Sunday, 11 March 2012

जीवन है भँवरे सा ,
फूलो पर भिनभिनए
रस लेकर फूलो का
क्यूँ ये जहर बनाए
मँडराते है कलियों पर
जैसे बन कर साये
स्वार्थ क्यूँ इनमे इतना
कि कभी कभी कली को ही काट खाये ॥

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