Saturday, 28 April 2012

खंडित खंडित देश हो रहा, खंडित सी पहचान!
खद्दर धारी बेच रहें हैं, फिर से हिंदुस्तान!
सच कहने वाले के तन पे, लाठी की बौछारें,
और खुद को बतलाते हैं वो, सच्चा, नेक, ईमान!

मजदूरों को मेहनत की भी, मजदूरी ना मिलती!
उनके घर के चूल्हों में तो, चिंगारी ना जलती!

आम आदमी हुआ है बूढ़ा, नेता हुए जवान!
खद्दर धारी बेच रहें हैं, फिर से हिंदुस्तान.............

शीतलहर में रहने वाले, गर्मी क्या जानेंगे!
कितनी भी तुम करो मन्ववत, वो कैसे मानेंगे!
उनके खून की एक बूंद से, अखबारें छप जातीं,
बाल बराबर करेंगे लेकिन, सौ गज की तानेंगे!

  आम आदमी की झुग्गी पे, तिरपालें ना मिलतीं!
  उनके घर के चूल्हों में तो, चिंगारी ना जलती!

उनकी पशु प्रवत्ति से तो, थर्राता इन्सान!
खद्दर धारी बेच रहें हैं, फिर से हिंदुस्तान.............

सत्ता उनकी बनी बपौती, ऐसा है व्यवहार!
जनता को ये बेच रहें हैं, जैसे हो बाज़ार!
मिन्नत कर लो लेकिन उनसे, "देव" नहीं मिलते हैं,
उनके घर के चहुऔर है, पर्वत सी दीवार!

  आम आदमी सिसक रहा है, दवा तलक ना मिलती!
  उनके घर के चूल्हों में तो, चिंगारी ना जलती!

देश की कोई फ़िक्र नहीं है, खुद को कहें महान!
खद्दर धारी बेच रहें हैं, फिर से हिंदुस्तान!"

Thursday, 26 April 2012

ज़िंदगी के वो खूबसूरत लम्हे कहीं खोते जा रहे है 
जो कल अपने थे वो आज पराए होते जा रहे है 
कभी माँ के हाथ की रोटी सबसे स्वादिष्ट लगती थी 
आज तो बस Mcdonald's को ही चुनते जा रहे है 
शायद लोग बदलते जा रहे है 
 
एक वक़्त था जब बेटा बाप की गोद में सोया करता था 
बाप की डांट सुनकर रूठ जाया करता था 
फिर बाप भी उसे बड़े प्यार से मनाया करता था 
आज तो हम माँ बाप को हड़काते(तंगकरना) जा रहे है
शायद लोग बदलते जा रहे है 
 
एक वक़्त था जब हम भगवान को याद करते थे 
सुबह शाम मंदिर जाया करते थे 
खुद के लिए नहीं बल्कि सबके लिए दुआ करते थे 
आज तो बस पैसो की अहमियत देकर हम उस परवादिगर (पालन करने वाला )को भूलते जा रहे है 
शायद लोग बदलते जा रहे है   

एक वक़्त था जब सब दोस्त यार शाम की चाय साथ पिया करते थे 
चाय के साथ दिलचस्प बातें किया करते थे 
हम सब राइस होने की तम्मनाएं किया करते थे 
आलम अब यह रहा कि सब यहा एक दूसरे को  छोड़ आगे बढ़ते जा रहे है 
शायद सब लोग बदलते जा रहे है 

अपनी तनहाई को देख आज कुछ शब्द लिखते जा रहे है 
जो छोड़ गए हमें उनपर इल्ज़ाम लगते जा रहे है 
दुनियाँ से मिले गमों से जाने अनजाने टूटते जा रहे है 
वक़्त के इस तेज़ रफ्तार से हम अपनों से पिछड़ते जा रहे है 
शायद लोग बदलते जा रहे है 

दुनिया में घुल कर अखरत को भूलते जा रहे है 
हम ही अपने आप को बदलतेजा रहे है 
प्रभु के इस जगत से खिलवाड़ करते जा रहे है 
अपनी सफ़ेद रूह पर कालिख पोतते जा रहे है 
शायद लोग बदलतेजा रहे है 

कोई हमें छोड़े तो गवारा नहीं ,तो फिर भगवान को क्यूँ छोडते जा रहे है 
यह सब देख कर एक रूठी हुई कलम से लिखता हूँ मैं 
शायद लोग बदलते जा रहे है

Wednesday, 25 April 2012

भुलाये    भूलता   नहीं   वो   दहशत और खौफ का मंजर 
सिसकियाँ   खून  और  चीखों   भरे   हालत   का   मंजर 
कहीं  जलते   हैं   चोराहे    कही    गलियारे   जलते   हैं 
 जला   कर   बस्तियां   सारी   सजाया   राख   का  मंजर 
जिधर   देखो   उदासी   है   ये   कैसा   खोफ   का   आलम  
 डरी    बेबस   निगाहों   मैं   धडकती    साँस   का   मंजर  
घुली   बारूद   पानी   मैं   बही   हैं    आग    की    नदियाँ 
 टपकती  आँख   से   आंसू   के  इस    हालत  का   मंजर 
कहीं   मंदिर   कहीं   मस्जिद   कही   अरदास   होती   है
 धर्म   के   नाम   पर   चलते   हुए   व्यापर   का    मंजर 
खुदा   की    जुस्तजू    उनको    खुदी   से  दूर   रहते   हैं 
 बसी  हैं   नफरते  दिल   मैं   सुलगता   आग  का   मंजर  

Monday, 23 April 2012

भारतीय समाज अपनी समृद्ध संस्कृति के लिए पुरे विश्व में जाना जाता है किन्तु हमारे समाज में आज भी इतनी कुरीतिया व्याप्त हैं जिनका आज तक कोई निदान नहीं हुआ इसी वजह से आज भी हम दुसरे देशों से बहुत पीछे हैं इन कुरितियो में एक है बाल विवाह 
बाल विवाह एक ऐसी कुरीति है जिसने हमारे देश के बचपन को रौंद के रख दिया है 
छोटे छोटे बच्चों को शादी के बंधन में बाँध देते है . उनको मालूम भी होगा या नहीं कि शादी क्या होती है शादी कि मायने क्या हैं ?,उनका शरीर शादी के लिए तैयार भी है ?वो नन्ही सी आयु शादी के बोझ को झेल पायेगी?
कलियाँ फूल खिलने से पहले तोड़ दी जाएँ उनको पावों तले रौंद दिया जाये तो पूरी फुलवाड़ी बेजान हो जाती है ऐसे ही यह छोटे छोटे बच्चे हैं इनके बचपन को खिलने दो महकने दो जब ये शादी के मायने समझे इनका शरीर और मन , दिमाग शादी के योग्य हो ,आत्म निर्भर हो ग्रहस्थी का बोझ उठाने योग्य हो तभी इनकी शादी की जाये।
बालविवाह जैसी कुरीति के पनपने में असाक्षारता और गरीबी  मुख्य कारण है । 
आखिर बालविवाह होते क्यूँ है :-
मैंने कई बुजुर्ग लोगो से इस बारे में जाना तो मुझे यही जवाब मिला कि "हमारे बुजुर्गो की परंपरा है जो वो निभा रहे है " 
सही है बुजुर्गो ने सोच समझ कर ही कुछ रीति रिवाज बनाए होंगे । 
अक्सर गरीब शादियों के खर्चे को कम करने के लिए समूहिक विवाह करते है जिसमे वयस्क लड़कियों के साथ अवयस्क लड़कियों की भी शादी कर देते ,ताकि एक खर्चे में सब की शादी हो जाए । 
दूसरा पहलू है शिक्षा का 
कम पढे लिखे और अनपढ़ लोगो को बालविवाह के दुसप्रभाव के बारे में जानकारी नहीं होना भी मूल कारण है । 
समय के साथ इंसान को भी कदम मिला कर चलना होता है , पर आज भी देश के गाँव इतने तेज कदम नहीं चला रहा की जमाने की बराबरी कर सके ।
बालविवाह जैसी कुरीतियों को रोकने के लिए कानून तो बने है , पर कानून बनाने के बावजूद बालविवाह धड़ल्ले से हो रहे है । अब कानून भी करे तो क्या करे ,बिचारे कानून को बनाने वाले भी कानून की धज्जिया उड़ते है तो आम जनता क्यूँ पीछे रहे , वैसे आज के यूथ को पूछ लो कि भई कानून क्यूँ होते है तो जवाब यही मिलेगा कि "तोड़ने " के लिए । 
पर अगर किसी के मन को बदलना हो तो उसे मोटिवेशन करना करना होता है , मतलब जो बात लात से ना बने वो बात से बन सकती है , हर चीज़ को बदलना है तो सिर्फ कानून से कुछ नहीं बदलेगा ,लोगो को जागरूक करना  और ऐसी कुरीतियों के दुसप्रभाव के बारे में जानकारी लोगो तक पाहुचने से कुछ असर होगा । 
प्रशासन और शिक्षित लोग एक साथ होकर बालविवाह जैसी कुरीतियों के बारे में लोगो को जागरूक करे । ज्यादा से ज्यादा महिला शिक्षा को बढ़ावा देना , और जागरूकता के लिए सरकार को नुक्कड़ नाटको का आयोजन करवाना चाहिए ताकि लोग बालविवाह के दुसप्रभाव को समझ सके । और गरीबो को बेटी की शादी के लिए कुछ सहायता मुहैया करवाया जाए ताकि खर्च के बहाने छोटे बच्चो के बचपन को रौदा न जाए । 
क्यूँ कि" बच्चे ही देश और समाज का भविष्य "है और अपने देश और समाज के भविष्य के साथ होते  खिलवाड़ को रोकना हमारा कर्तव्य है ।
इस तरह की कुरीतियो को रोकने के लिए युवाओ को आगे आना चाहिए , और लोगो को मोटिवेट करना चाहिए। 
जिस दिन ये कर्तव्य लोग निभाना सीख लेंगे उस दिन ऐसी कुरीतिया हमारे समाज से दूर हो जायेंगी 
और धीरे धीरे हमारा समाज में भी बचपन खिलखिलाने लगेगा मुस्कुराने लगेगा और हमारी बगिया महकने लगेगी
 

Tuesday, 17 April 2012


अब आप सभी लोगो से है यही रह गया कहना ,
 
बहुत रो लिए, बहुत खो दिए अपने अपने स्वार्थो के वास्ते

बहुत लूटे अपनों को अपने ही वतन में ,सिर्फ निजता के वास्ते
 
हर जन को गैर जाना ,हर पल ठोकर मारी अच्छाई के रास्ते

जब देश गुलाम था , सबका सिर्फ एक ही अरमान था ,अपने देश की आजादी की खातिर कुर्बान पूरा हिंदुस्तान था ,सबने मिल सोचा था , आजाद भारत की फिजा निराली होगी
हर घर में खुशियों का माहौल होगा, सर्वत्र हरियाली होगी ,जब देश आजाद हुआ , विकास रास्ता चौबंद हु ,

पर उन आजादी के दीवानों को क्या मालूम रहा होगा ,
 
आजाद भारत में घोर भ्रस्टाचार तंत्र ताकतवर बुलंद हु
 
धनवानों , नेता,सरकारी मुलाजिमो , नौकरशाहों पर कुबेर बरस गए
 
आजादी सिर्फ अमीरों को अमीरी और बेईमानी की मिली,

बाकि गरीब -किसान मजदूर रोटी के लिए तरस गए,

क्या इसे ही आजादी कहते है, क्या इसे ही गणतंत्र कहते है?
 
जहा करोडो भूखो के बीच सैकड़ो अरबपति आरामतलबी से रहते है ।
 
उठो जागो बहुत हो गया धर्म युद्ध -वाक युद्ध - जाति युद्ध ,
 
बहुत हो गया जाति और धन स्वार्थ का स्वाभिमान युद्ध,
 
अब भारत को जागना होगा , भ्रष्ट तंत्र को बदलना होगा ,
 
खोखले निर्जीव राष्ट्रीयता को फिर से जिन्दा और मजबूत करना होगा,
 
भारत को दम तोड़ते मूल्यों से , कुत्सित और भ्रष्ट स्वार्थ से छीज रहे
र्तमान के गंदे गलियारे से निकाल सुन्दर भारत -सबका भारत में बदलना होगा

Monday, 16 April 2012

मीडिया और प्रेस को को देश का चौथा स्तम्भ माना जाता है , या इनको देश का दर्पण कहा जा सकता है जो देश कि असली सूरत को दर्शाता हो ।
अक्सर हम आम जन नेताओ , ढोंगी बाबाओ पर विरोध जताते है कि इन लोगो ने जनता को ठगा है । पर "मीडिया " का विरोध  नहीं करते ।
पर आज मीडिया और प्रेस ने अपने अधिकारो का गलत उपयोग कर ना सिर्फ देश कि जनता को गुमराह करने का काम किया बल्कि राजनेताओ और निर्मल बाबा जैसे ढोंगियों के साथ जनता को ठगने में बराबर के भागीदार बन चुके है ।
बक़ौल निर्मल बाबा , यह ढोंगी हर महीने का 17 लाख चैनल वालों को देता है अपने कार्यक्रम के प्रसारण के लिए ।
देश की जनता इन मीडिया और प्रेस पर इतना भरोसा करते जितना खुद पर नहीं , पर जनता के भरोसे के साथ मीडिया भी खिलवाड़ करने में पीछे नहीं रहा ।

मीडिया कहता है कि निर्मल बाबा की सच्चाई जनता के सामने लाने के लिए महीनो से निर्मल बाबा के ठिकाने और रिश्तेदारों से मिल कर जानकारी जुटा रहा है
तो अगर चैनल वालों को जरा भी शक है किसी पर तो उनके कार्यक्रम क्यूँ प्रसारित किए जिसकी वजह से लाखो लोग ठगी के शिकार हुए ,

मीडिया को कोई भी प्रसारण करने से पहले उस कार्यक्रम या व्यक्ति के बारे में पूर्ण जांच करना चाहिए , सिर्फ पैसो के लिए ,स्वार्थी बन कर बिना जांच पड़ताल  के ही कोई कार्यक्रम को प्रसारण क्यूँ किया जाता है ।

आज निर्मल बाबा जैसे पाखंडियों की समाज में जड़े मजबूत करने वाला मीडिया ही है , लोग टीवी पर देखे कार्यक्रम से प्रभावित होकर इस ढोंगी के ठगी का शिकार हुए है ।

मीडिया को पैड न्यूज़ के दलदल से बाहर निकाल कर ,अपने काम को कर्तव्यनिष्टा से करना होगा , जनता में अपने विश्वास को बनाकर रखना है तो निष्पक्ष होकर अपना कार्य करना होगा ।

मीडिया और प्रेस को सही मायानों में लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ  बनाना होगा ।

Sunday, 15 April 2012

मेरे मामा जी को जोड़ो के दर्द की शिकायत थी , बहुत से लोगो ने बहुत से उपाय बताए , किए भी पर कुछ कम नहीं हुआ , एक दिन मामा जी ने कहा कि उन्होने कन्नड़ TV9 में देखा एक बाबा का चमत्कार जो हर असाध्य बीमारी का इलाज़ करता है ,मामा जी को उसके पास जाना था , एक दिन मैं , मामा जी और मामा जी के दो दोस्त जिसमे एक डॉक्टर और एक दर्जी था । चल दिये उस बाबा के यहा जिसको मामा जी ने tv9 में देखा। चित्रदुर्गा से कुछ दूरी पर एक गाँव के बाहर जहा वो बाबा रहते थे वह गए लोगो का हुजूम उम्दा था । मैंने सोचा वाकई कुछ तो चमत्कार है यहाँ इसलिए इतने लोग है यहा । हम बाबा के आश्रम की तरफ गए , वहाँ काफी लोग बाबा को 10 र्पए देते और बाबा के चरण स्पर्स करते , मैंने भी किए । तकरीबन 400-600 लोग थे वह सबको बैठा दिया गया और कहा कि बाबा स्नान कर के भगवान का ध्यान करने के बाद सब कि समस्या का हल करेंगे । आधे घंटे बाद बाबा आए , एक -एक करके लोग बाबा के पास जाने लगे । मैंने देखा जो भी बाबा के पास जाता ,बाबा उस पर कुछ मंत्र तंत्र करता वो शक्स चिल्लाने लगता और जमीन पर लोट पोट होते , उसे वह बैठे लोग समझते कि कोई भूत प्रेत का साया जिसको बाबा ने ठीक कर दिया हो । पर कुछ देर बाद वह हँगामा हुआ और बाबा का ढोंग सामने आ गया , सब को पता चल गया कि यह सब पाखंड है ,मैंने लोगो से पूछा कि आप किस आधार पर इस पर विश्वास करते है .... सब लोगो का जवाब था कि TV9 कन्नड़ देख कर यहा आए है । मतलब सब को धोखा हुआ ,सब ने tv9 मीडिया पर विश्वास कर के गलती की ।परमात्मा के आदेश के सामने सब नतमस्तक है और कुछ महीनो बाद मेरे मामा जी की भी मृत्यु हो गई ।

मैं यह जानकारी आप सबसे इस लिए साझा कर रहा हु कि जिस तरह मीडिया पर विश्वास कर हम पाखंड का शिकार हुए है , उस तरह और कोई व्यक्ति ना हो , हालांकि आज जो मीडिया इनके गुणगान का प्रचार करता था ,वही आज इनकी पोल खोलने में लगा है , पर सवाल है है कि मीडिया वाले बिना किसी जांच और सच्चाई के तथ्यो को जाने बिना इनके कार्यक्रम प्रसारित करते है इससे लोग ठगी का शिकार ज्यादा होते है । जो किसी के कहने और सुनने से उतना नहीं ठगा जाता जितना मीडिया के प्रचार के कारण ठगा जा रहा है ।

बाबाओ के कार्यक्रम प्रसारित नहीं करना चाहिए ,अगर करते है तो उनके बारे में पूरी जानकारी जुटा कर (जैसे अब जांच कर रहे है )अगर कुछ सच्चाई है तो प्रसारित करना चाहिए । 

किसी भी राजनीतिक दल का प्रचार नहीं करना चाहिए । 

निसपक्षता से अपना काम करना चाहिए , क्यों कि जनता को आईना दिखाना मीडिया का काम है
पर आज मीडिया जो काम कर रहा है उससे साफ यही होता है कि मीडिया लोगो को सच्चाई से रूबरू कराने के बजाय खुद कमाई करने में लगा है । 

निर्मल सिंह नरूला जो कृपा का नाम लेकर लोगो से ठगी कर रहा है , इस पर धर्म के ज्ञाता , देश में सच्चे साधुओ ने और द्वारका के शंकरचार्य स्वरूपनन्द सरस्वती ने भी इसे महज ढोंग बताया , और स्टार न्यूज़ पर चर्चा में शामिल तर्कशास्त्री ,वेदो के जानकार ,धर्म के जानकार ,मनोचिकित्सक और वेज्ञानिकों तक ने इसे नकार दिया तो हम आम जनता को तो आंखे खोलनी चाहिए कि यह सिर्फ पैसे कमाने का जरिया है । 

अगर सच में लोगो पर इसकी कृपा होती तो रोज़ 1 करोड़ रुपये जमा होने वाले सिर्फ 34 लाख तक क्यूँ आ गए । अगर यह ढोंगी बाबा कहता है कि यह एक सजिस है उसे बदनाम करने की तो क्यूँ अपनी कृपा का इस्तेमाल कर इस विरोध को खत्म नहीं कर सकता । 

बड़ा अच्छा धंधा है इसका जिसे "दलाली " कहेंगे तो कोई हर्ज़ नहीं क्यूँ कि इस ढोंगी के अनुसार जो कृपा लोगो तक पहुँचती है वो इसके द्वारा जाती है और उस कृपा के 2000 वसूलता है ।
खुद पर विश्वास रखो ,अंधविश्वास पर नहीं , जब विधिविधाता ही अपनी कुंडली नहीं बदल  सकते तो यह किस खेत कि मुली है जो हमारे किस्मत बदल सकता है । 

Saturday, 14 April 2012

पता नहीं इस देश में इतने लुटेरे कैसे पनप गए , जाहीर है अपना घर खुला रखोगे तो लुटेरे तो लौटेंगे ही ना ,
ईद देश में लोग हर किसी के बहकावे में जल्दी आ जाते है , चाहे नेता हो या पाखंडी ,
बिना सोचे समझे हर किसी पर विश्वास कर लेते है ,
अंधविश्वास पर तो कुछ नहीं कहूँ तो अच्छा , क्यूँ कि इस देश के लोग ""अंधविश्वास में ही विश्वास "" करते है
एक तरफ सरकार लोगो को लौटने में लगी वही दूसरी तरफ ऐसे ढोंगी बाबा जो अंधविश्वास का सहारा लेकर लोगो की जेब पर हमला करते है । 


कमाल है जिस तरह से यह ढ़ोगी कहता है कि लोगो पर कृपा होती है वो इसके जरिये होती है और उस कृपा का यह 2000 लेता है 

हर क्षेत्र में दलाली का धंधा बहुत फला फूला है , 

और अब भगवान से कृपा भी दलालो से लेनी पड़ती है 

निर्मल सिंह नरूला उर्फ निर्मल बाबा समागमों में अपने भक्तों के दुख दूर करने का दावा करते हैं. इस समागम में बाबा लोगों को चौंकाने वाले उपाय बताते हैं लेकिन निर्मल बाबा की इन बातों पर उठ रहे हैं सवाल. हर कोई जानना चाहता है निर्मल बाबा उर्फ निर्मल सिंह नरूला का पूरा सच.
लगभग सभी चैनलो पर इनके कार्यक्रम दिखाये जाते है , लोग टीवी पर इन कार्यक्रमों को देखकर ही ज्यादा आकर्षित होते है और जितना धोखा जनता के साथ यह ढ़ोगी करता है उसके बराबर के भागीदार चैनल वाले भी है ।

जो भी इनके कार्यक्रम में भाग लेने जाता है उनसे 2000 रुपये लिए जाते है , और फिर कहते है कि "हमने किसी से मांगा नहीं "
लोगो को बेवकूफ बना कर इस ढोंगी ने 240 करोड़ की कमाई कर ली (आंकड़े  इस ढोंगी ने खुद बताए )

बड़े अजीबो गरीब नुख्से बताता है यह ढ़ोगी बाबा ,

समोसा खाओ काम बनाओ
गोलगप्पे खाओ कल्याण होगा , इस गोलगप्पे के चक्कर में एक बच्चे का सचमुच में कल्याण हो गया , हेपोटाइटिस का शिकार बच्चा इस ढोंगी की पाखंडता के कारण मर गया , 
इस ढोंगी के शिकार क्रिकेट के नायक युवराज सिंह भी हुए थे वो तो अच्छा हुआ की डॉक्टर की राय से कैंसर का इलाज़ कराया वरना युवराज भी शायद इस ढोंगी के पाखंड की भेंट चाड जाते ॥ 

कमाल है किसी को बच्चा नहीं हुआ तो समोसे की चटनी से इलाज़ करते है ,
टाई वाले की दुकान में व्यापार कम है , इस ढोंगी ने कारण बताया कि खुद टाई नहीं पहनोगे तो व्यापार कैसे चलेगा ,
किसी कपड़े की दुकान वाले के व्यापार ना होने का कारण कि वो नंगा होकर दुकान चलता है ?
एक बहन जी को उपाय बताया कि घर में सीडी है तो उसको चलाये कल्याण होगा (हंसी आती है ऐसे उपायो पर )

खुद की फोटो और खुद की सीडी बेचकर व्यापार करता है , खुद को भगवान के बराबर मानता है , 

खुद पर भगवान की कृपा बताने वाला यह ढ़ोगी खुद न्याय के लिए अदालत की शरण में जाता है तो कैसी कृपा है भगवान की इस पाखंडी पर । 

लोगो से जो पैसा लिया जाता है उन पैसो पर बिना सोचे समझे अपना हक जाता देता है , कि यह तो मेरे पैसे है , इन पर मेरा हक है । 

अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाले इस तरह के कई विज्ञापन पहले भी कई न्यूज़ चैनलों पर प्रसारित किये जाते रहे हैं लेकिन आज से पहले कभी उन विज्ञापनों को टीआरपी में नहीं गिना गया, इससे तो यही ज़ाहिर होता है कि तीसरी आंख वाले बाबा जी के दरबार में पड़ने वाली लाखों रुपयों की बारिश की कुछ छींटे टैम के ऊपर भी पड़ी हैं जिसकी बदौलत बाबा जी रातों रात शोहरत बटोरने में कामयाब हो गये हैं, और अगर ये बात कहीं ना कहीं सच साबित होती है तो वाकई उन तमाम मीडियाकर्मियों के लिए सोचने का विषय है जो 20-20 हज़ार रुपये या फिर उससे भी कम मानदेय पर न्यूज़ चैनलों के तमाम स्पेशल प्रोग्राम बनाते हैं और उनके बदले की टीआरपी ले जाती है तीसरी आंख।

टीवी इंटरव्यू में इस पाखंडी ने कोई ऐसा जवाब नहीं दिया जिससे यह साबित हो सके कि वाकई में किसी का भला हुआ है 

हैरानी की बात तो ये है कि आखिर इस तरह की बकवास पर कोई इस कदर आंख मूंद कर भरोसा कैसे कर सकता है।

2 दिन से समाचार चैनलो पर इस पाखंडी के बारे में दिखाया जा रहा है , जाहीर है इसमे फेसबुक का काफी सहयोग रहा है , 

अपनी आंखो से अंधविश्वास की पट्टी को हटकर अपने आप को धोखे से बचाए , इन पाखंडियों के जाल से बचे । 
 अरे इतना तो सोचो कि हमारे भाग्य लिखने वाला भी हमारी किस्मत नहीं बदल सकता तो यह ढ़ोगी क्या बदलेंगे , अपने आप पर विश्वास रखो , भगवान के प्रति अपनी आस्था के साथ खिलवाड़ मत करो ।


Wednesday, 11 April 2012

माता के मस्तक पे शत्रु, आतंक की आँधी चला रहा...
भाई तेरा छलनी होके, सीमा पे बेसुध पड़ा हुआ...
कब तक गाँधी आदर्शों से, यूँ झूठी आस दिखाओगे...
कब रक्त पियोगे दुश्मन का, कब अपनी प्यास बुझाओगे...
मैं कर्मों मे आज़ाद भगत, लक्ष्मी के लक्षण चाह रहा...
अब कुछ तो रक्त की बात चले, मैं बस परिवर्तन चाह रहा...
शृंगार पदों को छोड़ कवि, अब अंगारों की बात करें...
शोषित समाज के दबे हुए, कुछ अधिकारों की बात करें...
जब कलम चले तो मर्यादा, कुछ सत्य की उसमे गंध मिले...
इतिहास की काली पुस्तक मे, अब कलम की कालिख बंद मिले...
व्यापार कलम का छिन्न करे वो सत्य सुदर्शन चाह रहा...
कलम क्रांति आधार बने, मैं बस परिवर्तन चाह रहा...
इन नेताओं के डमरू पे कब तक बंदर बन उछ्लोगे...
कब तक आलस्य मे पड़े हुए दुर्भाग्य को अपने बिलखोगे..
कोई भाषा तो धर्म कोई, कोई जाति पे बाँटेगा...
कब घोर कुँहासे बुद्धि के तू ग्यान अनल से छाँटेगा...
इस राजनीति के विषधर का, मैं तुमसे मर्दन चाह रहा...
भारत से हृदय सुसज्जित हो, मैं बस परिवर्तन चाह रहा...
कुछ के तो उदर है भरे हुए, ज़्यादातर जनता भूखी है...
आँखों की नदियाँ भरी हुई, बाहर की नदियाँ सूखी है...
बचपन आँचल मे तड़प रहा, माँ की आँखें पथराई हैं...
क्या राष्ट्र सुविकसित बनने के, स्वपनों की ये परछाई है...
उनसे, जिनके घर भरे हुए, मैं थोड़ा कुंदन चाह रहा...
फिर स्वर्ण का पक्षी राष्ट्र बने, मैं बस परिवर्तन चाह रहा...
कब तक भगिनी माताओं के, अपमान सहोगे खड़े खड़े...
कब तक पुरुषार्थ यूँ रेंगेगा, औंधे मुँह भू पे पड़े पड़े...
कब तक भारत माता को यूँ निर्वस्त्र हो जलते देखोगे...
आख़िर कब तक सौभग्य सूर्य तुम अपना ढलते देखोगे...
पानी से भारी धमनियों मे कुछ रक्त के दर्शन चाह रहा...
अब तो संयम का हार तजो, मैं बस परिवर्तन चाह रहा...
deepak


Monday, 9 April 2012


निर्मल दरबार लगा कर लोगों की हर समस्‍या का आसान समाधान बताने वाले निर्मल बाबा को हर रोज चढ़ावे के तौर पर कितने पैसे मिलते हैं? हर दिन टीवी पर दिख कर दर्शकों और लोगों पर शक्तियों की कृपा बरपाने वाले बाबा जी को किसी ने अन्य बाबाओं की तरह चढ़ावा या पैसा लेकर पैर छूने के लिए मिलते नहीं देखा, लेकिन फिर भी उन्हें हर रोज़ करोड़ों रुपए मिल रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि बाबा जी की इस मोटी कमाई का एक बड़ा हिस्सा मीडिया को भी मिल रहा है।

हाल ही में अचानक निर्मल बाबा के भक्तों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है। अगर इंटरनेट पर ही बाबा जी की वेबसाइट की लोकप्रियता का आकलन किया जाए तो पता चलता है कि एक साल में इसे देखने वालों की संख्या में 400 प्रतिशत से भी अधिक की बढ़ोत्तरी हुई है। टीवी चैनलों पर उनके कार्यक्रम के दर्शकों की संख्या में भी भारी इज़ाफा हुआ है। हालांकि उनके समागम का प्रसारण देश विदेश के 35 से भी अधिक चैनलों पर होता है जिन्हें खासी लोकप्रियता भी मिल रही है, लेकिन उनके बीच कोई ब्रेक या विज्ञापन नहीं होता। न्यूज़ 24 पर पिछले हफ्ते उनके कार्यक्रम की लोकप्रियता 52 प्रतिशत रही जो शायद चैनल के किसी भी बुलेटिन या शो को नहीं मिल पाई है।

चैनलों को इन प्रसारणों के लिए मोटी कीमत भी मिल रही है जिसका नतीजा है कि उन्होंने अपने सिद्धांतों और क़ायद-क़ानूनों को भी ताक पर रख दिया है। नेटवर्क 18 ने तो बाबा के समागम का प्रसारण अपने खबरिया चैनलों के साथ-साथ हिस्ट्री चैनल पर भी चलवा रखा है। खबर है कि इन सब के लिए नेटवर्क 18 की झोली में हर साल करोड़ रुपए से भी ज्यादा बाबा के ‘आशीर्वाद’ के तौर पर पहुंच रहे हैं। कमोवेश हरेक छोटे-बड़े चैनल को उसकी हैसियत और पहुंच के हिसाब से तकरीबन 25,000 से 2,50,000 रुपए के बीच प्रति एपिसोड तक।


फेसबुक पर निर्मल बाबा का ये कार्टून खासा लोकप्रिय हो रहा है
अब जरा देखा जाए कि चढ़ावा नहीं लेने वाले निर्मल बाबा के पास इतनी बड़ी रकम आती कहां से है? महज़ डेढ़ दो सालों मे लोकप्रियता की बुलंदियों को छू रहे निर्मल बाबा हर समस्या का आसान सा उपाय बताते हैं और टीवी पर भी ‘कृपा’ बरसाते हैं। काले पर्स में पैसा रखना और अलमारी में दस के नोट की एक गड्डी रखना उनके प्रारंभिक सुझावों में से है। इसके अलावा जिस ‘निर्मल दरबार’ का प्रसारण दिखाया जाता है उसमें आ जाने भर से सभी कष्ट दूर कर देने की ‘गारंटी’ भी दी जाती है। लेकिन वहां आने की कीमत 2000 रुपये प्रति व्यक्ति है जो महीनों पहले बैंक के जरिए जमा करना पड़ता है। दो साल से अधिक उम्र के बच्चे से भी प्रवेश शुल्क लिया जाता है। अगर एक समागम मे 20 हजार लोग (अमूमन इससे ज्यादा लोग मौज़ूद होते हैं) भी आते हैं तो उनके द्वार जमा की गई राशि 4 करोड़ रुपये बैठती है।
 





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भारत एक भीड़ है और मैं उस भीड़ में शामिल धक्के खाता हशिए पर खड़ा एक नागरिक हूँ । सड़क ,रेल , हवाई अड्डा , अस्पताल , स्कूल , कचहरी , थाना , जेल , मंदिर , राशन दुकान , सिनेमा घर , नगर पालिका , ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी , टेलीफोन एक्सचेंज , बिजली ऑफिस , बाज़ार , श्मशान हर जगह भीड़ ही भीड़ है और मैं बेबस , निरीह , कतारबद्ध , धेर्य के साथ अपनी बारी का इंतज़ार में खड़ा हूँ । कभी कबार थोड़ी देर के लिए मेरा धैर्य जवाब देने लगता है और मैं बेकाबू होने लगता हूँ । लेकिन कभी इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाता कि कतार से बाहर निकालकर अपना काम पहले करवाने की घौस जमा सकू। मेरी तरह तीन चौथाई से ज्यादा हिंदुस्तानी नागरिक एक भीड़ से ज्यादा कुछ नहीं है , उनकी कोई हैसियत नहीं   है कोई अहमियत नहीं है , कोई ताकत नहीं है । इस देश की सबसे बड़ी सच्चाई यही है कि यहाँ के तीन चौथाई से ज्यादा लोग लोकतन्त्र के हशिए पर रहते है । 
इस देश में हैसियत ,अहमियत और ताकत सिर्फ उन लोगो के पास है जिन्हे कभी कतार में नहीं लगना पड़ता , जिन्हे हर मनचाही चीज़ जरूरत से ज्यादा , उनकी मर्ज़ी होते ही सहजता से मिल जाती है । मेरे जैसे आम आदमी को हर जरूरी चीज़ जरूरत से कम मिल पाती है , वह भी समय और सहजता से नहीं मिलती । मुझे मालूम है कि संसाधनो और इनफ्रास्ट्रक्चर पर आबादी का दबाव बहुत अधिक है ,उपयोग करने वाले बहुत अधिक है इसलिए हर चीज़ के लिए आपाधापी मची है , और शायद इसी आपाधापी की वजह से भ्रष्टाचार भी बढ़ा है । लेकिन में इस आपाधापी और भ्रष्टाचार से परेशान हूँ । मैं चाहता हूँ कि उपलब्ध संसाधनो , सुविधाओं और अवसरो का न्यायपूर्ण वितरण सुनिशित करने का कोई सिस्टम हो , ताकि मेरे हिस्से की चीज़ मेरी जरूरत के समय सहजता से मुझे मिल जाए । जब तक सभी नागरिक के बीच संसाधनो , सुविधाओ और अवसरो की यह बराबरी कायम नहीं होती ,तब तक मुझे यह कहना सबसे बड़ा झूठ लगता है कि यहाँ लोकतन्त्र है । 

दरअसल हमारे देश में "लोक" यानी  पब्लिक नाम की ऐसी कोई चीज़ नहीं है , जिसका कोई तंत्र बन सके । यहा महज एक भीड़ है , जो बेबस है ,जो एकजुट नहीं है , जो अनुशासित नहीं है , जो अपनी ताकत को नहीं पहचानती , जो सही निर्णय लेना नहीं जानती । लोकतन्त्र हमारे लिए वह सपना है जो यदि साकार हो जाए तो भारत में स्वर्ग उतर आए । अब सरकार और प्रशासन , जनता का हुक्म माने , उसके हिसाब से चले  और खुद को जनता का सेवक समझे , और जनता भी ऐसी हो जो समझदार हो , जिम्मेदार हो अनुशासित हो और सबसे बढ़कर सरकार को अपने काबू में रखना जानती हो । 

जनता की भूमिका 
आम जन के पास सरकार को नियंत्रण रखने के साधन और अवसर बहुत कम है । चुनाव में वोट दाल देने के बाद अगले चुनाव से पहले हमारे पास सरकार और अपने जन प्रतिनिधियों के बारे में फैसले लेने का कोई मौका नहीं होता । चुनाव के समय भी हमारे पास विकल्प अत्यंत ही सीमित होते है । हमें सांपनाथ और नागनाथ के बीच किसी एक का चुनाव करना होता है । भारतीय लोकतन्त्र का चुनावी खेल एक मज़ाक से अधिक कुछ नहीं रहा है । यह चाहे कितना भी निष्पक्ष और साफ सुथरा हो ,तब भी सरकार के गठन में जनता के फैसले की भूमिका हशिए पर सिमटी होती है । आम चुनाव में औसत राष्ट्रीय मतदान शायद कभी साठ फीसदी से अधिक होता है और उन मतो में से सरकार बनाने वाली मुख्य पार्टी को शायद ही कभी तीस फीसदी से अधिक मत मिलता है । इस प्रकार केंद्र में जो सरकार का नेतृत्व करती है , उसे शायद ही कभी देश के एक चौथाई मतदाताओ का समर्थन मिल पाता है । 

सरकार के गठन का असली खेल तो मतो की गिनती हो जाने और चुनाव परिणाम की घोषणा हो जाने के बाद शुरू होता है । चुनावी समीकरण को देखते हुए सत्ता हथियाने के लिए परस्पर विरोधी विचारधारा वाले राजनीतिक डालो के बीच गठबंधन होता है । हम जाति ,मजहब ,क्षेत्रीयता आदि के नाम पर इस कदर बंटे हुए है कि राजनीतिक दल जनमत का अपने अपने पक्ष में आसानी से ध्रुवीकरण कर लेते है । भारतीय संसदीय लोकतन्त्र की मौजूदा चुनाव व्यवस्था में शायद ही कभी ऐसी सरकार बन पाएगी जिसे देश के 50 % से अधिक मतदाताओ का समर्थन मिल पाए । जब तक ऐसी कोई सरकार नहीं बनती तब तक हम नहीं कह सकते कि देश में लोकतन्त्र है । यह तब होगा जब भारत कि भीड़ , पब्लिक कि भूमिका में आएगी , समूहिक रूप से फैसले लेगी ,शत प्रतिशत मतदान करेगी और जिस पार्टी या प्रत्याशी को वोट देगी उसे स्पष्ट रूप से 50 % से अधिक वोट देगी । 
मीडिया की भूमिका
देश के अधिकतर नागरिको को इस बात की भी पर्याप्त जानकारी नहीं होती कि सरकार क्या कर रही है , कैसे कर रही है , और क्यों कर रही है । सरकार अपना दायित्व कहाँ निभा रही है , वह कहा गड़बड़ी कर रही है ,और वह ऐसा क्या कर रही है , इस पर नज़र रखने का जिम्मा प्रेस और मीडिया का है । यही वह अपना दायित्व ठीक से निभाए ,संसद और सरकार को जनता से जोड़े रखे , सरकार कि गड़बड़ियों को उजागर करे , जनता की आकांक्षाओ –अपेक्षाओ को सरकार तक पहुंचाए , तो लोकसेवाको और जनप्रतिनिधियों पर जनमत का अंकुश बना रहे । लेकिन वह पब्लिक या पाठक /दर्शक के लिए नहीं बल्कि सिर्फ अपने मालिक के मुनाफे के लिए करती है । मीडिया हमारे यहाँ लोकतन्त्र के चौथे स्तम्भ की भूमिका में नहीं रहा । वह एंटेरटाइनमेंट का एक कॉरपोरेट बिज़नस भर है , जिसे विधायिका , कार्यपालिका और न्यायपालिका की कतार में रखने की बजाय अब फिल्म और टीवी धारावाहिक के कारोबार के साथ जोड़कर देखा जाना चाहिए । मीडिया में संसद और सरकार के कामकाज के बारे में विश्लेषणपूरक जानकारी के लिए स्पेस लगातार सिकुड़ता जा रहा है । न्यूज़ चेनलों की बाढ़ सी आ गई ,लेकिन असली न्यूज़ काही ढूँढने पर नहीं मिल रही । “जल बीच मीन प्यासी ,मोही सुन सुन आवे हँसी “ वाली बात हो रही है । टीआरपी रेटिंग के खेल ,विज्ञापन बाज़ार के अनुचित दबाव और चैनलो के बीच नंबर वन बनने की होड़ ने मीडिया का स्तर काफी नीचे गिरा दिया है ।

सूचना का अधिकार
सूचना का अधिकार संबंधी कानून बनने के बाद जागरूक नागरिकों के पास काही गड़बड़ी दिखने पर और उससे खुद को प्रभावित महसूस करने की स्थिति में सरकार से सूचना मांगने का एक तरीका मिला है । लेकिन सूचना मांगने में हमारी जनता उतनी कुशल नहीं है ,जीतने कुशल सूचना को छिपाने में हमारे नौकरशाह है । इस कानून की भी अपनी सीमाएं है । इस कानून के बनने के बाद जनता को सूचना देने का जो अप्रिय और विशालकाय काम नौकरशाहों के मत्थे आ गया है , उनसे बचने की वे हर संभव कोशिश करते है । नतीजन , इस कानून के तहत अपीलों की संख्या बढ़ रही है , जिसके कारण सूचना आयोग भी कोर्ट की ही तरह सुस्त चाल से उन पर सुनवाई कर पा रहे है । वहाँ भी मामले की सुनवाई के लिए तारीख पर तारीख दी जाने लगी ,और सूचना पाने के लिए जनता को ठीक वैसी ही परेशानी होने लगी ,जैसे कि न्याय पाने के लिए होती है । फिर भी प्रेस और मीडिया की गैर ज़िम्मेदारी को देखते हुए जागरूक नागरिकों को ही सूचना के अधिकार के तहत जरूरी सूचनाए हासिल करके खुद ही सिटिज़न जर्नलिस्ट की भूमिका निभानी होगी । हमारे फेसबुक में भी जीतने साथी इस भूमिका को निभा सके ,उतना बेहतर होगा ।
न्यायपालिका की भूमिका
सरकार को संविधान और कानून की मर्यादा के भीतर रखने और उसके अनुरूप कार्य करने के लिए बाध्य करने का दायित्व न्यायपालिका का है , लेकिन उसका हाल भी किसी से छिपा नहीं है । हमारी अदालते वकीलो को अमीर बनाने के लिए बनी है । जनता को न्याय पाने के लिए बहुत ऊंची कीमत चुकनी पड़ती है । फिर भी न्याय मिल जाएगा ,इसकी कोई गारंटी नहीं होती । यहाँ देर भी होती है और अंधेर भी होता है । निचली स्तर की ज़्यादातर अदालते तो भ्रष्टाचार के बदनाम अड्डे में तब्दील हो चुकी है । असल में पुलिस , कानून और अदालतो का भय अपराधियों को नहीं बल्कि केवल शरीफ और निरीह नागरिक को रह गया है । वह भी इसलिए कि उन्हे इंसाफ की उम्मीद में अनगिनत परेशानी उठाकर , गाढ़ी कमाई लुटाते हुए ज़िंदगी के सारे काम काज छोडकर वर्षो तक अदालतों के जो चक्कर लगाने पड़ते है , उनसे आम जन बचना चाहता है । भारतीय न्यायपालिका को अगर अन्यायपालिका कहा जाए तो शायद कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी ,क्योंकि वह न्याय जो समय पर ना मिले और जिसके लिए जनता को भरी भरकम कीमत चुकनी पड़े ,परेशानी उठानी पड़े यह वास्तव में एक अन्याय ही है । इसलिए जब तक फौजदारी के ऐसे मामले न हो कि उन्हे पंचायत ,आर्बिट्रेशन ,मिडीएसन ,काउंसिलिएसन ,लोक अदालत आदि जैसे वैकल्पिक न्याय के उपायो से सुलझाया न सके ,तब तक हमें न्याय पाने के लिए अदालतों का रुख करने से बचना बचना चाहिए ।

संसद की भूमिका
सरकार पर अंकुश रखने का सबसे प्रत्यक्ष दायित्व संसद का है । सांसदो के पास सरकार से प्रश्न पूछकर,विभिन्न संसदीय नियमो के तहत प्रस्ताव लाकर , लोक लेखा समिति एवं विभिन्न संसदीय स्थायी समितियों की रिपोर्टों ,आदि के माध्यम से कार्यपालिका को अपने नियंत्रण में रखने की शक्ति है । लेकिन भारतीय संसदीय प्रणाली में विधायिका और कार्यपालिका के बीच स्पष्ट पृथकरण नहीं होने के कारण सरकार पर यह नियंत्रण अत्यंत ढीला है । सरकार चूंकि बहुमत वाले दल या गठबंधन के संसद सदस्यों से ही बनती है , इसलिए लोकसभा के आधे से ज्यादा सांसद सरकार के हर सही गलत फैसले के साथ ही खड़े रहते है । सत्ता पक्ष के जो सांसद सरकार में मंत्री बन जाते है वे कार्यपालिका को नियंत्रण में रखने वाले सांसदो की भूमिका नहीं निभा पाते और जो सांसद मंत्री नहीं बन पाते वे कई बार प्रधानमंत्री या पार्टी अध्यक्ष को इतना परेशान नहीं करना चाहते कि भविष्य में उनके मंत्री बनने की संभावनाए धूमिल हो जाए । हालांकि गठबंधन सरकार के दौर में ऐसा भी होने लगा है कि सरकार के समर्थक दल या सत्ता पक्ष के सांसद भी कभी कबार विपक्षी तेवर अख़्तियार कर लेते है ,लेकिन सत्ता में बने रहने कि सुविधा का स्थायी मोह अक्सर उनके ऐसे आकस्मिक तेवरों पर हावी रहता है । ऐसे में सरकार कई बार ऐसे फैसले लेने में भी कामयाब हो जाती ,जो देश की जनता के हितो के विरुद्ध हो । यदि विधायिका पूरी तरह से कार्यपालिका से पृथक हो तो  सरकार पर अधिक प्रभावी ढंग से नियंत्रण रखना उसके लिए संभव हो सकेगा ।

जनता और जन प्रतिनिधियों के बीच संवाद की जरूरत
जनता के पास अपने सांसदो के कार्य एवं आचरण पर निगरानी रखने और उन्हे अपनी समस्या एवं शिकायतों से अवगत कराने का एक करगार मंच होना चाहिए । संसद की दर्शक दीर्घा में जनता के लिए बैठने का स्थान अत्यंत सीमित है और एक व्यक्ति को एक घंटे के लिए ही संसद का पास मिलता है । सौ करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले इस देश की अधिकतर जनता अपने प्रतिनिधियों को करीब से कार्य करते हुए नहीं देख पाती , इसलिए इसके बारे में गुण –अवगुण के आधार पर राय नहीं बन पाती । हालांकि , कुछ वर्ष पहले ही लोक सभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी की पहल पर संसदीय परिसर में लोकसभा टीवी की स्थापना का एक सराहनीय प्रयास किया गया है , जो ना केवल संसद की दर्शक दीर्घा के देशव्यापी टेली एक्सटेंशन की तरह काम करता है ,बल्कि संसद और जनता के बीच दोतरफा संवाद को भी बढ़ावा दे रहा है ।

कार्यपालिका की भूमिका
कार्यपालिका जनता के प्रति अपने दायित्व से लगातार पीछे हटती जा रही है , और वह निजीकरण और विदेश पूंजी के भरोसे उन्हे छोड़ देने की राह पर चल पड़ी है । वह जानबूजकर अपना काम लापरवाही और लेटलतीफी से करती है ताकि लोग उससे उम्मीद करने की बजाय निजी कंपनियों की सेवाओ पर भरोसा करने के लिए बाध्य हो जाएँ । हमारी सरकारे जनमत के बजाय अब निजी एवं विदेशी पूँजीपतियों के इशारे पर चलने लगी है । यदि सरकार अपने रवैये पर कायम रही तो जनता को आखिरकार सोचना पड़ेगा कि वह सरकार को टैक्स का भुगतान क्यों करे , जिसके बल पर मंत्रियों और नौकरशाहों के वेतन भत्ते और तमाम सुविधाएँ मिलती है । जनता में व्यापक जागरूकता ,अनुशासन एयर जनता कि संगठित सक्रियता से ही सच्चे लोकतन्त्र का हमारा सपना साकार हो सकता है । 

Sunday, 8 April 2012

तुम्हारे पाँवो के नीचे कोई ज़मीन नहीं
कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यकीन नहीं

मैं बेपनाह अँधेरे को सुबह कैसे कहूँ ,
मैं इन नज़ारो का अंधा तमाशबीन नहीं ।

तेरी जुबान है झूठी जम्हूरियत की तरह ,
तू एक जलील सी गाली बेहतरीन नहीं ।


एक आदमी रोटी बेलता है , 
एक आदमी रोटी खाता है , 
एक तीसरा आदमी भी है ...
जो ना तो रोटी बेलता है ना रोटी खाता है 
वह सिर्फ रोटी से खेलता है , 
मैं पूछता हूँ कि यह तीसरा आदमी कौन है 
मेरे देश की संसद मौन है

Friday, 6 April 2012

सोने पर आयात शुल्क बढ़ाए जाने और गैर ब्रांडेड आभूषणों पर उत्पादन शुल्क लगाए जाने के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे सर्राफा व्‍यापारियों की हड़ताल वापस ले ली है.

व्‍यापारियों ने वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी से मुलाकात करने के बाद यह कदम उठाया.

सर्राफा व्‍यापारियों ने सोनिया गांधी से मुलाकात के दौरान मांग की कि बढ़ी एक्‍साइज ड्यूटी को वापस लेने का लिखित आश्‍वासन दिया जाए.


यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि स्वर्णकार इतने दिनों से हड़ताल पर है जिससे सरकार को भी तकरीबन ५०० करोड़ तक का राजस्व नुकसान भी हुआ है ,पर वित् मंत्री ने इतने दिनों से हड़ताली व्यापारियों कि तरफ ध्यान ही नहीं दिया .. आखिर में जब सोनिया गाँधी से गुहार करने के बाद इस मामले पर कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया आई है

देश की जनता की बात देश में जन्मे मंत्री नहीं समझ सकते और जनता की गुहार की तरफ ध्यान ही नहीं दिया जाता , तो आज स्थिति ऐसी हो गई की विदेश की महिला देश में बहु बन कर देश की राजनीती में आकर अपना रुतबा ऐसा जमा देती कि देश में जन्मे राजनितिक तो क्या प्रधानमंत्री और सरकार का पूरा मंत्री मंडल उनके आदेश के बिना कोई निर्णय नहीं ले रहा है .

यह बात कहना गलत नहीं होगा कि भारत के लोगो को गुलामी सहने की आदत हो गई है , वर्तमान सरकार के मंत्री अपने फायदे के लिए एक विदेशी महिला के गुलाम बन बैठे और आम जन तो बिना स्वार्थ के ही इस सरकार के गुलाम बने हुए है

अन्ना आन्दोलन करते है तो उनका साथ देने उतर जायेंगे ,बाबा रामदेव रैली करते तो साथ नारे लगा देंगे पर कोई अन्ना नहीं बनाना चाहता कोई रामदेव नहीं बनाना चाहता .

दोस्तों अपने हक़ के लिए अपने को ही लड़ना है ,अन्ना सेनापति है ,बाबा रामदेव सेनापति है पर सैनिक तो हम ही है ना , सैनिक के बिना सेनापति का क्या काम ... अगर देश का जवान यह सोचकर रहे की जब सेनापति आयेगा तब ही हम दुश्मन से लड़ेंगे तब तक नहीं तो क्या हमारा देश सुरक्षित रहेगा , क्या वो जवान मारा नहीं जायेगा सेनापति के इंतजार में ..
देश के सैनिक खुद बनो खुद के लिए खुद लड़ो