लोकतंत्र का उत्सव
मना रहे इस बार
जनता नेताओं से
खाए बैठी है खार ।
जनता के हाथ में
आ गया एक हथियार
जूते से हैं लैस सब
चलाने को तैयार ।
नेताजी अब सोच रहे
कैसे होगा बेडा पार
भरी सभा में डर रहे
क्या रखें अपने विचार ?
जनता से कर धोखा
और करके अत्याचार
आज खड़े हैं आ कर वो
जूते का पहने हार ।
त्रस्त हुई अब जनता
नेताओं पर कर विश्वास
पर नेताजी घूम रहे
ले कर जीत की आस ।
कोई नहीं है ऐसा नेता
जो सुने जनता की पुकार
जनता तो ठगी ही जायेगी
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