Wednesday, 29 February 2012

ज़िंदगी हर पल अपने अर्थ बदलती रही
हम हँसते रहे चाहे रोते रहे
पर वो अपनी रफ्तार से बस बहती रही
कभी बन कर सवाल कभी बन कर जवाब
वो हमें हर मोड पर मिलती रही
हम टूटते रहे बिखरते रहे
फिर खुद ही गिर कर संभालते रहे
और ज़िंदगी युही जलती बुजती रही
गम मिले कुछ इस तरह कि गम ही गम ना लगे
खुशियों की बात भी हमें गम बनाकर मिलती रही
क्या करे किसी से शिकवा , क्या करे किसी से शिकायत
अपने ही जब तोड़ते रहे ....
तो सांस मेरी हर पल घुटती रही
बस ज़िंदगी युही चलती रही हर पल अपने अर्थ बदलती रही
 

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