Thursday 29 November 2012

"बुँदे..... ओस की"
घने अंधेरे में "छुप" कर बैठी हुई
शायद सो भी गई है
भीगो कर हरियाली को
अपने "आँसुओ" से
ना जाने कहाँ "गुम" हो भी गई
प्रभात की नयी किरणों के साथ
नयी कोपलों पर
सींप के चमकते "मोतियों" की तरह
ये छोटी छोटी बुँदे "ओस" की
अपने खेल में व्यस्त है
मन मेरा भी व्याकुल है ...
साथ खेलने को इनके
मगर क्या मैं समझ पाऊँगा
"इनको"
"इनके विधान को"
रंग सातों समेटे हुए
गहराइयों में अपनी
फिर भी संघर्षरत है...
अपने अस्तित्व को हर पल
कब तक साहस दिखाएगी ...मुस्कुराएगी
और ???
दिन चढ़ने की आहट ... प्रलय बन खड़ी है
यूं ... पालक झपकते ही काही साथ ले जाएगी "इन्हे"
मैं मूक दर्शक बन खड़ा हूँ टकटकी लगाए
इनकी विदाई पर सिर्फ "मायूस" हो सकता हूँ
मगर इस बात की खुशी है अब भी
कि
यह कल फिर आएगी ....मुस्कुराएगी
अपने छुटपन को दरकिनार कर
नया सवेरा लेकर आएगी
नयी ऊर्जा और विश्वास के साथ
ये बूंदे ओस की ........

Saturday 17 November 2012

बवंडर में घूमती ज़िंदगी 
किसका करे यकीन ?
सोचती ये ज़िंदगी 
कभी अश्क तो कभी हंसी को सहेजती संवारती
और बनावटी ज़िंदगी में खुद को खोती ज़िंदगी 

आज छल अधिक है ,विश्वास खोया सा
दिल में कितने टुकड़े ,वो लहूलुहान सा
सपनों की राख़ ले ,विसर्जित करने को जाती
हर मोड़ पे धोखा खाती ,छली जाती ज़िंदगी 

फिर भी जैसे आदत हुई जा रही उसे
चलना है तो चली जा रही है ये
मजबूर है कैसे ना करे यकीन
हर बार टूट कर बिखरती जा रही है ज़िंदगी

प्यार ,साथ ,विश्वास ,जज़्बात ,स्नेह ,अपनत्व
जैसे भौतिकता के रंग में ही रंगे जा रहे है ये तत्व
 अनमोल का लगे मोल ,ढ़ोल में है पोल
लेकिन
ज़िंदगी की ओट में ,ज़िंदगी को छुपती ,ज़िंदगी को जीए जाती
हर एक ज़िंदगी 



मन
कभी शांत ,कभी विचलित
कभी मौन ,कभी मुखरित
कभी लोभी ,कभी त्यागी
कभी सांसरिक ,कभी वैरागी
कभी गहरा ,कभी सतही
कभी प्रेमी ,कभी निष्ठुर
कभी घाघर ,कभी सागर
कभी उपवन ,कभी बंजर
कभी स्वस्थ ,कभी रोगी
कभी स्नेही ,कभी क्रोधी
कैसा है मन
असंख्य जिज्ञासायेँ, अनंत अभिलाषाएं
भावो के अनगिनत रंग ,स्वयं में समाएँ

कैसा है यह मन .......

Friday 12 October 2012

आप कहा खो गए भगवान .........

दुर्योधन महाभारत का युद्ध छोड़ के भागा
और कहा
अब "NO MORE KILLING"
तब लोगो ने उससे पूछा
भैया WHY THE SUDDEN CHANGE IN YOUR FEELING ? "
सकुनी बोला
अरे"DUDE " !
उसका कोई दोष नहीं .
"21st CENTURY "का उसे होश नहीं
वो तो है बेचारा किस्मत का मारा
खेल गया भगवान
"POLITICS "सतयुग में भी और
पूरी दुनिया से कहा
"YUPPIE " दुर्योधन हारा ,दुर्योधन हारा
सुन कर ये
दुर्योधन को नहीं रहा कोई होश
मिट गया उसका पूरा जोश
और टल्ली हो कर बन गया वो खरगोश
तब कायर बना शायर
और कुछ ऐसा कहा गया
जो आने वाली कुछ सदियों तक
मिसाल बन गया
"कृष्ण ने जब रण छोड़ा
तो रणछोड़ नाम मिला है "
ज़रा गौर फरमाईये
"कृष्ण ने जब रण छोड़ा
तो रणछोड़ नाम मिला है "
हर "CHALLENGE " से मेरा दिल भी
बड़े जिगर से खेला है
ज़रा देख लो मेरा सर
कैसे मेहनत से गीला है
ज़रा देख लो उस की ओर
कैसे थकान से पीला है 
फिर भी
मैं करू तो साला "CHARACTER "ढीला है
माँगा जब दुयोधन ने किसन से इंसाफ
हंस कर बोले भगवान
"पहले कर अपने मन को साफ "
बोला दुयोधन
"GOD TUSSI GREAT HO "
लेकिन एक "CHANCE "तो दो
चाहे कितना भी "LATE"  हो
ना जाने वो कौन सी मनहूस घड़ी थी जब
भगवान ने कहा "तथास्तु "
और दुर्योधन आया
"21st CENTURY " में
बनकर हमारा अस्तु
कहा "GOOD BYE " दुर्योधन ने
और वादा किया 
करेंगे भविष्य में आँखे चार
जब में बनकर आऊंगा
"21st CENTURY  " का भ्रष्टाचार
अब हुआ यूँ कि
दुर्योधन ने रखा
अपने वादे का मान
आ गया वो बेशरम
चलने अपनी बाकी चाल
भ्रष्टाचार खा रहा है भारत की "आम -बान -शान

लेकिन इन सब में आप कहा खो गए भगवान .........



"just so that this poem rhymes 
let me add a few useless lines 
"god -dog "conversation ends here 
save water ,drink beer :P 



Saturday 7 July 2012

सुकून इन्सान के जीवन का वह पल ! जिसके के लिए इन्सान अपनी पूरी जिंदगी निकाल देता है ! फिर भी इन्सान पूरी उम्र तरसता रहता हैं ,उस एक पल के सुकून के लिए !
सुकून जो होता है सिर्फ क्षणिक भर का और कुछ पलों का ! और यह पल इन्सान के जीवन मैं कब आते हैं ! और कब यह पल निकल जाते हैं ! इसका अंदाजा तो इन्सान कभी लगा ही नहीं पाता ! और फिर तैयार हो जाता है! वह सब कुछ करने के लिए जो उसे एक पल का ही सही पर सुकून दे सके !
इन्सान को सुकून कब मिलता है ! क्या कोई इन्सान है जिसने पाया हो सुकून इस दुनिया मैं ! मैं जब ढूँढने निकला तो मुझे एक भी नहीं मिला ! आज हम अपने जीवन मैं कितना भी कर लें , कुछ भी कर लें पर सुकून तो जैसे हमसे इतनी दूर है ! कि लगता है हमारा पूरा जीवन ही निकल जायेगा ! इस एक पल के सुकून को पाने मैं !

जीवन की आपाधापी मैं इन्सान आज इतना उलझा हुआ हैं ! दिनोदिन बढ़ती समस्याएं और दिन बा दिन प्रदूषित होता हमारे आस-पास का वातावरण सब कुछ इतना बड गया कि इन्सान उलझ के रह गया आज के माहौल मैं ! या यूँ भी कह सकते हैं कि इन्सान ने अपने आप को इतना व्यस्त कर लिया है ! कि वह सुकून और ख़ुशी महसूस ही नहीं कर पाता ! और वह दूर होता जाता है , अपनों से, अपने समाज से, नहीं रहता किसी का भी ध्यान ,और लग जाता कभी ना खत्म होने बाले जीवन के कार्यों मैं ! 
आज इन्सान लगा हुआ है मशीनों की तरह काम करने ! बस कभी ना रुकने बाले घोड़ों की तरह ! और नहीं है दीन-दुनिया कि खबर ! आज इन्सान ने अपने जरूरतें इतनी पैदा कर ली हैं! जिन्हें पूरा करते करते इन्सान पर बुढ़ापा तक आ जाता है फिर भी ! जरूरतें कभी पूरी नहीं होती !अपितु जरूरतें समय के साथ साथ बढ़ती जाती हैं ! 
एक समय था जब इन्सान अपने जीवन मैं सुख और सुकून का अनुभव करता था ! तब इन्सान आज की तरह आधुनिक नहीं था ! और ना ही उसकी जरूरतें ज्यादा थी ! उस वक़्त उसे चाहिए था ! रोटी -कपडा -मकान ! इन्सान के पास होता था उसका सबसे बड़ा हथियार सब्र ! जो उसे हमेशा सुकून का अनुभव कराता था ! फिर वह पल भर का ही क्यों ना हो ! तभी तो आज के कई बुजुर्ग यह कहते हैं ! कि समय तो हमारा था ! जिसमें इन्सान के पास सब कुछ था ! और रहते थे सुकून से ! जितनी चादर उतना ही पैर फैलाता था ! और उठाता था जीवन मैं सुकून का आनंद !
लेकिन आज के माहौल मैं उसे यह सब कुछ देखने को नहीं मिलता ! 

अगर जीवन मैं पाना है सुकून और सुख की अनुभूति ! तो जुड़े रहिये अपने परिवार के साथ, जुड़े रहिये अपने समाज के साथ ! ना दौड़ें आधुनिकता की तरफ अंधों की तरह ! 
आज इन्सान के शौक इतने हो गए हैं ! की वह जीवन भर उन्हें पूरा नहीं कर सकता ! इच्छाएं तो अन्नंत हैं ,जिनका कोई अंत नहीं ,और सुकून होता है पल भर का ,तो उस पल को महसूस करें , 
ज़िंदगी को जीएं ,काटे नहीं

Wednesday 4 July 2012

ज़िंदगी तेरी हकीकत से कुछ
 यूं बेखबर रहा हूँ
मंज़िल की तलाश में हमेशा  दर -ब -दर भटक रहा हूँ
ज़िंदगी
जाने किस राह किस मोड पर
तू हम पर मेहरबान हो
तू तो कभी ना हो पाई मेरी
पर हमेशा तेरा हमसफर रहा हूँ मैं
अजीब है यह खेल लकीरों का
टूट कर आईने की तरह बिखर रहा हूँ मैं
हालात के डर से कभी दो कदम भी ना चल सका
वक़्त के खौफ से हमेशा अपने घर में रहा हूँ मैं
मुश्किल राहों पर तन्हा चलता गया
हर दौर से कुछ युही गुज़र रहा हूँ मैं
परख रहा हूँ आज अपने और गैरो को
हर रिश्ते में कुछ यू ढल रहा हूँ मैं
इंसान हूँ मैं भी ,मैं भी दिल रखता हूँ
चोट खाकर फिर भी बस चल रहा हूँ मैं
ख़्वाहिश तो एक बूंद अश्क की तरह है
जिसने पलकों पर अपना घर बना लिया है
पर धीरे धीरे उन पलकों से उतर रहा हूँ मैं
सिर्फ चलना ही अगर ज़िंदगी है
तो हाँ बस चल रहा हूँ मैं


सिर्फ चिल्लाने से देश नहीं बदलेगा ,अपने अधिकारो का इस्तेमाल करे ।

लोकतन्त्र यानि "जनता के द्वारा जनता के लिए "
मतदाता ही लोकतन्त्र के मालिक है ॥ पर परिस्थितिया बदल गयी है ... जनता के द्वारा चुने लोग आज जनता का ही शोषण कर रहे है ॥ लोकतन्त्र सिर्फ नाम मात्र है , वर्तमान सरकार तानाशाही बन चुकी है ॥

अक्सर ऐसा होता है कि आजकल अपराधिक गतिविधियों से जुड़े लोग चुनाव के अखाड़े में होते है , वो अपने गैर कानूनी धंधे चलाने के लिए राजनीति को मोहरा बनाते है , जनता के सामने विकल्प है पर जानकारी नहीं उस विकल्प की .... पैसो के लालच या डर की वजह से वो किसी एक को वोट देने पर मजबूर होते है ॥
सरकार जागरूकता अभियान चलती है कि हर नागरिक अपने वोट का जरूर उपयोग करे , होने भी चाहिए ऐसे अभियान

पर सरकार जनता को इस बात से जागरूक नहीं करती कि जनता के पास सबको खारिज करने का अधिकार भी है । कोई  प्रत्यासी आपको पसंद नहीं है ,आपको लगता है कि उनमे से कोई भी जीतेगा तो जनता का शोषण होगा तो उन सब प्रत्यासियों को खारिज कर सकते है ।

पर सरकार इसे जनता तक नहीं पहुँचती ।

चुनाव कराने सम्बन्धित अधिनियम की धारा 49 (O) के तहत भारतीय मतदाता को यह भी अधिकार दिया गया है कि यदि वह समझता है कि कोई भी प्रत्याशी उपयुक्त नहीं है तो वह अपना मत किसी को न दे और इस बात को प्रारूप 17 A पर दर्ज कराए. यानी भारतीय नागरिक को मत देने के अधिकार के साथ-साथ मत न देने का भी अधिकार दिया गया है.

इस अधिकार का उपयोग कर हम एक जिम्मेदार और कर्तव्यनिष्ठ जनप्रतिनिधि का चयन कर सकते है ..

बहुत ही साधारण है

आप अपने पोलिंग बूथ पर जाए और चुनाव अधिकारी से मांग करे  "मैं किसी को वोट नहीं करना चाहता प्रारूप 17  उपलब्ध कराएं "

कल्पना करें कि सबसे ज्यादा मत पाने वाले उम्मीदवार से ज्यादा मतदाता सभी उम्मीदवारों को खारिज करने का विकल्प चुनते हैं. सैद्धांतिक रूप से इसका अर्थ होगा कि उस चुनाव क्षेत्र में ज्यादा मतदाता यही समझते हैं कि कोई उम्मीदवार चुना जाने लायक नहीं है. ऐसी दशा में चुनाव रद्द करा कर फिर से कराए जाने चाहिए, जिसमें पिछली बार खड़ा कोई भी प्रत्याशी पुनः खड़ा न हो.

यही बात राजनीतिक दलों के लिए खतरे की बात है. कहीं ऐसा न हो कि बड़े पैमाने पर जनता राजनीतिक दलों व उनके उम्मीदवारों को खारिज करना शुरू कर दे. अधिकारी भी अभी वर्तमान व्यवस्था के बदलाव के पक्ष में नहीं हैं. उनका निहित स्वार्थ इसी में है कि वर्तमान समय में मौजूद भ्रष्ट व्यवस्था ही कायम रहे. इसका प्रमाण है मतदान कराने हेतु जिम्मेदार अधिकारियों- कर्मचारियों का मतदाता के प्रति रवैया.

यह बड़ी अजीब बात है कि मतदाता जागरूकता को तो अच्छा समझा जाता है. लेकिन क्या मतदाता जागरूकता इतना भर है कि हम घर से निकल कर किसी को भी मतदान कर आएं? अधिकारियों को अभी यह लगता है यदि कोई मतदाता धारा 49 (ओ) के तहत अपने अधिकार का इस्तेमाल करना चाहे तो उनका काम बढ़ जाएगा.

मत देना तो जागरूक मतदाता की पहचान है लेकिन यदि आप किसी को मत न देने का अधिकार इस्तेमाल करना चाहें तो ऐसी टिप्पणी की जाती है कि क्या सबसे ज्यादा जागरूक आप ही हैं? या फिर यह कहा जाता है कि किसी को मत नहीं देना है तो यहां आए ही क्यों हो? इससे तो अच्छा होता कि घर बैठते. अधिकारियों की सोच इस मामले में अभी मतदाता के प्रति नकारात्मक है.

भ्रष्ट एवं आपराधिक पृष्ठभूमि के उम्मीदवारों को चुनाव के मैदान से बाहर करने का यह बहुत कारगर औजार हो सकता है. यदि जनता तय कर ले कि सभी अवांछनीय लोगों को चुनाव लड़ने से रोका जाए तो बड़े पैमाने पर लोग सभी उम्मीदवारों को खारिज करने के अधिकार का इस्तेमाल कर सकते हैं. और राजनीतिक दल भी फिर इस डर से कि कहीं जनता उनके उम्मीदवारों को नकार न दे सही किस्म के लोगों को उम्मीदवार बनाना शुरू करेंगे.

अभी तो उनको मालूम है कि जनता की मजबूरी है कि उसे उन्हीं में से किसी एक को चुनना है. इसलिए दल जनता की भावना को धता बताते हुए भ्रष्ट एवं अपाराधिक पृष्ठभूमि के लोगों को ही उम्मीदवार बनाते हैं.

दूसरा यह नियम बनाना कि यदि सबसे ज्यादा मत पाए उम्मीदवार से भी ज्यादा लोग सभी उम्मीदवारों को खारिज करने वाला बटन दबाते हैं तो चुनाव रद्द कर पुनः नए उम्मीदवारों के साथ मतदान कराना जिसमें पिछली बार खड़े प्रत्याशियों पर प्रतिबंध हो. इस प्रकिया से जनता अंततः सही उम्मीदवार को चुन लेगी और तमाम अवांछनीय प्रत्याशी खारिज कर दिए जाएंगे.

तो खुद भी जागे और औरों को भी जागरूक करे ॥ यह एक महत्वपूर्ण कदम होगा देश में भ्रष्टाचार ,अन्याय और भ्रष्ट व्यवस्था से निजात दिलाने के लिए ... 



 

Tuesday 3 July 2012

हमने देखा है जो भी अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठता है उसके साथ एक अपराधी जैसा सुलूक होता है ॥
जो मीडिया एक समय जनता की आवाज़ बन कर अन्याय के विरुद्ध हुआ करता था आज वही मीडिया अन्याय के दलदल में है ,बिकाऊ मीडिया  ईमानदार पत्रकारो को अपराधी ठहरा देता है ,
यह तो वही हुआ "जिसकी लाठी उसकी भैस " जिसके पास ताकत है वो कुछ भी कर सकता है ।
लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कही जाने वाली पत्रकारिता आज अपना ही आस्तित्व  खो रही है ।
कभी मीडिया का नाम आते ही लोगो के जहाँ में क्रांति, विस्फोट, तख्तापलट, परिवर्तन, जागरूकता जैसे शब्द लोगो के जहन में आने लगते थे आज मीडिया में स्टिंग आपरेशन, पेड़ न्यूज़ , टी आर पी, जैसे शब्द जुड़ गए है आज की मीडिया का रूप मिशन से बदल कर प्रोफेसन हो गया है
 भारतीय मीडिया का पहला दूसरा और तीसरा दौर कफ्ही सराहनीय रहा है लेकिन वर्तमान में मीडिया की स्थिति अपनी वास्तविकता से दूर होती जा रही है
पैसा कमाने की होड़ में पत्रकारों और मीडिया घरानों के बीच बढती गलाकाट प्रतिस्पर्धा, न्यूज़ वैल्यू के नाम पर नंगापन परोसने की प्रवत्ति से भी आज लोग अनजान नहीं है. इसलिए जनता का विश्वास धीरे धीरे मीडिया से उठता जा रहा है
आज जिस तरीके से मीडिया अपना काम करता ,उसे देख हर कोई यह अनुमान लगा सकता कि कितनी ईमानदारी से काम कर रहे है मीडिया के लोग ,
आज बेईमान मीडिया की संख्या ज्यादा होने की वजह से ईमानदार पत्रकार को कुचल दिया जाता है ॥
बेहद शर्मनाक है .....
झारखंड के राजनामा खबर पोर्टल  के संचालक मुकेश भारतीय को झूठे आरोपो में फंसाकर जेल भेज दिया । 
भड़ास 4  मीडिया 
नाम ही काफी है , यह एक न्यूज़ पोर्टल है जिसके संस्थापक यशवंत सिंह है । निडर और साहसी इस पत्रकार के साथ भी वही हुआ जो अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाते है
यशवंत सिंह को झूठे आरोपो में फंसाकर गिरफ्तार कर लिया गया ।
यशवंत ने बड़ा गुनाह किया है। उन्‍होंने मगरूर मीडिया को आईना दिखाने का कम किया है। वो लोग जो नये पत्रकारों को बलि का बकरा मान बैठ थे, यशवंत उन बेचारो की आवाज़ बन गये... यही गुनाह है यशवंत का। यशवंत यक़ीनन गुनाहगार हैं..वो गुनाहगार हैं ..उन सब लोगों के लिए जो मीडिया में भडुयागिरी और चापलूसी के बल पर कुर्सियों पर पैर जमाय बैठे हैं। यशवंत गुनहगार हैं उन लोगों के.. जिनके खिलाफ कोई भी आवाज़ नहीं उठा सकता था ..लेकिन यशवंत ने उनकी पोल सरे आम खोल दी।
मीडिया लगभग कुछ लोगो को छोड़कर सभी पत्रकारिता को माध्यम बना कर सिर्फ अपना विकास करने में लगे हुए है
आखिर ये लोग ऐसी कौन सी पत्रकारिता करते है
भारत के न्यूज़ चैनल्स का जो अपने साथ "नेशनल न्यूज़ चैनल" का टैग लगाते हैं। न्यूज़ का सामान्य अर्थ इस तरह से लिया जा सकता है- नॉर्थ+ईस्ट+वेस्ट+साउथ की खबरों का प्रसारण! पर कौन सा ऐसा चैनल है जो इस परिभाषा के करीब भी है?
 गौर से देखा जाए तो शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रति व्यक्ति इनकम,  जागरूकता, रोजगार, क़ानून व्यवस्था, सरकारी योजनाओं के क्रियान्यवन के लिहाज़ से ,  दिल्ली-मुंबई और एन.सी.आर. और कुछ अन्य महानगरों में व्यवस्थाएं काफी हद तक संतोषजनक हैं! भारत के दूसरे हिस्से काफी पिछड़े हैं और कई आधुनिक सुविधाओं से वंचित हैं (न यकीं हो तो इन हिस्सों के सरकारी स्कूल , ऑफिस और अस्पतालों का मुआयना कर आइये) ! पर "नेशनल न्यूज़" का टैग लगाया मीडिया वहाँ तक पहुँच ही नहीं पा रहा ! माली या टाली हालत के चलते !
 अगर आप को लगता है कि आप ऐसे लोग हमारे आने वाली पीढियों के लिए आदर्श न बने तो अपने विचारो से हमें जरुर अवगत कराये

Monday 2 July 2012

किस तरफ ले जा रही है
यह "ज़िंदगी"
पा लेते मंज़िले
फिर भी मन ,निकाल पड़ाता
एक और नई अनजान मंज़िल की तलाश में
कभी हम बदल जाते
कभी वो राहे
जो उस मंज़िल तक ले जा रही है
थोड़ा सुस्ता लिया
पर सफर खत्म नहीं हुआ
फिर चल पड़े
तलाश में उस अनजान मंज़िल की
कहीं चिलमिलाती धूप
कहीं पेड़ो की गहरी छाव
बसे है कहीं घने शहर
कहीं खामोश गाँव
संकरी गलिया से भी गुजरा
आसमान तले खुले मैदान में भी
चलता रहा अपनी धुन में
आंखो में कुछ सपने
जो शायद होंगे कभी अपने
उसी अनजान मंज़िल की तलाश में ..................

भईया इंटरनेट पर सब कुछ मिलता है बस... एक क्लिक करो............ बहुत कुछ तो फ्री मे ही मिल जाता है अभी कुछ दिन पहले ऐसे ही फेसबुक पर एक बाबा जी से मुलाकात हुई .... ।

अरे नही नही .........
ग़लत सोच बैठे आप बाबा रामदेव ....नही .....
क्या कहा आशाराम बापू ......अरे नही भाई .......उन्हे कहाँ  से बीच मे ले आए  .....

अच्छा रुकिये मैं ही बताए देता हुं ।
जुगाड़ बाबा नाम था इनका, ऐसे ही HI ,HELLO से शुरूवात हुई ।
अचानक पूछ बैठे मीडीया मे कैसे आने का सोचा कोई जान पहचान का है क्या ? .......मैने कहा..... नही,

बोले तो फिर कोई जुड़ाग उगाड़ मैने फिर कहा
नही दूर दूर तक नही
बोले तो फिर क्या कर रहे हो ?
मैने कहा मतलब क्या कर रहा हूँ
पत्रकार बनना है सो अनुभवी पत्रकारो से पत्रकारिता सीख रहा हूँ
शायद बाबा ने मेरे गुस्से को भाप लिया....... अचानक अपना सुर बदलते हुए बोले ..........
.देखो बेटा ,
"टैलेन्ट इज गुड थिंग बट यू नो फॉर ग्रेट सक्सेस जुगाड़ इस कम्पलसरी "(talent is good thing but you know for great success JUGAD is compulsory )

मैंने कोतुहलवश पूछा बाबा जुगाड़ मतलब.......... ?
मेरे इतना कहते ही बाबा बिदक गये ...छी:...... पत्रकारिता सीख रहे और इतना भी नहीं पता....... जुगाड़  मतलब -"सोर्स"(SOURCE )......कही जॉब करनी है तो सिफारिस लगवाओ .....।
मैंने इतना सुनते ही बाबा पर एक सवाल और दाग दिया ......तो क्या बाबा जिसके पास जुगाड़ नहीं तो उसका फ्यूचर ब्राईट  नही ....?

बाबा मेरी बात बीच में ही काटते हुए बोले हा हा हा हा..................अभी छोटे बच्चे हो तुम  ....

बाबा के मुहं से बच्चा सुनते ही मेरा पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया.... ।
पर इतना गुस्सा आने के बावजूद भी कुछ कह सका
क्या करूँ बचपन से तो यही सिखाया गया है कि बड़ो का सम्मान करना चहिये ।
आप सोच रहे होगे कि बच्चा कहने पर मुझे इतना गुस्सा क्यों आया ये तो लड़को के लिए कॉम्प्लीमेंट है ..
ऐसा नही है क़ि बाबा ने ही पहली बार मुझे बच्चा कहा हो इसके पहले भी कई लोग कह चुके है ।

खैर बाबा ने फिर बोलना शुरू किया ....देखो बेटा आज के दौर में कामयाब होने के लिए धंधे के प्रति निष्ठा और लगन की नही जुगाड़ की आवश्यकता होती है ....इतिहास गवाह है जिसके पास जितनी अच्छी जुगाड़ है वो उतना ही कामयाब है .......टैलेन्ट तो टैलेन्ट होते हुए भी कोई काम का नही जबकि जुगाड़ सर्वत्र
समझो बेटा सबसे आगे है जुगाड़ ..............

सो बेटा ,
जुगाड़ NEAR राखियो ,TALENT दियो भुलाये ।
TALENT कछु न करि सकै,जुगाड़ सब करि जाये।।

बाबा जी क़ि बाते तो अब मेरी समझ में ही आना बंद हो गयी थी सो मैंने चुप्पी साधने में ही भलाई समझी ।
बाबा फिर बोलने लगे और इस बार उनके शब्दों में समझाने का भाव ज्यादा था ................।

देखो बेटा -जुगाड़ शब्द बेशक बहुतो को सुनने में अच्छा नही लगता लेकिन यह कितनी गहराई लिए हुए है .....गीता का पाठ करो तो जैसे जीवन के सत्य का ज्ञान होता है उसी तरह जुगाड़ क़ि तह में जाओ तो एक नयी दुनिया ही सामने आती है....


मैंने फिर पूछा नयी दुनिया मतलब ...?

इस बार बाबा फिर अपने आप पर इतराते हुए बोले ...............

बेटा थोडा UPDATE  करो मै तो सौ  सालो से पहाड़ पर तपस्या कर रहा हुं वहां तो मीडिया टीआरपी के पीछे भी नही भागती लेकिन फिर भी तुमसे ज्यादा UPDATE तो मै ही हुं ..।

अरे........बाबा अपडेट तो करती हुं अपने कम्प्यूटर में आये दिन एंटी वाइरस अपडेट करती हुं और दो तीन दिन में FACEBOOK UPDATE भी और कभी कभी तो दिन में दो तीन बार ।

बाबा बोले ......अरे मूर्ख मै उस अपडेट क़ि बात नही कर रहा ......सच में बच्चा ही है तू...

इससे पहले क़ि मै बाबा से कोई और सवाल पूछने के लिए अपना मुंह खोलती बाबा अचानक अपनी घड़ी पर नजर डालते हुए बोले ........
oh my dear i am getting late .....एक्चुली आज मेरा एक लेक्चर है जुगाड़ पर तो मै तुमसे बाद में मिलता हुं ...
ok bbye take care ..see you soon ।

Monday 25 June 2012

वक़्त तो बहता पानी है
जो कहता कभी तेरी ,तो कभी मेरी कहानी है
हर पल हर लम्हे मेरी चुपी ,कोई ख़्वाहिश नूरानी है
ख़्वाहिशों का क्या है ,आज यह तो कल वो
रहती जैसे रेत पर कोई निशानी है
हमें नहीं पता ,जा रही है कहाँ
चलते जा रहे है वहाँ ,जहां ली जाती यह ज़िंदगानी है
ज़िंदगी भी भला निभाएगी कब तक
कौनसी इससे भी कोई दोस्ती पुरानी है
कहना चाहते तो कह देते ,दो लफ्जो में भी
पर जब लिखने बैठे तो जाना ,जैसे भूली बिसरी यह गजल पुरानी है
लिखते लिखते बीत गई सदियाँ जैसे
पर फिर भी अधूरी यह कहानी है
जाने कब पूरी होगी यह दास्तां
यह बात तो ना कलम ,और ना ही बहती इस स्याही ने जानी है
चार पल जो जी ले मुस्कुरा कर
तो हम भी कह पाएंगे
कि
जीवन की धूप कितनी सुहानी है

Thursday 21 June 2012

सावन की बुंदों में हूँ
और धरती की प्यास में भी
खुद को कहीं खोया भी नहीं
फिर भी
खुद की तलाश में भी हूँ
आसमान जैसी आशाओं की ऊंचाइयों में भी हूँ
सागर की तरह दर्द की गहराई में भी
खुशियों की भीड़ में शामिल रहता हूँ हर वक़्त
और
अपनी उदासी भरी तन्हाइयों में भी हूँ
में हूँ हवाओ की बेचैनी में
माँ के आँचल के सुकून में भी
हंस के सब कुछ लौटाने के जज़्बे में शामिल
पाओगे तुम मुझे
तो कहीं कुछ हासिल करने के जुनून में भी हूँ
चाँद की सीतल छाया में भी हूँ
सूरज की तेज़ रौशनी में भी हूँ
काही आंखो से बिखरे हुए मोती के नमक में
तो
कही हंसी से छलके हुए मिठास में भी हूँ
खुद को कहीं खोया भी नहीं
फिर भी
खुद की तलाश में भी हूँ

Sunday 17 June 2012

father's day
आज सुबह मेरे एक दोस्त ने मुझसे कहा कि"अपने पिताजी को wish किया ?"
मैंने कहा -क्यूँ ? ना तो आज उनका जन्मदिवस है और ना ही शादी की सालगिराह ... फिर क्यूँ wish ?
अरे आज father's day है ना तो आज का दिन अपने पिता के लिए खास होता है ।
मैंने कहा यह क्या होता ?
उसने तपाक से बोला-जैसे teacher's day ,mother's day ,वैलेंटाइन डे ,और न्यू इयर डे
उसे खुश करने के लिए उसे गिफ़्ट देते हैं और उसकी लम्बी उमर और अच्छे स्वास्थ्य के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं”
मैंने पूछा “इस चलन की उत्पत्ती कहां से हुई है?”
वो बोला  “वैसे तो इस चलन की उत्पत्ति का श्रेय पश्चिमी सभ्यता को है पर अब ये भारत में भी काफ़ी पोपुलर है” मैं सोच में पड गया हम भारतीय आज भी विदेशी चीजों के कितने इच्छुक हैं। विदेशी चीजों के लिए अपनी सभ्यता, संसकार एवं मान सम्मान का भी बलिदान करने को तैयार रहते हैं
अब एक खास दिन फादर डे मनाने के पीछे क्या तर्क है ये मेरी समझ के परे है सिर्फ़ एक दिन का मान सम्मान बाकी के 364 दिन का क्या? और फिर हर दिन क्यूं नहीं? माता पिता का इस दुनियाँ में कोई पर्याय नही है जिन्हों ने हमारी रचना की वो हर दिन ,हर पल पूजनीय हैं

जो मां बाप एक कमरे में चार चार बच्चे के साथ रह पाते थे उन्ही मां बाप को बुढापे में ये बच्चे एक बडे घर में अपने साथ नही रख पाते है “ओल्ड एज़ होम और सेकेन्ड इनिंग होम“ इन पश्चिमी सभ्यता वालों की देन है हम भारतीय भी इनका अनुशरण करने में पीछे कहां रहने वाले थे? बडे बडे शहरों मे रोजाना खुलते ऐसे होम इनका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं

आज जिनके भी पिता जीवित हैं या जिनकी माता जीवित हैं वो दुनियाँ के सबसे अमीर लोग हैं सबसे सम्पन्न लोग हैं

मेरे लिए हर दिन खास है
अपने माता पिता गुरुजन और प्रकृति के लिए
इनकी मेहर हम पर सदैव रहती है तो हम इनके लिए कोई खास दिन क्यूँ बनाए ॥

Saturday 9 June 2012

आज मन फिर उदास है
ना रात की है चाहत
ना सवेरे की आस है
आज दिल फिर उदास है

फिर उठ गया नकाब एक चेहरे से
फिर उतर गया एक मुखौटा
यह छिपे हुए जो चेहरे है
जब मेरे सामने आ जाते है
टूट जाता है भ्रम अपनेपन का
जब मुखौटे उतर जाते है 

फिर कुछ ऐसा आज हुआ है
एक खंजर ने मेरे दिल को छुआ है
जल रहा है मन ,उखड़ी हुई सी सांस है
आज फिर मन उदास है

गीला तो अपनों से कियाजाता है
गैरो से मुझे कोई सिकवा नहीं
अपने बैठे है गैर बन कर
गीला करू तो किससे करू
गैरों में भी कोई अपना नहीं

परछाइयाँ ही तो है
जो बुलाती है मुझे अपनी और
भागता हूँ मैं इनके पीछे
फिर से खाकर ठोकर
सिमट जाता हूँअपने आप में
समा लेता हूँ खुद को

इस उदासी में ,सन्नाटे में
यह अंधेरा मेरा वफादार है
मेरा अपना है ,राजदार है
इसका कोई चेहरा नहीं
नहीं पहनता कोई नकाब है

इस अंधेरे की गोद में आज
फिर पनाह की प्यास है
कोई संग नहीं है फिर से
आज फिर दिल उदास है

Thursday 7 June 2012

अजनबी देश में
अजीब भेष में
लोग परिंदो की तरह आए
चंद पल चहचहाए
प्यार के गुण वो गए
फिर मंज़िल की तरफ अपनी
वो कूँच कर जाएँ

मिलन की खुशी दें
ज़िंदगी एक नयी दें
परदेश में भी वो
एहसास अपने होने का दिलाएँ
आंखो में इंतज़ार रहें
ता उम्र उनकी वापसी के
मगर मेहमान की तरह
पल भर के लिए वो आए
फिर मंज़िल की तरफ अपनी
वो कूँच कर जाएँ

Tuesday 5 June 2012

कहने को आज पर्यावरण दिवस है ,पर पर्यावरण के लिए कोई खास दिन की नहीं बल्कि पर्यावरण के बारे में रोज़ चिंता करने की जरूरत है ॥ क्यूँकि विकास और प्रगति के नाम पर जंगलो को काटा जा रहा सीमित हो रहे जंगल हमारे आने वाले भविष्य के लिए बड़ी दुखद बात है ॥ पेड़ है तो जीवन है ,जंगल है तो जहां है ।
जिस तरह हम भोजन ग्रहण करना हमारी दिनचर्या का हिस्सा है उसी तरह एक पेड़ लगाकर उसकी देखभाल करना भी अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लेवे और फिर से इस पावन धरा को हरा भरा बनाने में अपना योगदान देवे ...
हमारा पर्यावरण अगर सेहतमंद नहीं हैं तो हम अपने स्वास्थ्य के प्रति निश्चिंत नहीं हो सकते।
आज पीने के पानी कि किल्लत होती है ,गर्मी से लोग बेहाल होते है ,बिन मौसम बरसात से लोगो को नुकसान होता है ,सर्दी का मौसम भी बिगड़ता जा रहा है ॥ पूरे पर्यावरण का समीकरण बिगड़ रहा है ,और इन सब का कारण काटते पेड़ ,सिमटते जंगल ....

जहां पूरी दुनिया ग्लोबल वार्मिंग जैसी जटिल समस्या से लड़ने के उपाय ढूंढ रही हैं वहीं आप और हम अपनी दिनचर्या में थोड़ी सी सावधानी या बदलाव लाकर पर्यावरण को बचाने में बड़ा योगदान कर सकते हैं।

प्राकृतिक के खिलाफ बढ़ते इंसान के गलत कदम के कारण हिमालय सहित देश के वन संपदा से हजारों ऐसी जड़ी-बूटियां खत्म हो रही हैं, जो कई तरह की बीमारियों को दूर रखने की ताकत रखती हैं।

आज मानव प्रकृति को देता है नकार,
विनाश के साधन को करता है तैयार,
जो पल भर में मचाता है,
पृथ्वी पर क्रूर हाहाकार ।
क्यों प्रकृति के प्रति इतना विकर्षण ?
क्यों आधुनिकरण के प्रति इतना लगाव ?

मानव –मानव में प्रेम सदा,
करता है मानवता का विकास ।
दुर्भाग्य नहीं सौभाग्य है यह,
जब मानव करता अपना चरम विकास ।
पर रहे ध्यान सदा इसका,
इस विकास के नशे में,
हो न प्रकृति का नाश ।
वरन होगा अगर प्रकृति का नाश,
तो एक न एक दिन -
अवश्य हो जायेगा मानव सभ्यता का सर्वनाश
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
पर्यावरण के आभूषण – पेड़ों, वनों, जंगलों को काट दिया गया,
सांस लेने के लिए मिली हवा को भी जहरीला बना दिया गया ।
प्राकृतिक संसाधनों का अनुचित दोहन किया गया,
भ्रष्टाचार के खेल में पर्यावरण को भुला दिया गया ।

उपयोगी व उपजाऊ कृषि भूमि को खत्म किया जा रहा है,
भविष्य में अनाज उत्पादन के बारे में नहीं सोचा जा रहा है ।

विभिन्न जीव जन्तु भी हैं पर्यावरण के अंग,
पर बढ़ते प्रदूषण ने उनका जीवन किया बेरंग ।
गौरैया, गिद्ध, अन्य  पक्षी,जलीय जन्तु समाप्ति की ओर हैं अग्रसर,
मनुष्य भी इसके प्रभाव से नहीं है बेअसर ।

पर्यावरण का सन्तुलन यदि ऐसे ही बिगड़ता रहेगा,
मनुष्य के जीवन पर भी इसका कुप्रभाव पड़ता रहेगा ।
आज पीने को शुद्ध पानी नहीं, सांस लेने को स्वच्छ हवा नहीं,
प्रदूषण से मनुष्य को ऐसे रोग मिले, जिनकी दवा नहीं ।

विकास के नाम पर पर्यावरण का शोषण रुकना चाहिए,
पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सभी को जागरूक होना चाहिए ।

Sunday 3 June 2012

आंसू का कतरा-कतरा बहकर फर्श पर गिरा है,
बूंद को कोई संभाल न सका,
शुष्क आंखों में गीलापन,
लबालब पानी है भरा,
खारा पानी है वह,
क्या नमक मिला है?
नहीं दर्द भरा है।
पलकों को भिगोया है,
सिलवटों को छुआ है,
उनका सहारा लिया है,
गंतव्य मालूम नहीं,
फिर भी आंसू बहा है होता हुआ किनारों को छूकर,
सरपट दौड़ा है,
चमक थी अनजानापन लिए,
सिमेटे ढेरों अल्फाज - कुछ जिंदगी के,
कुछ अनकहे,
रुढककर थमा नहीं,
रास्ता जानने की फुर्सत कहां,
बस चाह थी सूखने की।

कल पाने की चाह में
आज खोता जा रहा है
वो कल भी ना आयेगा
रोज़ खुद को आज में पाएगा
आज है जो साथ तेरे बस वही अनमोल है
कल तो रोज़ आयेगा , यह दुनिया गोल है ....

कोस रहा आज क्यूँ कल को
जो गया वो फिर ना आयेगा
उस कल में तो तू जी न सका
अब चिंता में अगले कल को
कल के गणित में जोड़ रहा , आज का जो मोल है 
कल तो रोज़ आयेगा , यह दुनिया गोल है 

कर ले आज तू अपने मन की
कल में जो भी दोष रहा
जो सीख लिया तुमने आज में जीना
मिल जाएगा ,कल जो खोज रहा था
आज ही कल का माप दंड है , कल के तोल में झोल है
कल तो रोज़ आयेगा , यह दुनिया जो गोल है ॥

Wednesday 30 May 2012


 

 फिर भी लोग कहे "मेरा देश महान "

संसद में सब चोर बसे है
ठग बसे है थानो में
कुर्सी पर ऐसे है बैठे जैसे
जैसे साँप लिपटे हो चन्दन में
मीडिया अब क्या करे बखान
फिर भी लोग कहे "मेरा भारत महान "

कहीं आग लगी कहीं धुआ उठा
कहीं भूकंप का कहर टूटा
दान दाताओ की सूची अखबार में
पैसा सब दलालो ने लूटा
सरकार का बिक जाता नाम
फिर भी लोग कहे "मेरा देश महान "

गाँव में बिजली के खंभे तार
लाइट नाम की चीज़ नहीं
भाखड़ा टिहरी बांध बने है
नालों में फिर भी पानी नहीं
पानी की लंबी लगी कतार
फिर भी लोग कहे "मेरा भारत महान "

पति -पत्नी का रिश्ता अजीब है
साल के बाद तलाक जरूर है
बेटा बाप को बाप ना समझे
बाप के पैसो का बहुत गरुर है
यह सब देख क्या करे भगवान
फिर भी लोग कहे"मेरा भारत महान "

महंगाई आसमान को छूती
अजीब है सेंसेक्स का खेल
पैसे की कदर नहीं है भाई
डॉलर का चढ गया है तेज
जीना अब तो हो गया हराम
फिर भी लोग कहे "मेरा भारत महान "

उध्योगपति तो खूब चढ़े है
कर्मचारी का भविष्य लटका है
ITका है बोलबाला
काम भी तो क्या फटका है
RECESSION मिल गया है नाम
फिर भी लोग कहे "मेरा भारत महान "

रोजगार की उजड़ी दुनिया
माध्यम वर्ग के लोगो की
घर का खर्चा कैसे चलेगा
फिकर लगी है रोटी की
भगवान भी अब है हैरान
फिर भी लोग कहे "मेरा भारत महान "

माँ बाप ने तुमको जनम दिया
दुनिया के रंग दिखाये है
ढलती उम्र देख अब उनकी
वृद्धाश्रम में बैठाया है
माता का होता है अपमान
फिर भी लोग कहे "मेरा भारत महान "

राजनीति क्या खूब जो रही
हर नेता भूखा नंगा है
देश चलाऊ कुर्सी के लिए
गली मोहल्ले में दंगा होता
नारा गुंजा बिना शांति का
दे दो हमें शांति का दाम
फिर भी लोग कहे  "मेरा भारत महान "

Tuesday 29 May 2012


शाम का धुंधलका छाने लगा है,
चलो चलें कहीं ऐसे सफ़र पर,
जहां न हो अंधेरों का साम्राज्‍य, जहां रोशनी की किरणें,
हमें अह्लादित करें, चलो चलें कहीं ऐसे सफ़र पर।
घुंघरुओं की छनछन के साथ, बज उठे शहनाई,
जहां की हर सुबह, खुबसूरती से भरी हो,
जहां हर कोई अपना हो, जहां बच्‍चों का खिलखिलाना,
दे जाए हमें जीवन गीत, चलो चलें कहीं ऐसे सफर पर।
जहां हर कोई गाए-गुनगुनाए, जहां किसी भी दर्द की आवाज न हो,
हर पल जहां मधुमास हो, हर पर जीने का एहसास हो,
जब कोई गज़ल महके कहीं, तो हर कोई महसूस करे उसकी सुगंध,
चलों चलें कहीं ऐसे सफर पर।
एक बचपन का जमाना था
खुशियों का खज़ाना था
चाहत चाँद को पाने की
दिल तितली का दीवाना था
खबर ना थी कभी सुबह की
और ना ही शाम का ठिकाना था
 थक हार के आना स्कूल से
पर खेलने भी जाना था
दादी की कहानी थी
पारियों का फसाना था
बारिश में कागज़ की नाव थी
हर मौसम सुहाना था
हर खेल में साथी थे
हर रिश्ता निभाना था
गम की जुबां ना होती थी
ना ही ज़ख्मो का पैमाना था
रोने की वजह ना थी
ना हंसने का बहाना था
अब नहीं रही वो ज़िंदगी
जैसा बचपन का ज़माना था

Monday 28 May 2012

कहीं तो .......

 कहीं तो ....... कहीं तो
होगी वो
दुनिया जहां तू मेरे साथ है

जहां मैं , जहां तू
और जहां ,बस तेरे मेरे जज़्बात है
होगी जहां सुबह तेरी ,
पलकों की , किरण में
लोरी जहां चाँद की
सुने तेरी बाहों में

जाने ना कहाँ वो दुनिया है
जाने ना वो है भी या नहीं
जहां मेरी ज़िंदगी मुझे
इतनी खफा नहीं

Sunday 27 May 2012


है खुश कभी तो कभी कुछ खफा खफा
ज़िंदगी है एक तजुर्बा ,ज़रा कर के देखिये
दूसरों की गलतियों से सीखने में है क्या
खुद अपनी नई खताएँ करके देखिये
भीड़ में ना जाने कहाँ ओझल हो गए हो
कभी कोई नई राह पकड़ कर देखिये
बेतुकि बेरंग सी हो गई है ज़िंदगी
घर की नहीं ,दिल की दीवारें रंग कर देखिये
सागर की सतह पर होती है लहरें कुछ अलग
कभी किसी के दिल की गहराई में उतर कर देखिये
लैला मजनू के किस्से अब हुए पुराने
दिल अपना भी किसी से लगा कर देखिये 
क्यूँ भरने नहीं देते दिल को अपने सपनों की उड़ान
कभी बारिशों में कागज़ की नाव चलाकर देखिये
काम पड़ने पर याद करते है सभी
कभी बिना मतलब किसी दोस्त को याद करके देखिये
गाड़ी ,धन -दौलत ,ऐशों आराम के पीछे भागते रहे
कभी माँ की गोद में दो पल सर रखकर देखिये
ना जाने किन चिंताओं में खोये रहते हो हरदम
कभी दूसरों के दुखो को जानकार देखिये
किस रफ्तार से जिये जा रहे हो ज़िंदगी
कभी रात भर जाग कर तारे गिन कर देखिये
सहमे सहमे जीने में रखा क्या है
कभी हौसला बढ़ाकर जीकर देखिये
रेत के घरोंदे बनाते थे बचपन में
आज भी बेफिकरी से जी कर देखिये
स्कूल के वो दिन भुला दिये कैसे
कभी तस्वीरों से धूल हटाकर देखिये
मरना है आखिर हर किसी को एक दिन
कभी इस खौफ को भूलकर जीकर देखिये

Saturday 26 May 2012

नज़रिया ज़िंदगी का सरल बना कर देखो
जाति और धर्म नहीं ,व्यक्ति का बस दिल देखो


जो दिख रहा है दूर से सफ़ेद पत्थर सा
क्या पता मोम हो ,तुम प्यार से छूकर देखो

किसी की आँख से दिल तक अगर पहुंचाना हो
अपनी धुन में बढ़ो ,मत मील के पत्थर को देखो





किसी की नज़ारे -इनायत नहीं होती यू ही
खुद की औकात भी उसके मुक़ाबले देखो


तेरी ही रार ठनी रहती क्यों आजू बाजू
कभी फुरसत मिले तो खुद से झगड़ कर देखो

सफल लोगो को देख कर कभी कुंठित ना बनो
फूलों के नीचे बिछा काँटों का बिस्तर देखो

कोहिनूर आसमान से खुद ब खुद बरसते नहीं
खान में जाकर कभी खाक छान कर देखो

जब तलक पंख है नाज़ुक ,उड़ान छोटी भरो
ख्वाबों को तुम कई किस्तों में बाँट कर देखो

चुक गया मान ,बूढ़े पेड़ो से दूरी ना करो
ना सही फल ,महज़ छाया सुकून लेकर देखो

जहां की सबसे उम्दा गजल जब पढ़ना चाहो
भर के महबूब को बाहों में , आंखो में देखो

अक्सर मीडिया इंटरव्यू लेता है लोगो का और नेताओ का चलो आज मीडिया का ही इंटरव्यू लिया जाए  स्टिंग ऑपरेशन के बारे में जिनको वो बढ़ा चढ़ा कर बताते है ॥ 

जनता - स्टिंग ऑपरेशन हमेशा एक धर्म विशेष के लिए ही क्यो ?
मीडिया-ये अंदर की बात है ताकि नेताओ से शाबाशी मिले। आजकल मीडिया “कोंपीटीशन” कितना बढ़ गया हे ना ? मार्केट मे बने रहने के लिए रिस्क लेना पड़ता है बॉस । 
जनता - कभी ऐसे भी स्टिंग ऑपरेशन करो जहा कौनसी फलाना अभिनेत्री कौनसे सेक्स रेकेट मे लिप्त है, या पहले थी ? जो कभी कभी टी वी पर सच्चाई की बाते भी करती है, फिर “डील″ के ऊपर “डील साइन” करती है, पहले हजारो मे ? अब लाखों मे ?
मीडिया-नहीं, ऐसा नहीं कर सकते है, क्योकि इससे हमारे अभिनेताओ से संबंध खराब होते है, ये तो सभी को पता है, बताने की क्या जरूरत। वेसे भी नाम और “केरियर” खराब होगा उनका । अभी पिछले दिनों एक नौकरनी ने इज्जतदार अभिनेता पर बलात्कार के आरोप लगाए थे । आखिर सबको सच्चाई पता चल गयी ना ? (सबको पता है नौकरानी शायद करोड़ पति हो गयी होगी ) 
जनता - कभी ऐसे भी स्टिंग ऑपरेशन करो जहा कौनसी मॉडल पैसो के लिए किस हद तक जाती है?, कौनसे कौनसे नशे के रेकेटों से जुड़ी है? ढोंगी स्वयंवर रचाने वाली पवित्र और तथाकथित “नाबालिग कन्याओं” को भी आपके पवित्र सुधारक पर्दे पर लाओ ?
मीडिया - नहीं, क्योकि इनके बिना बढ़िया रेटिंग नहीं मिलती ना, हमे उनके कार्यक्रम तो दिखाने पड़ते हे ना, वेसे भी इंडिया मे एक वर्ग एसा भी है जो यह भी नहीं जानता है की भारत का राष्ट्रपति कौन है लेकीन उसे यह जरूर पता है की फलाना सुपर स्टार कहाँ रहता है और उसकी कौनसी फिल्म आ रही है और वे झोपड्पट्टी मे भी टीवी जरूर देखते है, भले ही एक समय का खाना नसीब न हो ? उनका भी तो ख़्याल रखना पड़ता है ना ? और फालतू समय मे विज्ञापन लाने के लिए गाना बजाना / सब दिखाना होता है ना ? वेसे आपको इनसे क्या दुश्मनी है ? वे तो अपना केरियर बनाती है ना ? और वेसे भी वे सभी सेकुलर है आपकी तरह । (भले ही समाज से, युवाओ को उससे नुकसान हो, वे बिगड़ें, उन्हे कुछ भी हासिल न हो, सिवाय बरबादी के ) 
जनता - अच्छा, क्या आप जनता को बताएँगे की कितनी अभिनेत्रियाँ, “आइटम गर्ल″, सेक्स रेकेटों और प्रोस्टिक्यूशन मे पकड़ी गयी और पुलिस के इतिहास मे वे दर्ज हो गयी, लेकिन मूर्ख जनता को आपने बताया ही नहीं। क्या ये समाज सुधार और सूचना अधिकार का हिस्सा नहीं है ? हर आदमी थोड़े ही rti के ऑफिस मे जाएगा ?
मीडिया - क्या मुसीबत है बार बार एक जेसे ही सवाल….। नहीं, क्योकि इससे उनकी बदनामी होगी और भविष्य और “केरियर” पर खतरा पड़ेगा और हमारे “बिज़नस” पर बुरा असर पड़ेगा । 
जनता - कभी ऐसे भी ऑपरेशन करो जहा पर विदेशी कम्पनियाँ भी अवेध ( सरकारी हिसाब से वेध ) कारोबार मे शामिल हो कर मिलावटी और वस्तुए बाजार मे खपाती हो ? और ऊपर से वे ब्रांड और विज्ञापन का महंगा चोला लगाते है ( ताकि शुद्ध लगे ), लेकिन दुसरें शुद्ध काम कर के भी उतना मुनाफा नहीं कमा पाते या पकड़े जाते है !
मीडिया - अरे पागल हो गए हो, विदेशी कंपनियो पर केसे लांछन लगा सकते हो, उनसे तो हमे आमदनी होती है, हम विज्ञापनो के लिए किसी भी हद तक जा सकते है चाहे सुबह के समय मे धार्मिक प्रवचन के साथ साथ कोंडम की विज्ञापन हो, या शाम को परिवार के साथ मे मिल कर खाने के समय पैड के विज्ञापन हो (भले ही वे कंपनियाँ विज्ञापन मे मिलावट करती हो ) 
जनता - कभी ऐसा भी बताओ जनता को की ये हमारे देश भक्त क्रिकेटर, और अभिनेता जो बड़े उपदेश देते फिरते है, टिप्पणियाँ करते है, जिसमे से कितनों ने घर पर ए-के ४७ राइफलों को भी नजदीक से देखा हो, और किसी ने तो भारत मे प्रतिबंदित जानवर का शिकार कर के खाया हो । भले ही वे कोक, पेप्सी, फेंटा, मिरिंडा, स्प्राइट, कॉलगेट, पेप्सोडेंट, वोक्स वेगन, हुंडाई, लक्स, डेटोल, जॉन्सन एंड जॉन्सन, लेज, कुरकुरे, बूस्ट, एडीडास जेसे विदेशी ब्रँडो के विज्ञापन करते हे । भले ही भारत मे साल मे २५० से अधिक घरेलू इकाइया बंद हो जाती हो । रास्ते पर आ जाते है स्वदेशी । तब इनकी देश भक्ति कहाँ जाती है । क्या उनको पता नहीं है इस विचार के बारें मे, लेकिन ऐसे भी लोग है इस देश मे जो पूरी उम्र स्वदेश की सेवा मे लगा देते है बिना बीवी बच्चो के, ऐशों आराम के, लेकिन वे गुमनाम ही रहते है पूरी उम्र… क्यो ?
मीडिया -“वॉट नॉनसेन्स”, अरे क्या तुम भी रूढ़िवादी हो, सांप्रदायिक ? जब जनता विदेशी समान खरीद रही है तो भला इन्हे विज्ञापन से क्या परेशानी है ? भैया ये लोग स्टार है और हम लोग इनकी पेरो की जुतिया, समझे । ये लोग जो करे वो हमे मानना पड़ेगा । जो बोले वह करना पड़ेगा । अरे भैया ये स्वदेश-विदेश सिर्फ फिल्मों के नाम के रूप मे अच्छे लगते है, क्या होता है ये स्वदेशी पालन ? यहा दुनिया ग्लोबल हो रही है और ये पूरी उम्र स्वदेश से जी लगाए फिरते है, खाओ पियो ऐश करो ! खुद खाओ दूसरों को खिलाओ ! एक बात और, स्टार हमसे और हम स्टार से है, हमारे बिना स्टार-विस्टार कुछ नहीं होता है । 
जनता - अरे लेकिन सरकारी लेब ने तो यह सिद्ध कर दिया हे की ये कोल्ड ड्रिंक जहर है फिर भी ये लोग प्रचार करते है और देश भक्त बनते है, अरे ये कोल्ड ड्रिंक पानी का कितना पीने के पानी का कितना दुरपयोग करती है, और ये सेलेब्रिटी लोग “पानी-बचाओ” विज्ञापन करते है, भाई ये बात तो हमे हजम नहीं हुई |
जनता - अरे भाई तुम्हें इनसे क्या एलर्जी हे ? प्रश्न पूछना हे की नहीं, तो ऐसे प्रश्न मत ना पूछो हमे । मेरे पास समय कम हे । 
जनता - अच्छा आप ऐसा स्टिंग ऑपरेशन करो जहां पर लड़कियां ग्रुप बना कर रेव / सेक्स / नशा पार्टियां करती है और मोबाइल मे पॉर्न फिल्मे रखती / देखती है। इससे तो समाज का और माँ बाप का काफी भला होगा । 
मीडिया - छोड़िए ना, ये तो सभी करते है, ये तो आजकल आम है, ये तो काम ये महिला आयोग का और पुलिस का है, और ये जवानी मे नहीं करेंगे तो बुढ़ापे मे करेंगे ? क्या आपने कॉलेज मे ऐसा नहीं किया होगा भला ? हमें तो ऐसी खबर दो जहा पर शराबी महिलाओ / लड़कियों की हिन्दू ग्रुप पिटाई कर रहे है ( इससे सरकार मे हमारा रुतबा बढ़ेगा ), मासूम, बिचारे और औरतों को छेड़ते हुए मनचलो की जनता पिटाई कर रही है । मॉरल पुलिस बनने का अधिकार सिर्फ हमे दिया है सरकार ने, तभी तो आजकल कम से कम घोटाले उजागर हो रहे है, अब हमारा काम स्टिंग ऑपरेशन कर के रेटिंग कमाना हे तो केसे भी कर के किसी न किसी का तो स्टिंग करना पड़ेगा ना ? तो हमने किसी धर्म विशेष को ही चुना जो बहुत सॉफ्ट है, जिसमे सब सेकुलर और उदार होते है, किसी को कुछ नहीं कहते है, एसी खबरों को खबरे कहते है। और इनके स्ट्रिंग ऑपरेशन करने के विदेशो से करोडो मिलते है  
जनता - क्या आप कॉमनवेल्थ के घोटालो का स्टिंग ऑपरेशन करेंगे ?
मीडिया - नहीं, नहीं, ये बहुत “सेंसिटिव्ह मेटर” है, देश का नाम बदनाम होगा |  
जनता - कभी किसी मिशनरिज केन्द्रो का भी स्टिंग ऑपरेशन करो, पता करो ना की वहाँ पर क्या चल रहा है और हर साल मे कितने हिन्दू से ईसाई बनाए जा रहें है ? उनके आगे के क्या क्या उद्येश्य है ? आगे कितना टार्गेट है, रोज रेलगाड़ियो मे कितने मिशनरियों को भेजा जाता है लोगो को उपदेश देने के लिए ?
मीडिया -नहीं उन्होने तो हमे न. 1 बनाया है, क्योकि हम उनके खिलाफ हमेशा अच्छी खबरें देते है, क्या आपको पता नहीं है ईसाइयो पर हमले हुए थे तब हमने उनका कितना दिल जीता था ? यही कारण हे की आजकल अँग्रेजी चेनलों की संख्या बढ़ रही है ( धर्म प्रचार को लेकर ) वेसे भी ये भी कोई महत्वपूर्ण विषय नहीं है, आजकल धर्मांतरण तो आम है। सेकुलरिस्म का हिस्सा है, सिंह से शाह, जमनालाल से जोसफ, लल्लू से लॉ, बबलू से बौबी. इसमे कैसी बुराई है ? दुनिया ग्लोबल हो रही है भाई साहब । कहाँ हो आप ? और फिर चर्च हमे पैसा देना बंद कर देगा भाई और मैडम की नाराजगी अलग |  
जनता - कभी उन आतंकवादी स्थलो का भी स्टिंग ऑपरेशन कर लिया करो जहा पर हमलो की योजनाए बनती है, जहा पर हथियारो के झखीरे है, दंगे मे अचानक कहाँ से ए-के ४७ राइफलें निकल आती है ? कभी इंडियन मुजाहिद्दीन जेसे और भी नेटवर्क का भी पर्दा फ़ाश करो ।
मीडिया - ये काम तो सुरक्षा एजेंसियो का है हमारा नहीं ! और उनमे हमारा कोई “फाइदा” नहीं है, उल्टा नुकसान है…. !…?? ( कोई विज्ञापन नहीं देगा रेटिंग गिर जाएगी, हमारी ) साउदी अरब पैसा देना बंद कर देगा सो अलग |  
जनता - ऐसे स्थानो का भी स्टिंग करो जहा पर जर्मन बेकरी के जैसे न जाने कितने षड्यंत्र होते है, और कसाब जेसे पहले से ही हथियारो के ढेर छुपाते है, आने से पहले ? माफ करना मैं मालेगांव के आरोपियों का नाम लेना भूल गया, नहीं तो हमें कट्टर कहेंगे आप, मैं भी सेकुलर हूँ । सलमान खान की कसम ! सेकुलर हूँ हम  !

मीडिया - हमने कहाँ ना, ये तो सब काम सुरक्षा एजेंसियो का है ? हमे उनसे खतरा मोल नहीं लेना, हमारे अस्तित्व का प्रश्न है । 
जनता -तो, ऐसे जगह स्टिंग ऑपरेशन कर के दिखाओ जहा पर किसी धर्म विशेष के लोगो को ही अनुमति है जनता को बताओ की वहाँ ऐसा क्या हो रहा है की वह स्थान दूसरे धर्म के लोगो के लिए प्रतिबंधित है, हिन्दू धार्मिक स्थल ( माफ करना बाकी धर्म स्थान ) तो सेकुलरिस्म की जीती जागती मिसालें होते है

मीडिया - नहीं हम ऐसा नहीं कर सकते ये बहुत “सेंसिटिव्ह मेटर” है, इससे उनकी धार्मिक भावनाए आहात होती है, वेसे भी वे सताये हुये, निर्दोष है । ये हमारे “स्ट्रेटेजी” मे नहीं है, इससे सिर्फ नुकसान ही नुकसान है, कोई दर्शक इसे पसंद नहीं करेगा । ( एसे मामलो मे देश पूरा सेकुलर हो जाता है ) 
जनता - कभी कश्मीर के अलगाव वादी नेताओ का स्टिंग ऑपरेशन करो जो सरकारी खर्चे पर चुपके चुपके अफजल गुरु जेसे देश-भक्तो से मिलने जाते है
मीडिया - हमें सरकार ने अनुमति नहीं दी, ये काम सरकार का है किसको कब सजा देनी है ! वेसे भी अभी तक अफजल का जुर्म साबित नहीं हुआ है ? है ना ? और बेचारा कसब को तो मंद वश किया गया था |  
जनता - उन अंधेरे स्कूलों मे जहा सिर्फ रात मे ही उजाला होता है, स्टिंग ऑपरेशन करो उन देश द्रोहीयों का जो मुंबई पर हमले के तुरंत बाद रिस्वत-खोर , फिक्सरों, पाकिस्तानी खिलाड़ियो को याद करते है, उनका स्टिंग ऑपरेशन करो की वे उनसे कब और कहाँ बाते करते है ?
मीडिया - क्या बात कर रहे हो, बात ही तो की हे उन्होने कौनसा हमला कर दिया है, वे तो बड़े स्टार है, हमारे चेनल पर बड़े बड़े विज्ञापन उनके ही तो आते है, और हमें वे सपोर्ट करते है वे, वे तो सेकुलर हे, कौनसे देश-द्रोही है । क्या आपको दिखता नहीं वे टेक्स भरते है सरकार को, करोड़ों का, हमारी कितनी आमदनी होती है उनसे । हमें उनसे संबंध खराब नहीं करने है । हम उनसे है और वे हमसे ! 
जनता - बस एक प्रश्न, “सिर्फ” एक प्रश्न ।  
आप के सुबह सुबह के कार्यक्रम मे आने वाले ज्योतिष विद्वानो, फेंग शुई, वास्तु शास्त्र वालों का भी स्टिंग कीजिये ना ? उनमे से कितनों के ऊपर लेनदारी, ठगी और जमीन से जुड़े केस चल रहे है ?

मीडिया - ????…. नहीं वे साफ होते है, हम तो उन्हे चुनी हुई पत्तियाँ की तरह और खास चुने हुए बगानों से हम चुन चुन कर लाते है, आप बकवास कर रहे है…… !

“आपका बहुत बहुत धन्यवाद सेकुलर मीडिया भाई 
यह है देश का मीडिया जिसे लोकतन्त्र का चौतहआ स्तम्भ भी कहते है ... आज यह स्तम्भ हम आम जन पर ही गिर रहा है कुचलने के लिए

Thursday 24 May 2012

आम आदमी का लोकतन्त्र कहाँ है ?

देश में हर गरीब आम नागरिक की श्रेणी में आता है , और वही आम नागरिक चुनाव के वक़्त खास आदमी बन जाता है । 
समाज में आम आदमी की भूमिका वहीं तक है जहां से खास आदमी की भूमिका शुरू होती है। यह खास आदमी होता आम आदमी जैसा ही है, किंतु उसका 'शाही रूतबा' उसे आम से खास बना देता है। 
इस अवधारणा को नहीं मानता कि देश आम आदमी के सहारे चलता है। देश खास आदमी के 'आदेश' पर चलता है। आम आदमी खास आदमी के सामने कहीं नहीं ठहरता। या कहें कि उसे ठहरने नहीं दिया जाता। 

आज आम आदमी खास आदमी की शर्तों पर ही जीता है। यह हकीकत है




खास आदमी आम आदमी से चीजें 'लेता' नहीं 'छीनता' है। न देने पर उसका वही हाल किया जाता है जो हिटलर ने यहूदियों का किया था । 


सत्ता और कुर्सी का नशा कुछ भी करवा सकता है। सत्ता में 'जज्बात' नहीं 'जोर-जबरदस्ती' मायने रखती है। 

 राजनीति में आम आदमी की भूमिका बड़ी और खास होती है। सब जानते हैं। सत्ताओं को बदलने में आम आदमी मददगार साबित होता है। ऐसा हमने पढ़ा भी है। लेकिन एक सच यह भी है कि राजनीति और राजनेताओं को आम आदमी की याद तब ही आती है जब उसे उसका वोट चाहिए होते है । 


आम से खास हुआ आदमी जब नेता बनता है तब वह हमारे बीच का नहीं सत्ता का आदमी हो जाता है। उसके सरोकार सत्ता की प्रतिष्ठा तक आकर ठहर जाते हैं। पांच साल में एक ही बार उसे आम आदमी की याद आती है। इस याद में 'स्वार्थ निहित' होते हैं। 

 एक बात नहीं समझ पाया जब देश की सरकारें देश के नेता हर कोई आम आदमी के लिए फिक्रमंद है फिर भी आम आदमी इतना बेजार क्यों है? क्यों उसे दिनभर दो जून की रोटी के लिए हाड़-तोड़ संघर्ष करना पड़ता है? क्यों उसके पेट भूखे और सिर नंगे रहते हैं? क्यों वो कुपोषण से मर जाता है? क्यों वो बेरोजगार रहता है? क्यों उसके कपड़े फटे रहते हैं? क्यों उसकी बीमारी का इलाज नहीं हो पाता? क्यों वो अपने बच्चों को महंगे स्कूलों में नहीं पढ़ा पाता? क्यों वो लोकतंत्र का सशक्त माध्यम होकर भी बेजारा और बेगाना ही बना रहता है? क्यों सत्ता की ताकत उसे रौंदती रहती है? क्यों मंजूनाथ के रूप में उसे मार दिया जाता है? क्यों उसे न्यायालयों से न्याय नहीं मिल पाता? 

 एक बड़ा सवाल है कि लोकतंत्र में आम आदमी की भागीदारी आखिर है कहां? पुलिस भी उसे दुत्कार देती है और कार में बैठा धन्नासेठ भी। सड़क या पटरियों के किनारे रहने वाला आम आदमी कभी भी 'खदेड़' दिया जाता है। सत्ताएं उसका झोपड़ा तक तुड़वा देती हैं। 

 स्लमडॉग का आम आदमी आज भी वहीं है जहां और जैसा उसे इस फिल्म में दिखाया गया है। ध्यान रखें, जिन्होंने स्लमडॉग को बनाया है वे आम आदमी नहीं बल्कि खास और ऊंचे रूतबे वाले लोग हैं। उनके लिए स्लमडॉग को मिले आठ आस्कर किसी बड़ी क्रांति से कम नहीं। 

 अगर वाकई यह लोकतंत्र है तो आम आदमी की जुबान खास आदमी के आगे हर दफा दबकर ही क्यों रह जाती है? व्यवस्था का विरोध अगर आम आदमी करता है तो उसे रास्ते से हटा दिया जाता है। सबसे ज्यादा त्रास पक्ष तो यह है कि हमारी न्याय-व्यवस्था भी आम आदमी के खिलाफ ही अपना निर्णय सुनाती हैं। अदालतों में आम आदमी की नहीं खास वर्ग की सुनी जाती है। जाने कितने आम आदमी अदालतों के 'अड़ियल रूख' के शिकार होकर बीच रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि आम आदमी का विश्वास न्याय-व्यवस्था से उठने लगा है। 


  यह बात कहने-सुनने में बहुत अच्छी लगती है कि आम आदमी के पास वोट की ताकत होती है। विज्ञापनों में 'अगर आप वोट नहीं कर रहे तो सो रहे हो' जैसी 'जज्बाती लफ्फबाजी' दिखाई जाती है। जबकि सच यह है कि आम आदमी की ताकत को सत्ताएं औने-पौने दामों में खरीद लेती हैं। उन्हें बेच दिया जाता है। उन्हें गुलाम बनाकर रखा जाता है। लोकतंत्र में आम आदमी की स्वतंत्रता की बात करना मुझे 'बेमानी-सा' लगता है। 

 हम नाहक ही इस बात पर खुश होते रहते हैं कि हम 64 साल के स्वतंत्र लोकतंत्र हैं। पर, यह देखने-समझने की कोशिश कभी नहीं करते कि इन 64 सालों में आम आदमी की 'कथित लोकतंत्र' में भूमिका कितनी और कहां तक रह गई है? वो लोकतंत्र में कितना और कहां तक खुद को लोक का हिस्सा समझ और बना पाया है?


क्यूँ बहुत इतराते थे ना कि हम तीसरी पीढ़ी के लोग है अब मजबूरन -तीसरी पीढ़ी में जाना पड़ रहा है न ...
कहा था ना इतना मत कूदो कि कष्ट में पाव जमीन पर रखने से दर जाए ॥

अक्सर लोग कहते है "भई जमाना बादल गया है "
पर आज सरकार का रवैया देखा जाए तो कुछ नहीं बदला ,, बदला है  तो सिर्फ तरीका ,लोगो की कमर तोड़ने का ॥
पहले अंग्रेज़ सरकार लोगो से"लगान" वसूलती थी ,आज उसी लगान का नाम पेट्रोल के दाम बढ़ाओ , गेहु को सड़ने दो ,सब्जियों के दाम बढ़ा दो ,टैक्स में बढ़ोतरी कर दो॥ यह सब "लगान " के बहुवचन शब्द है ,जिसका इस्तेमाल कर आज की सरकार अंगरेजी शासन चला रही है ।

अब इस""लगान" से छुटकारा पाने के लिए क्रिकेट भी नहीं खेल सकते क्यूँ कि मैं और आप तो खेलने से रहे और रहे जो प्रोफेसनल क्रिकेटर वो तो रेव पार्टियों में व्यस्त है , कोई रिश्वत में पस्त है , कोई लड़की छेडने में मस्त है ,और कोई खराब फोरम के चलते सुस्त है ... ऐसे में कोई खेला नहीं हो सकता ॥

15 अगस्त 1947 को आधी रात में पुकार हो गई कि हमारा देश आज़ाद हो गया ...
हालात से तो नहीं लगता देश आज़ाद है ,
अगर आज़ाद होता तो पेट्रोल के दामो में पहिये नहीं लगते , सब्जियों के दाम को पर नहीं लगते , कर के ज्वालामुखी फूट कर पहाड़ नहीं बनाते , और इन सब के जिम्मेदार हम आम जन है ... वैसे "आम" तो फलों का राजा कहलाता पर आज का आम इंसान अपने ही घर में नामर्दों की तरह हो गए ।

आज़ादी आधी रात को घोषित हो गई पर सवेरा ना जाने कब होगा

हमने तो तय कर लिया भईया ... गाड़ी तो वैसे भी नहीं है .... अब साइकल ही ले लेंगे ताकि पेट्रोल का मोहताज ना होना पड़े ... फाइदा ही फाइदा ... बचत की बचत और पर्यावरण को भी नुकसान नहीं ,,,और तो और अपना स्वस्थ भी अच्छा ...
क्यूँ भई है ना फायदे का सौदा ....
चलो थोड़ा पीछे कदम बढ़ाते है ताकि भविष्य सुरक्षित रहे ...

छोड़ो अब गाड़ियों के गुणगान
बनाओ साइकिल को अपनी शान ॥





Wednesday 23 May 2012

मुद्दत से आज थोड़ा वक़्त निकाला
खाने को सिर्फ एक ज़िंदगी का निवाला

करना है तैयार पहले उसका मसाला
चलो देखे ,उसमे क्या क्या है डाला

पहले छल के छिलके छांटों
फिर उस प्यार की प्याज़ को कांटो

लोभ से लिपटे लसहून छिलो
प्यार की प्याज़ के साथ में ले लो

आदत की अदरक का अर्क बनालों
"ना " का नींबू निचोड़ डालो

ध्यान का धनिया खूब मिलाओ
हंसी की हल्दी मिलाते जाओ

नफरत के नमक का नाप समझ लों
"मैं " की मिर्ची का मंत्र परख लो

बर्ताव के बर्तन में ये सब रख लो
दिल के ढक्कन से इसको ढक लो

किस्मत की कड़ाई में तेल चढ़ा दो
आशा की आंच थोड़ी और बढ़ा लो

चाहत का चम्मच चलते रहो
ज़िंदगी का मसाला पकाते रहो

इस मसाले को ज़िंदगी में मिला लो
मिलाकर अब जिंदगी का मज़ा लो

ढल गई शाम इंतज़ार ए यार में
होता है यही अक्सर एतबार में

वो फूल जो किसी के प्यार में खिले
मुरझा गए उसी के इंतज़ार में

दुनियाँ की रौनक युही सिमट गई
बनकर वफा निगाह ए अश्कबार में

साजिस नहीं किसी की किस्मत की बेवफ़ाई
डूबा हुआ जिगर है इंतज़ार में

विरानियों के दायरे ज़मीनों आसमान पे
कहीं कोई खुशी नहीं इख्तेयार में

धड़कन में जागती जीती जवान उमंग
कैद हो गई है किसी मंजर में

मुस्कान ए शाब कोई चाँदनी थी शायद
टूटा सितारा दीदार ए यार में

खुशबू खरीद लाना सस्ती मिले ए जान
गिरती है रोज़ किमाते बाज़ार में 

Tuesday 22 May 2012

नयी पीढ़ी में रिश्तों के मायने और संस्कार ! 
रिश्तों  की अपनी अहमियत होती है और जरूरी है कि हम उस रिश्ते की मर्यादा को समझे और अपने आने वाली पीढ़ी (माँ बाप अपने बच्चो के लिए )को  भी समझाएं। ईट-पत्थरों की दीवारों में जब रिश्तों का एहसास पनपता है तभी वह घर कहलाता है।
आज की high profile और भागदौड भरी जिंदगी में हम रिश्तों की अहमियत को भूलते जा रहे हैं। हमारी busy लाइफ हमे रिश्तों से दूर कर रही है। इसका उसर बच्चो पर  भी पडता है। तभी तो आज के बच्चे रिश्तों की अहमियत को बहुत कम समझते है।
जब बच्चा पैदा होता है तो उसके जन्म से ही उसके साथ कई रिश्ते जुड जाते हैं। लेकिन इन रिश्तों में से कितने ऎसे होते हैं जिन्हें वे निभा पातें हैं। 
ऎसा इसलिए नहीं कि बच्चों को उन रिश्तों की अहमियत का नहीं पता बल्कि इसलिए कि क्योंकि माँ बाप  खुद उन रिश्तों से दूर हैं। 
बच्चों में संस्कार की नींव माता-पिता द्वारा ही रखी जाती है। अगर माता-पिता ही रिश्तों को तवज्जो नही देते तो बच्चे तो इन से अनजान रहेंगे ही।

आज समाज संयुक्त परिवार का प्रचलन घटता जा रहा है

संयुक्त परिवार में बच्चा दादा-दादी, चाचा-चाची, ताऊ-ताई, बुआ के साथ साथ रहकर बडा होता था। आज बच्चा सिर्फ अपने माता-पिता को ही जानता है। एकल परिवार में होने के कारण बच्चे अपने खून के रिश्तों को भी नहीं समझते और जब बच्चा खून के रिश्तों को समझेगा ही नहीं, तो उस में रिश्तों के प्रति सम्मान और अपनापन कहां से आएगा! आज के बच्चे अपनी संस्कृति और सभ्यता से भी अनजान होते जा रहे हैं। आज के अभिभावकों के पास इतना समय ही नहीं है कि वे अपनी सभ्यता और संस्कृति से उन्हें अवगत करा सकें।

आज हमारी जीवनशैली इतनी व्यस्त हो गई है कि व्यक्ति के पास खुद के लिए समय नहीं है। ऎसे में रिश्ते निभाने और बच्चों को उन की अहमियत बताने का समय किस के पास है?
जिंदगी की रफ्तार में इंसान अपने रिश्तों को अनदेखा करता जा रहा है। इसी अनदेखी की प्रवृति के कारण उस के नजदीकी रिश्ते धीरे-धीरे खत्म होते जा रहे हैं।तो बच्चे कटा समझेंगे रिश्तों की अहमियत  उन्हें तो लगता है, बस यही हमारा परिवार है। बच्चों का कोमल मन तो वही सीखता है, जो वे देखते हैं।


आज जमाना दिखावे का हो गया है। इसी दिखावे के कारण सारे रिश्ते, परंपराएं एक तरफ हो गई हैं। आज की life style high tech  हो गया है। 

अगर फलां रिश्तेदार के पास गाडी है और हमारे पास नहीं, तो कैसे भी कर के हमारी कोशिश होती है कि हम गाडी खरीद लें ताकि हम भी गाडी वाले कहलाएं। 

अभिभावकों के ऎसे आचरण का प्रभाव बच्चों पर काफी पडता है। वे भी बडों की नकल करते हैं और दूसरे बच्चों से कंपीटिशन करते हैं। जहां रिश्तों में कंपीटिशन और दिखावा आ जाता है वहां रिश्तों की स्वाभाविकता खत्म हो जाती है।

आज मैं और मेरे की भावना इतनी प्रगल हो गई है कि व्यक्ति को सिर्फ अपनी पत्नी और बच्चे ही दिखाई देते हैं, माँ बाप भी नहीं ॥ 

बच्चा मां-बाप से ही सीखता है कि उस का परिवार है , बाकी लोग दूसरे लोग हैं।

हम जैसा बोएंगे वैसा ही तोे काटेंगे। आधुनिकता की अंधी दौड में हमें रिश्तों के महत्व को बिलकुल नहीं भूलना चाहिए। हमें अपने बच्चों को पारिवारिक परंपराओं और रिश्तों के महत्व को जरूर समझाना चाहिए।

कभी बच्चों के सामने अपने रिश्तेदारों की शिकायत न करें।
इससे बच्चों के मन में गलत भावनाएं पैदा होती हैं।
बच्चों के सामने रिश्तेदारों के status की बात बिलकुल न करें।
ऎसा बिलकुल न कहें कि फलां रिश्तेदार हमारे बराबर का नहीं है ... 

Monday 21 May 2012


एक झलक ,और थामे नजारें
एक सिफारिस ,और कई इशारे
चाहतों की कश्ती साहिल के किनारें
उठती है लहरें रेत के सहारे
चूमती धड़कनों को ठंडी बयार की साँसे
थोड़ी प्यासी कोशिश ,कभी बूंदें तो कभी बहे
इस ओर से उस ओर दुभाषिया यह दिल
लफ्ज नहीं है पर नज्म है आंहे
कभी मिली थी राहे कहते सुनते यह चौराहे
एक की थी मंज़िल यही ,एक पर हुए फासले
रूखी रही थी दुयाएँ ,चली तो बस लम्हो की हवाए
अक्स भी वही था ढले तो बस शाम के साये
नज़दीक है अब कुछ निशानी मुहाजिम रात कहानी
सीढ़ियों पर रखे है मंज़र , जमीं पर टिके फ़लक के सहारे

Sunday 20 May 2012



रो रहा क्यों व्यर्थ रे मन
कौन अपना है यंहा पर .
मिट गयी हस्ती बड़ों की
है हमारी क्या यंहा पर .

सबको अपनी ही पड़ी है
चल रहे सब भावना में
स्वप्न सब बिखरे पड़े जब
है कान्हा कुछ कल्पना में . .

स्वर्ग-सुख के मोह में आ
नरक में मैं बस गया हूँ .
आज जग के जाल में कुछ
बेतरह मैं फंस गया हूँ . .

नाव तो मंझधार में फंस
धार की आश्रित हुई है
दूर दोनों तट हुए है
और मंजिल खो गयी है .

कौन देगा साथ मेरा
यह प्रबल चिंता सताती . .
मैं अकेला हो गया हूँ
अब नहीं विश्वास थाती 



पैसा,
बन चुका है लोगों का ईमान
कुचल कर रख दी है
इसने लोगों की संवेदनाए।

पैसा,
कहीं ज्यादा बड़ा है
इंसानी रिश्तों से
आपसी प्रेम और भाईचारे से।

पैसा,
गढ़ता है
रिश्तों की बिल्कुल नई परिभाषा।
जिसके चारों तरफ बस
झूठ, फरेब और आडम्बरों की
एक अलग दुनिया है।

पैसा,
काबिज है लोगों की सोच पर
इस कदर जकड़ रखा है कि
सिवा इसके
लोगों को कुछ नजर नहीं आता।

पैसा,
जो चलायमान है
कभी एक जगह नहीं रहता।
फिर भी लोग
इसके पीछे दिवानों की तरह
सारी जिन्दगी भागते हैं।

पैसा,
चाहे जितना एकत्र करो
इसकी लिप्सा कभी खत्म नहीं होती।
क्या हमें
इसका एहसास नहीं होता
कि शायद हम बदल चुके हैं
उस रक्त पिपासु राक्षस की तरह।
फर्क सिर्फ इतना है कि
उसे प्यास है खुन की
और हमें पैसों की।

:-अमित चन्द्र
 

माँ को याद कर के ही दिन की शुरुआत है 
हर दिन माँ के लिए खास है ....


माँ साथ है तो साया ऐ कुदरत भी साथ है 
माँ के बगैर ऐसा लगता जैसे दिन भी रात है 
मैं कहीं जाऊ उसका मेरे सर पर हाथ है 
मेरे लिए तो मेरी माँ ही कायनात है