एक
तो वो सलमान जो एक बार "कामिटमेंट" कर दे तो फिर खुद की भी न सुने और एक
यह हमारे कानून मंत्री सलमान जो एक बार "कामिटमेंट" कर दे तो चुनाव आयोग की
भी नहीं सुनते । खैर दोनों सलमान है तो दोनों में कुछ तो समानता होना
स्वाभाविक है ।
चुनावी दौर में आजकल नेताओ और मंत्रियों की जुबान ऐसे फिसलती मानो चिकने घड़े पर पानी ,और फिसले तो फिसले पर चुनाव आयोग तक को चुनोती ! मानो चुनाव आयोग तो इनके घर पानी भरता हो । वैसे जनता के सामने उटपटाँग भाषण विवादित बयानबाजी और एक दूसरे पर छीटाकाशी करना तो नेताओ और मंत्रियो की आदत में शामिल है , जब तक यह विवाद में नहीं आते तब तक इनको खाना तक हजम नहीं होता । अब क्या करे कमबख्त राजनीति जात ही ऐसी हो गई है कि जब तक विरोधी दल को छटी का दूध याद न दिला दे तब तक जीतने की उम्मीदे कम रहती । वैसे दूध चाहे छटी का याद दिलाओ या 12 वी का , जनता कोई दूधमुहे बच्चे जैसी तो रही नहीं कि पहचान न सके कि दूध में पानी कितना है । हा कभी कबार जनता भ्रष्टाचारियों और बेईमानो को जूते चप्पल मार कर तीसरी का दूध जरूर याद दिला देती है । कसम मिलावटी दूध की हमने इतनी ओछी राजनीति कभी नहीं देखी । ना कानून का पालन ,न टिकाऊ भाषण ,न भाषण का तरीका ,ना संविधान की इज्ज़त ,सब बदल दिये । मेरे एक गुरु है पत्रकार जिन्होने मुझे एक सीख दी कि दूसरों की गलती नहीं अच्छाई देखो और वही सीखो दूसरों की गलती बताने की बजाय ,उनसे बेहतर और अच्छे काम करके दिखाओ । पर इन नेताओ और मंत्रियों के भाषण सुन कान में रुई रख लेना बेहतर हो गया । यह राजनीतिक लोग विरोधी दल से बेहतर सुविधा देने की बजाय उनकी गलतिया गिनाने में लगी रहती है । भई वैसे गलतिया गिनते रहे तो सरकार का कार्यकाल भी पूरा हो जाएगा , तो उन वादो का क्या जो जनता से किए ? इस पर नेताजी कहेंगे फिर से हमारी सरकार बनाने में मदद करो हम विकास भी करेंगे ।
एक दिन मैं और मेरे मित्र मोटरसाइकिल से no entry में चले गए भूल से , तपाक से एक बूढ़ा पुलिस वाला आया और चालान बनाने लग गया , हमने कहा सर हम यहा नए है हमको पता नहीं था , हमको जाने दीजिये । बूढ़े गुस्से से तिलमिला कर कहा अनपढ़ हो जो इतना बड़ा no entry का बोर्ड नहीं दिखा । एक तो जेब में है ही 600 रुपये उसमे से 500 रुपये का चुना लग गया । बूढ़ा था ईमानदार । कसम से अब अगर गलती से भी उस no entry में चले जाते तो बुढ़ऊ हमको चाटा मर ही देता ।
अब हम गलती से no entry में गए तो 500 का चुना लगा तो इन नेताओ को इनकी गलती की सजा सिर्फ sorry कहने से पूरी हो जाती , पापा कसम अगर माफी मांगने से सजा माफ हो जाए तो हम रोज़ कानून तोड़ेंगे , रोज़ सिग्नल के नियम तोड़ेंगे , अरे फालतू में हम भी कानून नहीं तोड़ते काम और जल्दबाज़ी में तोड़ने पड़ते है , जैसे यह नेता चुनाव के वक़्त तोड़ा करते है ।
पता नहीं मंत्रियों को कानून तोड़ने से कुछ फर्क पड़ता भी या नहीं , एक की जुबान फिसली तो दूसरे ने क्या भांग खा रखी थी ?
आचार संहिता का उलंगन इनके लिए मामूली खेल बन गया है क्यूंकि इनको पता है कि हिंदुस्तान में हत्यारे को भी सजा सुनाने के बावजूद सजा नहीं दी जा सकती तो यह किस खेत की मुली है ।
बड़ी दिलचस्प बात है जरूर पढे
कानून का उलंगन कर भाषण बाज़ी तो कर देते और जब मीडिया वाले पूछते कि आपने चुनाव आयोग की आचार संहिता का उलंगन कर भाषण क्यूँ दिया तो कहेंगे "याद नहीं ,मैंने कब कहा , या जुबान फिसल गयी "
इनकी जुबान कब संभाल कर रही है यह सरकार जो वादे करती है वो भी फिसली जुबान से ही करती है रट्ट मर कर भाषण देने पहुँच जाते है ।
इनकी बातों का गौर करो यह कहते है याद नहीं
अरे 2 घंटे पहले दिया भाषण इनको याद नहीं तो वादे क्या खाक याद रखेंगे वो भी 5 -5 साल तक ? खुद की काही बात इनको याद नहीं तो देश और राज्यो का क्या खाक विकास करेंगे । क्या मिलेगा रट्ट मर कर दिये भाषण से ? ठेंगा !
अगर ठेंगा ही देखना है तो हमारे मित्र से जरूर मिलना वो लोगो को बड़े अच्छे से ठेंगा दिखते है :P
निर्वाचन आयोग की और से जारी नोटिस में भाषण कर्ता चुनाव आचार संहिता के अनुच्छेद 1(3) अनुच्छेद 7 और 7(6) के उलंगन के दोषी है , इन धाराओ के आधिकारिक हैसियत का दुरुपयोग और सांप्रदायिक आधार पर मतदाता को प्रभावित करने की मनाही होते हुए उन्होने कानून का उलंगन किया तो क्यूँ चुनाव आयोग और गूंगी बहरी सरकार कुछ नहीं कर रही है क्यूँ उन लोगो के खिलाफ FIR दर्ज़ नहीं करते ॥
चुनावी दौर में आजकल नेताओ और मंत्रियों की जुबान ऐसे फिसलती मानो चिकने घड़े पर पानी ,और फिसले तो फिसले पर चुनाव आयोग तक को चुनोती ! मानो चुनाव आयोग तो इनके घर पानी भरता हो । वैसे जनता के सामने उटपटाँग भाषण विवादित बयानबाजी और एक दूसरे पर छीटाकाशी करना तो नेताओ और मंत्रियो की आदत में शामिल है , जब तक यह विवाद में नहीं आते तब तक इनको खाना तक हजम नहीं होता । अब क्या करे कमबख्त राजनीति जात ही ऐसी हो गई है कि जब तक विरोधी दल को छटी का दूध याद न दिला दे तब तक जीतने की उम्मीदे कम रहती । वैसे दूध चाहे छटी का याद दिलाओ या 12 वी का , जनता कोई दूधमुहे बच्चे जैसी तो रही नहीं कि पहचान न सके कि दूध में पानी कितना है । हा कभी कबार जनता भ्रष्टाचारियों और बेईमानो को जूते चप्पल मार कर तीसरी का दूध जरूर याद दिला देती है । कसम मिलावटी दूध की हमने इतनी ओछी राजनीति कभी नहीं देखी । ना कानून का पालन ,न टिकाऊ भाषण ,न भाषण का तरीका ,ना संविधान की इज्ज़त ,सब बदल दिये । मेरे एक गुरु है पत्रकार जिन्होने मुझे एक सीख दी कि दूसरों की गलती नहीं अच्छाई देखो और वही सीखो दूसरों की गलती बताने की बजाय ,उनसे बेहतर और अच्छे काम करके दिखाओ । पर इन नेताओ और मंत्रियों के भाषण सुन कान में रुई रख लेना बेहतर हो गया । यह राजनीतिक लोग विरोधी दल से बेहतर सुविधा देने की बजाय उनकी गलतिया गिनाने में लगी रहती है । भई वैसे गलतिया गिनते रहे तो सरकार का कार्यकाल भी पूरा हो जाएगा , तो उन वादो का क्या जो जनता से किए ? इस पर नेताजी कहेंगे फिर से हमारी सरकार बनाने में मदद करो हम विकास भी करेंगे ।
एक दिन मैं और मेरे मित्र मोटरसाइकिल से no entry में चले गए भूल से , तपाक से एक बूढ़ा पुलिस वाला आया और चालान बनाने लग गया , हमने कहा सर हम यहा नए है हमको पता नहीं था , हमको जाने दीजिये । बूढ़े गुस्से से तिलमिला कर कहा अनपढ़ हो जो इतना बड़ा no entry का बोर्ड नहीं दिखा । एक तो जेब में है ही 600 रुपये उसमे से 500 रुपये का चुना लग गया । बूढ़ा था ईमानदार । कसम से अब अगर गलती से भी उस no entry में चले जाते तो बुढ़ऊ हमको चाटा मर ही देता ।
अब हम गलती से no entry में गए तो 500 का चुना लगा तो इन नेताओ को इनकी गलती की सजा सिर्फ sorry कहने से पूरी हो जाती , पापा कसम अगर माफी मांगने से सजा माफ हो जाए तो हम रोज़ कानून तोड़ेंगे , रोज़ सिग्नल के नियम तोड़ेंगे , अरे फालतू में हम भी कानून नहीं तोड़ते काम और जल्दबाज़ी में तोड़ने पड़ते है , जैसे यह नेता चुनाव के वक़्त तोड़ा करते है ।
पता नहीं मंत्रियों को कानून तोड़ने से कुछ फर्क पड़ता भी या नहीं , एक की जुबान फिसली तो दूसरे ने क्या भांग खा रखी थी ?
आचार संहिता का उलंगन इनके लिए मामूली खेल बन गया है क्यूंकि इनको पता है कि हिंदुस्तान में हत्यारे को भी सजा सुनाने के बावजूद सजा नहीं दी जा सकती तो यह किस खेत की मुली है ।
बड़ी दिलचस्प बात है जरूर पढे
कानून का उलंगन कर भाषण बाज़ी तो कर देते और जब मीडिया वाले पूछते कि आपने चुनाव आयोग की आचार संहिता का उलंगन कर भाषण क्यूँ दिया तो कहेंगे "याद नहीं ,मैंने कब कहा , या जुबान फिसल गयी "
इनकी जुबान कब संभाल कर रही है यह सरकार जो वादे करती है वो भी फिसली जुबान से ही करती है रट्ट मर कर भाषण देने पहुँच जाते है ।
इनकी बातों का गौर करो यह कहते है याद नहीं
अरे 2 घंटे पहले दिया भाषण इनको याद नहीं तो वादे क्या खाक याद रखेंगे वो भी 5 -5 साल तक ? खुद की काही बात इनको याद नहीं तो देश और राज्यो का क्या खाक विकास करेंगे । क्या मिलेगा रट्ट मर कर दिये भाषण से ? ठेंगा !
अगर ठेंगा ही देखना है तो हमारे मित्र से जरूर मिलना वो लोगो को बड़े अच्छे से ठेंगा दिखते है :P
निर्वाचन आयोग की और से जारी नोटिस में भाषण कर्ता चुनाव आचार संहिता के अनुच्छेद 1(3) अनुच्छेद 7 और 7(6) के उलंगन के दोषी है , इन धाराओ के आधिकारिक हैसियत का दुरुपयोग और सांप्रदायिक आधार पर मतदाता को प्रभावित करने की मनाही होते हुए उन्होने कानून का उलंगन किया तो क्यूँ चुनाव आयोग और गूंगी बहरी सरकार कुछ नहीं कर रही है क्यूँ उन लोगो के खिलाफ FIR दर्ज़ नहीं करते ॥
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