Thursday 14 February 2013

जय श्री आईमाता जी की
सीरवी समाज के भाई बंधुओ समाज विकास के लिए और समाज को पहचान दिलाने के लिए सिर्फ खुद की प्रसिद्धि या खुद की उन्नती काफी नहीं है , समाज में उस तबके का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए जो सबकी बराबरी नहीं कर सकते है ।
आजकल हम देख सकते है कि दक्षिण भारत में माँ आईजी के बहुत से मंदिर बने है ।
बहुत बढ़िया बात है ,देवी के प्रति आपकी श्रद्धा ऐसे ही बनी रहे और माँ आईजी सबका कल्याण करे ।
पर क्या समाज का विकास सिर्फ मदिर बनाने और लाखों करोड़ो खर्च  कर मंदिर बनाने से हो जाएगा ?
या इससे यह सिद्द हो सकता कि आपकी भक्ति, सच्ची भक्ति और श्रद्धा है माँ आईजी के प्रति ?
श्रद्धा और भक्ति को जब मूल्यो में नहीं तोला जा सकता तो ,क्यूँ दिखावा किया जाता समाज में "भडी बीज़" जागरण या मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह पर बोलियाँ लगाकर ?
क्या बोलियाँ लगा कर उस धनराशि से किसी जरूरतमंद की मदद होती है ?
बोलियों से मिलने वाली राशि समाज विकास के लिए खर्च की जाती है ?
बोलियों की राशि को बने बनाए मंदिरों में लगाने की बजाय समाज में जरूरतमंद को शिक्षा ,जरूरतमंद को चिकित्सा उपलब्द करने में किया है कभी ?
कोई धनवान अपनी हैसियत से बोली लगाता , कोई माध्यम वर्गीय अपनी आय को ध्यान में रखकर ।
कभी कबार तो कई भाई बंधु बोली के लिए मुंह भी नहीं खोलते कि कही कोई उनसे ज्यादा बोली चढ़कर उनका मान कम ना कर दे ।
और कई बार होता है बोली लगाई जाती और धनवान व्यक्ति बोली को बढ़ा चढ़ा कर लेते है , जिससे मध्यमवर्गीय लोगो के मन में एक लज्जा सी होती और कुंठित से रहते ।
और फिर एक दूसरे में बैर पनपता है ,कि "भाई हम अपना अलग मंदिर बनाएँगे ,बड़े लोगो की हम बराबरी नहीं कर सकते "
फिर कुछ लोग -परिवार मिल कर अलग से मंदिर बनवाते ,सब जने मिल कर करोड़ो खर्च करते मंदिर बनाने में ,और वो भी वही रास्ता अपनाते मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह व जागरण पर , बोलियाँ लगते । कुछ साल तो हिलमिल कर रहते फिर उनमे भी बोलियों की वजह से टीस बन जाती और फिर से एक नया मंदिर ।
कब तक चलेगा यह सिलसिला ?
मंदिर पहले भी बनाते थे ,भजन संध्याये भी होती थी पर बोलियाँ नहीं हुआ करती थी , सब को समान रूप से काम दिया जाता था
पहले आज की तरह "पूजा ,ध्वजा ,पाट ,प्रसाद ,आरती ,दीवान जी का बधावा ,भेल पूजन " इन सब की ख़रीदारी नहीं हुआ करती थी ।
जिससे समाज में एकता और भाईचारा बना रहता था ,और समाज में समंजस्य भी बना रहता ।
समाज में कई बड़े और अच्छे अच्छे ज्ञानी लोग है , कहते है ना गुप्त दान महा दान ,तो ये बोलियो में उस दान की नुमाइस करके आखिर क्या दिखाना चाहते ?
आज समाज तिनके की तरह बिखर रहा है ,जरूरत है कि समाज को फिर से एकता के धागे में बांध कर भाईचारे को बढ़ाए व समंजस्य बनाए ताकि समाज का नाम हो और समाज का विकास हो । इसलिए ऐसे कार्यो से वंचित रहे जो समाज को तोड़ने का काम करते है ।

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भजन संध्या और मंदिर प्राण प्रतिष्ठा पर बोलियाँ लगानी चाहिए या नहीं ?
:-राजू सीरवी (राज सीरवी राठौड़)

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