रब ! मेरे वतन को लगी है किसकी छाया ,
एकता और सर्वधर्म का प्रतीक रहा
फिर क्यूँ वक़्त ने इस पर जुल्म ढाया ,
आए पुर्तगाली ,फ्रांसीसी और अंग्रेज़ भी आया
मेहमान जानकर भारत माँ ने इनको भी अपनाया
सदभाव और प्रेम से रहने वालों में
क्यूँ ईष्या और नफरत का खेल रचाया ,
रहा हो हमेशा जो परिपूर्ण और सुखमय
क्यूँ उनमे भ्रष्टाचारी और बेईमानी को पनपाया ,
बेईमानो को नरभक्षी बनाकर तू जरा भी न घबराया ,
ईमानदार को मरते देख तू तनिक भी ना शरमाया
आते है सब तेरे दर ,कोई मांगे औरों की खुशी तो कोई मांगे माया
मैं भला क्या चहु तुझसे , दे सबको हिम्मत इतनी
कि कर सके बेईमानी ,भ्रष्टाचार का सफाया ।
No comments:
Post a Comment