Saturday, 12 November 2011

सहानुभूति


विद्यालय में हमने दूसरो की मदद और दयाभाव के अध्याय पढ़े था। हमको बताया जाता था की हमेशा दूसरो की मदद करो । दूसरों की मदद करना ही हमारा कर्तव्य  हो। बहुतेरो के लिए यह बाते सिर्फ उपदेश था,या युही कह सकते की सिर्फ बकवास। मुझे पता है, कुछ ऐसे है जो रास्ते से गुजर रहे भिखारी को पहले गाली दी होगी, भीख तो दूर की बात । बूढ़ दादा-दादी या नाना-नानी को एक गिलास पानी देने में वक़्त बर्बाद हुआ होगा।

दया की भावना को दूसरो के उपकार से जोड़कर देखा जाता है,परमपिता दया करता है, हम सब दया करते हैं,कहा जाता है न की हर किसी के मन में कभी न कभी दया जरुर आती है  है।इसका उल्टा भी होता है ,जब दया करने वाला ईष्या का पात्र बनता है !
हारून आज फिर से कक्षा के बाहर खड़ा था । पिछले दो सालों से हारून को हर महीने के शुरुआती दिनों में इसी तरह खड़े होता देखा जा सकता था । तुम्हारा बकाया शुल्क जमा नहीं हुआ। कल से तुम्हारा विद्यालय में प्रवेश बंद ।’’मास्टर जी का यह वाक्य बहुत पुराना और घिसापिटा हो चुका था।

गरीब परिवारों की कितनी इज्जत होती है, यह मुझे तब पता चला जब हारून कक्षा के बहार खड़ा रहता था । हारून लिये गरीबी अभिशाप थी मगर औरो के वास्ते हंसी का कारण।

फटा और मैला कुरता ,, मैले मोज़े एक सफ़ेद तो दूसरा कला जूते भी जवाब देते हुए । और टाई को देख सालो पुरानी कहने में कोई शर्म या गलत बात भी नहीं थी, लेकिन हारून ने टाई से कई दफा आंसुओं को जरुर साफ किया होगा । यह शिक्षा की देवी सरस्वती का महान स्थल था, जहां पढाई अपनी अनसुलाजी लटाओं को सजाने का प्रयत्न तो करती लेकिन न जाने क्यों रोजाना सुलाजाने बजाय उलझती ही रही थीं।

हारून कभी निराश नहीं होता था, मन का साफ था | पढ़ाई में हारून ने मास्टर जी को कभी निराश नहीं किया था ।विद्यालय शुल्क जमा नहीं कराते कराते  जैसे तैसे पांचवी तक पंहुच गया । पहले मेरे साथ मेरी कक्षा में पढता था ,फिर विद्यालय के शुल्क के चक्कर में मेरे छोटे भाई की कक्षा में, आखिर उसे जैसे तैसे विद्या अर्जन करना था । यह हारून की किस्मत का दोष नहीं तो क्या था, उसके पिताजी के पास रहने को एक छोटा सा छप्पर और २ बकरिया थी | माँ -बाप मेहनत मजदूरी करके अपना पेट भरते थे,कभी कबार काम नहीं मिलता तो खाने के भी लाले पड़ते थे |

विद्यालय की तरफ से हारून को फरमान जारी किया था  कि हारून जरुर गरीब है पर थोडा शुल्क लेना अनिवार्य है,परन्तु हारून के पास देने के लिए कुछ भी नहीं था । पढाई का भाव तोल करने वाले, पढाई को व्यापर का जरिया बनाने वालो आदत से मजबूर होने के झूठे दावे करते थे। विद्यालय के पास इतनी क्षमता है वहा आसानी से कई गरीब बच्चों को मुफ्त में शिक्षा प्रदान की जा सकती था।

कई बच्चे स्कूल बैग हाथ में लटकाये खड़े थे।उब बच्चो के चेहरे मायूस लग रहे  थे। मैं कोई काम से प्रधानाध्यापक जी के कमरे के पास से जा रहा था। उन लडको में हारून भी खड़ा था। मैंने हारून से पूछा कि "यहाँ क्यूँ खड़े हो" मुझे पता था पर फिर भी मैंने पूछा। हारून का जबाव आँखों में आंसूं ला देने वाला था,‘‘विद्यालय का शुल्क जमा नहीं करा पाए इसलिए हमको विद्यालय से निष्कासित किया जा रहा है ।’’

 अभी शुल्क जमा नहीं किया तुमने :मैंने हारून से कहा  ।’’

हारून कुछ नहीं बोल रहा था, उसने सिर झुका लिया। मैंने हारून के कंधे पर हाथ रखा, यह सहानुभूति की भावना थी ,ज्ञान(पढाई)के चेहरे पर मंद मुस्कान आई । मुस्कान दिखावे की नहीं थी।

बहुत बार हारून को मास्टर जी के गुस्से का शिकार होना पड़ा। हारून रोता भी बहुत था , टाई  से आंसुओं को साफ भी,पर हारून का अच्छी शिक्षा  का सपना पीछे छुट रहा था । बहुत समय बाद पता चला  कि हारून भी अब बकरिया चराने जाने लगा | आखिर उसका भविष्य वही है। अब हारून विद्यालय भी नहीं आ रहा था । एक दिन हम सब सहपाठियों नेने मिलकर निर्णय लिया कि  हम हारून के सहपाठी है ,क्यों न हम सब कुछ धनराशी जमा कर के हारून कि स्कूल शुल्क जमा करने में मदद करे | आखिर हमने वही किया हम सब सहपाठियों ने मिल कर कुछ धनराशी जमा कर हारून कि शुल्क जमा करवा दी |हारून ने  अच्छी शिक्षा हासिल कर आज नौकरी पा ली और हंसी ख़ुशी अपना जीवन बिता रहा है | आज भी हारून जब हमसे मिलता तो भावुक हो जाता है .. मन ही मन हम सब सहपाठियों को तह दिल से शुक्रिया अदा करता है |


:-राजू सीरवी (राठौड़)

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