गरमी गरम करती गरम हवायें,
ऊष्मा की तपती लहरें चल जायें,
हर क्षण जब हो तीक्ष्ण प्रहार,
व्याकुल हों प्यासे, शीतलता अभाव,
तपिश को बहने दो, बहेगी वह,
आकार बड़ा, प्राणी-प्राणी कहेगी वह,
‘मेरा रुप विशाल, जल जाओगे,
दूंगी सबको शुष्कता, क्या पाओगे?
कुछ नहीं, कुछ नहीं होगा मेरा,
हे, मानुष-जीव कहां दंभ तेरा?’
छिपकर रहना सिखा दिया है,
नित्य है संघर्ष बता दिया है।
ऊष्मा की तपती लहरें चल जायें,
हर क्षण जब हो तीक्ष्ण प्रहार,
व्याकुल हों प्यासे, शीतलता अभाव,
तपिश को बहने दो, बहेगी वह,
आकार बड़ा, प्राणी-प्राणी कहेगी वह,
‘मेरा रुप विशाल, जल जाओगे,
दूंगी सबको शुष्कता, क्या पाओगे?
कुछ नहीं, कुछ नहीं होगा मेरा,
हे, मानुष-जीव कहां दंभ तेरा?’
छिपकर रहना सिखा दिया है,
नित्य है संघर्ष बता दिया है।
"from vradhablog "
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