Tuesday, 1 November 2011

:: मुझे यकीन था कि तुम जरूर आओगे::

पवन और राहुल दोनों बचपन से इतने अच्छे दोस्त कि स्कूल, कॉलेज और यहाँ तक कि फौज में भी एक साथ भर्ती हुए |  एकाएक युद्ध छिड़ गया और दोनों एक ही यूनिट में थे | एक रात उन पर हमला हुआ ,चारो तरफ से गोलियां बरस रही थी | ऐसे में अँधेरे से एक आवाज़ आई " राहुल ,इधर आओ मेरी मदद करो "| (पवन को गोली लग गई थी ) राहुल ने अपने बचपन के दोस्त पवन कि आवाज़ फ़ौरन पहचान ली | उसने अपने कप्तान से पूछा " क्या मैं जा सकता हूँ " कप्तान ने जवाब दिया "नहीं मैं तुम्हे जाने कि इज़ाज़त नहीं दे सकता ,मेरे पास पहले से ही जवान कम है , मैं अपने एक और जवान को खोना नहीं चाहता | साथ ही पवन कि आवाज़ से भी लग रहा था कि पवन बच नहीं सकता | राहुल चुप था | फिर आवाज़ आई " राहुल आओ ,मेरी मदद करो ""| राहुल चुप बैठा रहा क्यूँ कि कप्तान ने उसे जाने कि इज़ाज़त नहीं दी थी | वही आवाज़ बार बार आई | राहुल अपने को ज्यादा नहीं रोक सका और कप्तान से कहा "कप्तान ! वह मेरे बचपन का दोस्त है मुझे उसकी मदद के लिए जाना ही होगा | कप्तान ने बिना मन से उसे जाने कि इज़ाज़त दी | राहुल अँधेरे में रेंगता हुआ आगे बढ़ा ,और पवन को खीच कर अपने खड्डे में ले आया | उन लोगो ने पाया कि पवन तो मर चूका था | अब कप्तान नाराज़ हो गए और राहुल पर चिल्लाये " मैंने कहा था न कि वह नहीं बचेगा ,वह मर गया है और तुम भी मारे जाते ,मैं अपना एक और जवान खो बैठता ,तुमने वह जाकर गलती कि थी "| राहुल ने जवाब दिया "कप्तान मैंने जो किया वह ठीक किया था | जब मैं पवन के पास पहुंचा तो वह जिन्दा था और उसके आखिरी शब्द थे " राहुल मुझे यकीन था कि तुम जरुर आओगे |"
अच्छे रिश्ते बड़ी मुस्किल से बनते है और एक बार बन जाये तो उसे निभाना चाहिए |
हमसे अक्सर कहा जाता है कि सपने साकार करो | मगर हम अपने सपनो को दूसरो कि कीमत पर असलियत का रूप नहीं दे सकते | ऐसा करने वालो के पास चरित्र नहीं होता | हमें अपने परिवार ,दोस्तों और उन लोगो के लिए जिनकी हम परवाह करते है और जो हम पर निर्भर है ,अपने निजी हितो का त्याग करना चाहिए |
:- राजू सीरवी (राठौड़)

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