Wednesday, 25 April 2012

भुलाये    भूलता   नहीं   वो   दहशत और खौफ का मंजर 
सिसकियाँ   खून  और  चीखों   भरे   हालत   का   मंजर 
कहीं  जलते   हैं   चोराहे    कही    गलियारे   जलते   हैं 
 जला   कर   बस्तियां   सारी   सजाया   राख   का  मंजर 
जिधर   देखो   उदासी   है   ये   कैसा   खोफ   का   आलम  
 डरी    बेबस   निगाहों   मैं   धडकती    साँस   का   मंजर  
घुली   बारूद   पानी   मैं   बही   हैं    आग    की    नदियाँ 
 टपकती  आँख   से   आंसू   के  इस    हालत  का   मंजर 
कहीं   मंदिर   कहीं   मस्जिद   कही   अरदास   होती   है
 धर्म   के   नाम   पर   चलते   हुए   व्यापर   का    मंजर 
खुदा   की    जुस्तजू    उनको    खुदी   से  दूर   रहते   हैं 
 बसी  हैं   नफरते  दिल   मैं   सुलगता   आग  का   मंजर  

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