Monday 25 June 2012

वक़्त तो बहता पानी है
जो कहता कभी तेरी ,तो कभी मेरी कहानी है
हर पल हर लम्हे मेरी चुपी ,कोई ख़्वाहिश नूरानी है
ख़्वाहिशों का क्या है ,आज यह तो कल वो
रहती जैसे रेत पर कोई निशानी है
हमें नहीं पता ,जा रही है कहाँ
चलते जा रहे है वहाँ ,जहां ली जाती यह ज़िंदगानी है
ज़िंदगी भी भला निभाएगी कब तक
कौनसी इससे भी कोई दोस्ती पुरानी है
कहना चाहते तो कह देते ,दो लफ्जो में भी
पर जब लिखने बैठे तो जाना ,जैसे भूली बिसरी यह गजल पुरानी है
लिखते लिखते बीत गई सदियाँ जैसे
पर फिर भी अधूरी यह कहानी है
जाने कब पूरी होगी यह दास्तां
यह बात तो ना कलम ,और ना ही बहती इस स्याही ने जानी है
चार पल जो जी ले मुस्कुरा कर
तो हम भी कह पाएंगे
कि
जीवन की धूप कितनी सुहानी है

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