Wednesday, 29 February 2012

माँ की ममता

(कपिल लिखता है )[एक काल्पनिक पात्र ]

मेरी माँ एक आँख से ही देख सकती थी | मुझे मेरी माँ से नफरत होती थी ,शर्मिंदगी सी महसूस होती थी |
मेरी माँ मार्केट से कुछ छीजे खरीद कर बेचा करती थी उससे ही दो वक़्त का खाना मिल जाता था | पैसे के लिए माँ सब काम करती थी |
गरीबी और माँ की एक आँख की वजह से शर्मिंदगी महसूस होती थी |
एक दिन स्कूल में समारोह का दिन था ,उस दिन माँ भी वह आ गयी |  मैं बहुत शर्मिंदा हो गया ,अपमानित हो गया था माँ कि एक आँख कि वजह से , वह मेरे साथ ऐसा क्यूँ करती है ? मैंने मेरी माँ को घ्राणित नज़र से देख वह से चला गया | अगले दिन जब स्कूल गया तो सब ने मुझे ताने मारे कि " तेरी माँ एक आँख वाली है "
मैं चाहता था मेरी माँ इस दुनिया से चली जाए ,इस लिए मैंने माँ से कहा "तुम्हारे पास एक आँख है तो दूसरी भी क्यूँ है तुमने मुझे सिर्फ उफस का पात्र बना दिया ,सब हँसते है मुझ पर तुम मर क्यूँ नहीं जाती "|एक बारगी लगा मैंने कुछ गलत तो नहीं कहा पर नहीं मुझे बुरा नहीं लगा बल्कि अच महसूस कर रहा कि जो कहना था सब कह दिया | शायद ऐसा इसलिए कि मेरी माँ ने कभी मुझे डांटा -फटकारा नहीं था |मुझे जरा भी एहसास नहीं था कि मैंने उसकी भावनाओ को ठेस पहुंचाई है |
उस रात मैं उठा और पनि पीने रसोई कि तरफ गया ,वहा मेरी माँ रो रही थी ,चुपचाप क्यूँ कि उसे दर था काही रोने कि आवाज़ आ गयी तो मैं जाग जाऊंगा | मैंने एक नज़र देखा और चला गया | माँ रो रही थी क्यूँ कि मैंने उससे बहुत कुछ कह दिया शायद माँ उससे दुखी है ,मेरे मन में भी चुभन सी हो रही थी , पर मुझे कोई ग्लानि नहीं हो रही थी | मैं माँ से बहुत नफरत करता था पर फिर भी दिल में कही चुभन सी होती थी कि मैंने माँ से ऐसा बर्ताव किया | माँ कि एक आँख से आँसू आ रहे थे | मुझे बहुत नफरत होने लगी इस गरीबी और माँ से |
मैंने बहुत मेहनत से पढ़ाई की मैं माँ को अकेला छोड़ कर शहर आगया पढ़ने के लिए | मुझे university में दाखिला मिल गया | part time काम करके मैंने पढ़ाई का का खर्च निकाला | पढ़ाई के बाद काम भी मिल गया शादी भी हो गई | नया घर लिया | मेरी एक बेटी भी हो गई | अब मैं हंसी खुशी जीवन बिता रहा था ,खुशिया दिन ब दिन बढ़ रही थी | तभी एक दिन उम्मीद नहीं की थी वही हुआ | एक औरत मेरे घर आई | मेरी माँ थी वो उसी एक आँख के साथ | उस वक़्त मानो पूरा आसमान मेरे पर गिर पड़ा हो | मेरी छोटी बेटी मेरी माँ की एक आँख को देख दर कर भाग गई | कुछ देर बाद मैंने पूछा " कौन हो तुम , मैं तुम्हें नहीं जनता ,मेरे घर में आकार मेरी बेटी को दराने की हिम्मत कैसे की तुमने , यहा से चली जाओ " इस पर मेरी माँ ने जवाब दिया " माफ करना शायद गलत पते पर आ गयी हु "
वो चली गयी thanks godवो मुझे पहचान नहीं पाई । मुझे काफी राहत मिली । मैंने अपने आप से कहा " मैं उसकी देखभाल करू या अपनी आरामदायक ज़िंदगी जीऊ। फिर मैंने चैन की सांसली । एक दिन विध्यालय से पत्र आया कि विध्यालय में पुनर्मिलन का समारोह रखा है तो मैंने अपनी पत्नी से जूठ बोल कर कि व्यापार के सिलसिले टूर जा रहा हूँ मैं गाँव के स्कूल में आया । पुनर्मिलन के बाद में अपनी पुरानी झोपड़ी में गया । मैंने घर पर फोन किया , मैंने जिज्ञासा से कोसो दूर था । मैंने देखा मेरी माँ ठिठुरती हुई जमीन पर पड़ी थी ,पर मेरी आँख से एक आँसू नहीं निकाल रहा था । मेरी माँ के हाथ में कागज़ था जो मेरे लिए लिखा हुआ था

मेरी माँ
प्रिय बेटा
        मुझे लगता मेरी जिंदगी इतनी ही है । और अब मैं फिर से शहर भी नहीं आ सकती । पर यह बहुत बड़ी बात होगी कि तुम मुझसे मिलने आओ । मुझे तुम्हारी बहुत याद आती थी बेटा । मुझे बहुत खुशी हुई यह सुन कर कि स्कूल में पुनर्मिलन का समारोह और शायद तुम भी आओगे । पर मैंने तय किया कि मैं स्कूल में नहीं आऊँगी , तुम्हारे लिए । माफ करना बेटा मेरी वजह से तुझे परेशानी हुई और तुम्हें शर्मिंदगी झेलनी पड़ी । तुम देखो ,जब तुम छोटे थे तब एक दुर्घटना में तुम्हारी एक आँख चली गयी , और मैं तुमको एक आँख के साथ बड़ा होते नहीं देख सकती  थी इसलिए मैंने अपनी एक आँख तुझे दे दी । मुझे खुशी होती है कि मेरी तुम दुनिया को अच्छी तरह देख सकते हो । मैं तुमसे बिलकुल नाराज़ नहीं हूँ कि तुमने मुझे ऐसा बर्ताव किया । दो बार तुम मुझसे नाराज़ हो गए थे मैंने अपने बारे में नहीं सोचा क्यूँ कि मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ बेटा । तुम बहुत याद आते हो मुझे , मुझे वो पल बहुत याद आते जब तुम जवान थे और मेरे साथ थे ।

माँ आज मुझे माँ कि कमी खल रही है ,माँ तुम्हारी दुनिया मुझे थी, मुझे बड़ी भूल हो गयी माँ , मेरी दुनिया अब बिखर गयी ।
तब मैं उसके लिए रोया जो मेरे लिए जी रही थी , मेरी माँ 

No comments:

Post a Comment