Monday 25 June 2012

वक़्त तो बहता पानी है
जो कहता कभी तेरी ,तो कभी मेरी कहानी है
हर पल हर लम्हे मेरी चुपी ,कोई ख़्वाहिश नूरानी है
ख़्वाहिशों का क्या है ,आज यह तो कल वो
रहती जैसे रेत पर कोई निशानी है
हमें नहीं पता ,जा रही है कहाँ
चलते जा रहे है वहाँ ,जहां ली जाती यह ज़िंदगानी है
ज़िंदगी भी भला निभाएगी कब तक
कौनसी इससे भी कोई दोस्ती पुरानी है
कहना चाहते तो कह देते ,दो लफ्जो में भी
पर जब लिखने बैठे तो जाना ,जैसे भूली बिसरी यह गजल पुरानी है
लिखते लिखते बीत गई सदियाँ जैसे
पर फिर भी अधूरी यह कहानी है
जाने कब पूरी होगी यह दास्तां
यह बात तो ना कलम ,और ना ही बहती इस स्याही ने जानी है
चार पल जो जी ले मुस्कुरा कर
तो हम भी कह पाएंगे
कि
जीवन की धूप कितनी सुहानी है

Thursday 21 June 2012

सावन की बुंदों में हूँ
और धरती की प्यास में भी
खुद को कहीं खोया भी नहीं
फिर भी
खुद की तलाश में भी हूँ
आसमान जैसी आशाओं की ऊंचाइयों में भी हूँ
सागर की तरह दर्द की गहराई में भी
खुशियों की भीड़ में शामिल रहता हूँ हर वक़्त
और
अपनी उदासी भरी तन्हाइयों में भी हूँ
में हूँ हवाओ की बेचैनी में
माँ के आँचल के सुकून में भी
हंस के सब कुछ लौटाने के जज़्बे में शामिल
पाओगे तुम मुझे
तो कहीं कुछ हासिल करने के जुनून में भी हूँ
चाँद की सीतल छाया में भी हूँ
सूरज की तेज़ रौशनी में भी हूँ
काही आंखो से बिखरे हुए मोती के नमक में
तो
कही हंसी से छलके हुए मिठास में भी हूँ
खुद को कहीं खोया भी नहीं
फिर भी
खुद की तलाश में भी हूँ

Sunday 17 June 2012

father's day
आज सुबह मेरे एक दोस्त ने मुझसे कहा कि"अपने पिताजी को wish किया ?"
मैंने कहा -क्यूँ ? ना तो आज उनका जन्मदिवस है और ना ही शादी की सालगिराह ... फिर क्यूँ wish ?
अरे आज father's day है ना तो आज का दिन अपने पिता के लिए खास होता है ।
मैंने कहा यह क्या होता ?
उसने तपाक से बोला-जैसे teacher's day ,mother's day ,वैलेंटाइन डे ,और न्यू इयर डे
उसे खुश करने के लिए उसे गिफ़्ट देते हैं और उसकी लम्बी उमर और अच्छे स्वास्थ्य के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं”
मैंने पूछा “इस चलन की उत्पत्ती कहां से हुई है?”
वो बोला  “वैसे तो इस चलन की उत्पत्ति का श्रेय पश्चिमी सभ्यता को है पर अब ये भारत में भी काफ़ी पोपुलर है” मैं सोच में पड गया हम भारतीय आज भी विदेशी चीजों के कितने इच्छुक हैं। विदेशी चीजों के लिए अपनी सभ्यता, संसकार एवं मान सम्मान का भी बलिदान करने को तैयार रहते हैं
अब एक खास दिन फादर डे मनाने के पीछे क्या तर्क है ये मेरी समझ के परे है सिर्फ़ एक दिन का मान सम्मान बाकी के 364 दिन का क्या? और फिर हर दिन क्यूं नहीं? माता पिता का इस दुनियाँ में कोई पर्याय नही है जिन्हों ने हमारी रचना की वो हर दिन ,हर पल पूजनीय हैं

जो मां बाप एक कमरे में चार चार बच्चे के साथ रह पाते थे उन्ही मां बाप को बुढापे में ये बच्चे एक बडे घर में अपने साथ नही रख पाते है “ओल्ड एज़ होम और सेकेन्ड इनिंग होम“ इन पश्चिमी सभ्यता वालों की देन है हम भारतीय भी इनका अनुशरण करने में पीछे कहां रहने वाले थे? बडे बडे शहरों मे रोजाना खुलते ऐसे होम इनका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं

आज जिनके भी पिता जीवित हैं या जिनकी माता जीवित हैं वो दुनियाँ के सबसे अमीर लोग हैं सबसे सम्पन्न लोग हैं

मेरे लिए हर दिन खास है
अपने माता पिता गुरुजन और प्रकृति के लिए
इनकी मेहर हम पर सदैव रहती है तो हम इनके लिए कोई खास दिन क्यूँ बनाए ॥

Saturday 9 June 2012

आज मन फिर उदास है
ना रात की है चाहत
ना सवेरे की आस है
आज दिल फिर उदास है

फिर उठ गया नकाब एक चेहरे से
फिर उतर गया एक मुखौटा
यह छिपे हुए जो चेहरे है
जब मेरे सामने आ जाते है
टूट जाता है भ्रम अपनेपन का
जब मुखौटे उतर जाते है 

फिर कुछ ऐसा आज हुआ है
एक खंजर ने मेरे दिल को छुआ है
जल रहा है मन ,उखड़ी हुई सी सांस है
आज फिर मन उदास है

गीला तो अपनों से कियाजाता है
गैरो से मुझे कोई सिकवा नहीं
अपने बैठे है गैर बन कर
गीला करू तो किससे करू
गैरों में भी कोई अपना नहीं

परछाइयाँ ही तो है
जो बुलाती है मुझे अपनी और
भागता हूँ मैं इनके पीछे
फिर से खाकर ठोकर
सिमट जाता हूँअपने आप में
समा लेता हूँ खुद को

इस उदासी में ,सन्नाटे में
यह अंधेरा मेरा वफादार है
मेरा अपना है ,राजदार है
इसका कोई चेहरा नहीं
नहीं पहनता कोई नकाब है

इस अंधेरे की गोद में आज
फिर पनाह की प्यास है
कोई संग नहीं है फिर से
आज फिर दिल उदास है

Thursday 7 June 2012

अजनबी देश में
अजीब भेष में
लोग परिंदो की तरह आए
चंद पल चहचहाए
प्यार के गुण वो गए
फिर मंज़िल की तरफ अपनी
वो कूँच कर जाएँ

मिलन की खुशी दें
ज़िंदगी एक नयी दें
परदेश में भी वो
एहसास अपने होने का दिलाएँ
आंखो में इंतज़ार रहें
ता उम्र उनकी वापसी के
मगर मेहमान की तरह
पल भर के लिए वो आए
फिर मंज़िल की तरफ अपनी
वो कूँच कर जाएँ

Tuesday 5 June 2012

कहने को आज पर्यावरण दिवस है ,पर पर्यावरण के लिए कोई खास दिन की नहीं बल्कि पर्यावरण के बारे में रोज़ चिंता करने की जरूरत है ॥ क्यूँकि विकास और प्रगति के नाम पर जंगलो को काटा जा रहा सीमित हो रहे जंगल हमारे आने वाले भविष्य के लिए बड़ी दुखद बात है ॥ पेड़ है तो जीवन है ,जंगल है तो जहां है ।
जिस तरह हम भोजन ग्रहण करना हमारी दिनचर्या का हिस्सा है उसी तरह एक पेड़ लगाकर उसकी देखभाल करना भी अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लेवे और फिर से इस पावन धरा को हरा भरा बनाने में अपना योगदान देवे ...
हमारा पर्यावरण अगर सेहतमंद नहीं हैं तो हम अपने स्वास्थ्य के प्रति निश्चिंत नहीं हो सकते।
आज पीने के पानी कि किल्लत होती है ,गर्मी से लोग बेहाल होते है ,बिन मौसम बरसात से लोगो को नुकसान होता है ,सर्दी का मौसम भी बिगड़ता जा रहा है ॥ पूरे पर्यावरण का समीकरण बिगड़ रहा है ,और इन सब का कारण काटते पेड़ ,सिमटते जंगल ....

जहां पूरी दुनिया ग्लोबल वार्मिंग जैसी जटिल समस्या से लड़ने के उपाय ढूंढ रही हैं वहीं आप और हम अपनी दिनचर्या में थोड़ी सी सावधानी या बदलाव लाकर पर्यावरण को बचाने में बड़ा योगदान कर सकते हैं।

प्राकृतिक के खिलाफ बढ़ते इंसान के गलत कदम के कारण हिमालय सहित देश के वन संपदा से हजारों ऐसी जड़ी-बूटियां खत्म हो रही हैं, जो कई तरह की बीमारियों को दूर रखने की ताकत रखती हैं।

आज मानव प्रकृति को देता है नकार,
विनाश के साधन को करता है तैयार,
जो पल भर में मचाता है,
पृथ्वी पर क्रूर हाहाकार ।
क्यों प्रकृति के प्रति इतना विकर्षण ?
क्यों आधुनिकरण के प्रति इतना लगाव ?

मानव –मानव में प्रेम सदा,
करता है मानवता का विकास ।
दुर्भाग्य नहीं सौभाग्य है यह,
जब मानव करता अपना चरम विकास ।
पर रहे ध्यान सदा इसका,
इस विकास के नशे में,
हो न प्रकृति का नाश ।
वरन होगा अगर प्रकृति का नाश,
तो एक न एक दिन -
अवश्य हो जायेगा मानव सभ्यता का सर्वनाश
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पर्यावरण के आभूषण – पेड़ों, वनों, जंगलों को काट दिया गया,
सांस लेने के लिए मिली हवा को भी जहरीला बना दिया गया ।
प्राकृतिक संसाधनों का अनुचित दोहन किया गया,
भ्रष्टाचार के खेल में पर्यावरण को भुला दिया गया ।

उपयोगी व उपजाऊ कृषि भूमि को खत्म किया जा रहा है,
भविष्य में अनाज उत्पादन के बारे में नहीं सोचा जा रहा है ।

विभिन्न जीव जन्तु भी हैं पर्यावरण के अंग,
पर बढ़ते प्रदूषण ने उनका जीवन किया बेरंग ।
गौरैया, गिद्ध, अन्य  पक्षी,जलीय जन्तु समाप्ति की ओर हैं अग्रसर,
मनुष्य भी इसके प्रभाव से नहीं है बेअसर ।

पर्यावरण का सन्तुलन यदि ऐसे ही बिगड़ता रहेगा,
मनुष्य के जीवन पर भी इसका कुप्रभाव पड़ता रहेगा ।
आज पीने को शुद्ध पानी नहीं, सांस लेने को स्वच्छ हवा नहीं,
प्रदूषण से मनुष्य को ऐसे रोग मिले, जिनकी दवा नहीं ।

विकास के नाम पर पर्यावरण का शोषण रुकना चाहिए,
पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सभी को जागरूक होना चाहिए ।

Sunday 3 June 2012

आंसू का कतरा-कतरा बहकर फर्श पर गिरा है,
बूंद को कोई संभाल न सका,
शुष्क आंखों में गीलापन,
लबालब पानी है भरा,
खारा पानी है वह,
क्या नमक मिला है?
नहीं दर्द भरा है।
पलकों को भिगोया है,
सिलवटों को छुआ है,
उनका सहारा लिया है,
गंतव्य मालूम नहीं,
फिर भी आंसू बहा है होता हुआ किनारों को छूकर,
सरपट दौड़ा है,
चमक थी अनजानापन लिए,
सिमेटे ढेरों अल्फाज - कुछ जिंदगी के,
कुछ अनकहे,
रुढककर थमा नहीं,
रास्ता जानने की फुर्सत कहां,
बस चाह थी सूखने की।

कल पाने की चाह में
आज खोता जा रहा है
वो कल भी ना आयेगा
रोज़ खुद को आज में पाएगा
आज है जो साथ तेरे बस वही अनमोल है
कल तो रोज़ आयेगा , यह दुनिया गोल है ....

कोस रहा आज क्यूँ कल को
जो गया वो फिर ना आयेगा
उस कल में तो तू जी न सका
अब चिंता में अगले कल को
कल के गणित में जोड़ रहा , आज का जो मोल है 
कल तो रोज़ आयेगा , यह दुनिया गोल है 

कर ले आज तू अपने मन की
कल में जो भी दोष रहा
जो सीख लिया तुमने आज में जीना
मिल जाएगा ,कल जो खोज रहा था
आज ही कल का माप दंड है , कल के तोल में झोल है
कल तो रोज़ आयेगा , यह दुनिया जो गोल है ॥