Thursday 21 June 2012

सावन की बुंदों में हूँ
और धरती की प्यास में भी
खुद को कहीं खोया भी नहीं
फिर भी
खुद की तलाश में भी हूँ
आसमान जैसी आशाओं की ऊंचाइयों में भी हूँ
सागर की तरह दर्द की गहराई में भी
खुशियों की भीड़ में शामिल रहता हूँ हर वक़्त
और
अपनी उदासी भरी तन्हाइयों में भी हूँ
में हूँ हवाओ की बेचैनी में
माँ के आँचल के सुकून में भी
हंस के सब कुछ लौटाने के जज़्बे में शामिल
पाओगे तुम मुझे
तो कहीं कुछ हासिल करने के जुनून में भी हूँ
चाँद की सीतल छाया में भी हूँ
सूरज की तेज़ रौशनी में भी हूँ
काही आंखो से बिखरे हुए मोती के नमक में
तो
कही हंसी से छलके हुए मिठास में भी हूँ
खुद को कहीं खोया भी नहीं
फिर भी
खुद की तलाश में भी हूँ

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