फायदा भी नहीं मिलेगा |
बेशक हर समाज में ऐसे मुफ्तखोर भी होते है जो कुछ किए बिना ही पाने कि उम्मीद लगाए रहते है |
:-राजू सीरवी (राठौड़)
""भोजन मुफ्त में नहीं मिलता"" का मतलब दरसल यह है कि हम कुछ दी बिना कुछ पा भी नहीं सकते | दूसरो लफ्जों में कहे तो जो हम लगते है ,बदले में वही पाते है | अगर हमने किसी योजना में ज्यादा लागत नहीं लगाई तो हमको ज्यादा फायदा भी नहीं मिलेगा |
बेशक हर समाज में ऐसे मुफ्तखोर भी होते है जो कुछ किए बिना ही पाने कि उम्मीद लगाए रहते है |
:-राजू सीरवी (राठौड़)
बहूत ही सटीक दिल को छू लेने वाली कहानी एक दूरगामी संदेश दे गई है। पर आज लोग आलसी बनते जा रहे है, बिना मेहनत के करोडपति बनना चाहते है,
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