Tuesday 30 September 2014

एक सफर मेरा....

एक सफर मेरा....
यात्रा
#official_trip

मुल्लायांगिरी पर्वत श्रेणियों की तलहटी और कर्नाटक के दक्षिण पश्चिम में बसा एक सुंदर शहर कडुर ,जो आज  #चिकमगलूर के नाम से जाना जाता है इस जिले को "मलेनाडु "(मले = वर्षा ,नाडु =प्रदेश ) (भरी वर्षा का क्षेत्र ) कहा जाता है ।
इसी प्रदेश से जल प्रवाह होकर दक्षिण भारत की नदियां #तुंगा और #भाद्र का उद्गम होता है ।  
वहाँ पर सभी धर्मों की पूजनीय समाधियाँ हैं - कोदंडराम मंदिर जो कीहोयसल और द्रविड़ वास्तुशास्त्र शैली का मिलाप माना जाता हैजामिया मस्जिद तथा न्यू सेंट जोसेफ कैथेड्रल जिस का बरामदा आकर्षक सीप की आकार में बनाया गया है।

चारों ओर चिकमगलूर हिल स्टेशंस जो गर्मियों की छुट्टियाँ बिताने के लिए प्रसिद्ध स्थल है क्यों कि के वे गर्मियों के दौरान भी शीतल रहते हैं।
रत्नागिरी बोरे (जो आज महात्मा गांधी उध्यान से जाना जाता ) यहा की प्रकृतिक सुंदरता का एक भाग है
अच्छे कॉलेज और स्कूल ,शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान है चिकमगलूर ।

भारत में सबसे पहले कॉफी का उत्पादन इस(चिकमगलूर)  जिले में हुआ ।

सफर शुरू हुआ .....
चिकमगलूर से मंगलोर का
लगभग 150 किलोमीटर की दूरी
चिकमगलूर का दृश्य देखते ही लगता है हम स्वर्ग में विचरण कर रहे है ।
बहुत ही सुंदर शहर चरो और हरियाली ,बादलों से गिरे पर्वत ,कॉफी के बागान और धूप में भी ठंडा सुहाना मौसम ।
सुबह बस स्थानक पहुंचा नहा धो कर काम पर निकला । शहर का नज़ारा देखते ही बनता था ।
यहाँ के लोगो में अतीति आदर भाव और अच्छे विचार है । कहते है ना जहा की माटी में जादू हो वहाँ के लोगो में भी जादू होता है और वो मैंने देखा है ।

काम खत्म करके मुझे गोवा जाना था तो मैंने तय किया मंगलोर होके जाएंगे । और वाकई में मेरा निर्णय बहुत सही रहा ।
तो तकरीबन 4 बजे चिकमगलूर से निकला । बस अपनी रफ्तार से चल रही । खुशकिस्मती से मुझे खिड़की की सीट मिली ,जहां से मुझे कई नज़ारे देखने को मिले ।

सड़कें बहुत अच्छी है कर्नाटक में ,

चिकमगलूर से निकलते ही रास्ते में इतने मोड कि बस चालक पल  पल बस का स्टेरिंग  दायें से बाए मोड़ रहा था । घुमावदार सड़क और सड़क के किनारे ऊंचे ऊंचे पहाड़ ,पहाड़ों पर हरियाली और बड़े बड़े पेड़ कहीं बहते पानी के छोटे छोटे नाले और आसपास कॉफी के बागान ,हल्की हल्की बारिश .... वाह बहुत ही अढ्भुत नज़ारा आंखे भी पलकें झपकाना भूल गयी ।

1 घंटे की दूरी तय कर कोट्टिगेरा  पहुंचा ।
यहाँ कॉफी का आनंद लिया ,बहुत ही स्वादिष्ट कॉफी और वाकई में इस कॉफी में इस क्षेत्र की खुशबू महसूस होती है ।

असल सफर अब शुरू हुआ ....
जब कोट्टिगेरा  से बस चली तो कुछ देर बाद कुछ अलग ही नज़ारे देखने को मिले रास्ता वही गुमावदार ....... पर जो नज़ारे देखे ..... नज़ारे थम गयी ....
बस ऊंचे पहाड़ पर घुमावदार रास्ते पर चल रही थी .... और मेरी धड़कन बढ़ रही थी ।
एक तरफ ऊंचे पहाड़ ,ऊंचे पेड़ ,हरियाली और झरनों से कलकल बहता पानी मन को मोहित कर रहा ,वही दूसरी तरफ झकते ही ...... धड़कन थम सी जाती ... ऐसा लग रहा मानो धरती यही खत्म हो गई इसके बाद कुछ भी नहीं है ,

बादल इन पहाड़ों के झुंड के बीच केद ,नीचे झाँको तो कुछ नज़र ही नहीं आता । मानो दुनिया यहीं खत्म हो गई ,,,,,,और बस की रफ्तार से दिल की धड़कन दोगुनी हुए जा रही थी ।

मैंने बादलों को छूआ .... महसूस किया बादलों का सामना किया .......ठंडी सर्द हवा ..... एक अलग ही दुनियाँ का अहसास करा रही थी । बहते झरने .... बादलों की धुंध ...वो ऊंचे पहाड़ और सीलन लगे पेड़ .... 2 घंटे का ये मेरा अढ़्भुत सफर #ujire तक रहा ....


बहुत ही अच्छा अनुभव रहा मेरा इस सफर में ....फिर से जाना चाहूँगा ...