Tuesday 27 March 2012

नन्ही सी परी तू ,करे जब किलकारी
मधुर आवाज़ तेरी लगे कोयल से भी प्यारी
जब तू मुस्कुराए तो खिल जाए कालिया सारी
तुझसे ही है हर खुशी ,तू ही है दुनिया हमारी
कभी खेले माँ संग कभी पापा की प्यारी
खेलना है चाचा संग भी ,कब आएगी मेरी बारी
जब इठलाकर तू  करे वॉकर की सवारी
मानो मौसम ने कर ली खुशियों की तैयारी
अठखेलियाँ करती तू , मुस्कान है सबसे न्यारी
सूर्य से तेज प्रकाश तेरा , चाँद की रोशनी भी तेरे समक्ष हारी ॥ :)
       मेरी प्यारी भतीजी "पवित्रा राठौड़ "

Monday 26 March 2012

लिखूं एक ख्‍वाब कलम से,

जिसमें एक पतंग आएगी।

जिसे उड़ाएगा कोई और

पर कटकर मेरी ही पास आएगी।

उड़ेगी चाहे कितनी भी,

बदन लहरा-लहरा कर

पर अंत में उसे,

हमारी ही याद आएगी॥

चाँद सा शीतल मन होगा,

दूध्‍ सा निर्मल तन होगा।

रूप रंग का हर कण होगा,

जिस कण में मेरी ही खुशबू आएगी॥

आँखों में नशे का काजल,

ज़ुल्फ़ों में घन-घोर सा बादल।

पैरों में पायल की छम-छम,

कानों में कुण्‍डल का झन-झन॥

जिसमें एक शोर सी आएगी,

जिसे सुन बादल इस ओर ही आएगी।

पंक्षियाँ भी देखकर चहकेंगे उसे,

फूल भी देखकर महकेंगे उसे।

नयी सी वादियाँ वातावरण में फैल जाएगी,

जब भी वो आकर मेरे बाहों में सिमट आएगी . 
narendra nirmal

Sunday 25 March 2012

समय के कुछ पल भले ही बुरे हो
पर समय हर वक़्त गद्दार नहीं 

सूरज समा जाए चाँद की आग़ोश में
पर चाँद की चाँदनी बेकार नहीं


सुख-दुख तो ज़िंदगी का हिस्सा है 
पर इसके बिना ज़िंदगी का सार नहीं

पाना है लक्ष्य को, हो चाहे लाखो मुश्किले 
तान कर सीना बढ़ जा आगे कि मानेगा तू हार नहीं 

रूठे को मना दे ,दुश्मन को भी यार बना दे
उन मधुर अल्फ़ाज़ों से तेज तलवार की धार नहीं

सुख दुख के हर पालो में हाथ जो थामे रहे 
भटके को पथ दिखाये  उससे बड़ा कोई यार नहीं

जगत की सारी खुशियाँ माँ के चरणों में है
माँ की ममता से बढ़कर कोई प्यार नहीं


सारा जग सदियों से जिसके गुण गावत
भगवान जहाँ रहते, है सूर्य जहाँ जागत

पूजते हैं गौ माता, जिनमे सारे देव विराजत

पधारे सुदामा हों,, तो भी कृष्ण करें स्वागत

करोड़ों विशिष्ठिताओं में, ये भी एक बात है
कि नदी और पहाड़ भी, पूजे यहाँ जावत

सदियों से पुण्य भूमि, युग-युग से दिव्य शाश्वत
है माँ के जैसी ममता, देवी स्वरुप जाग्रत

समूचे विश्व को सिखाई जिसने शांति पूजा,
उसी में ही रची है वीरों ने महाभारत

पूरे विश्व को जिसने गिनती सिखाई,
विश्व-विजयी हो के भी विनती सिखाई,
मेरे गायकों की राग से दीपक जल जावत

हिमालय हैं उत्तर के पहले प्रभारी,
सागर भी करते हैं रक्षा हमारी,
मेरे देश में है ईश्वरीय ताकत 

देश के युवाओं को नींद से जगाया,
भारत क्या है पूरे विश्व को बताया,
उठो- जागो- आगे बढ़ो नारा लगाया,
ऐसे विवेकानंद को कौन नहीं जानत 
सुप्रभात भारत


Thursday 22 March 2012


यह खबर 15 फरवरी को भी लिखी थी पर किसी ने कोई प्रतिक्रीया नहीं दी आज जब टीवी चैनलो पर यह दिखाया जा रहा तो सबकी नींद खुली । 

देश के प्रधानमंत्री ने कोयला विभाग अपने अधीन रख कर देश का ही नहीं शायद दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला किया है , देश के लोगो को गुमराह पर गुमराह किया जा रहा धोखे पर धोखा । 
कोयले में हाथ दाल कर मुह काला कर लिया पर यह मानने को ही तैयार नहीं देश के प्रधान मंत्री 
गूंगे बहरे हो गए है देश के प्रधान मंत्री ....... इस महाघोटाले पर चुप्पी साध कर बैठ गए जैसे महात्मा गांधी का गूंगा बंदर बैठा हो 

अब कांग्रेसी चमचो कि पुंगी बंद हो गई क्यूँ कि रिपोर्ट के मुताबिक जब अवैध कोयला खनन के आदेश दिये गए तब कोयला विभाग प्रधानमंत्री के पास था ,

तो अब कांग्रेसी यह कहने लगे कि नीलामी करते तो बोझ सीधा आम जन पर पड़ता 
और फिर यह भी कहते कि हमने कोई घोटाला किया ही नहीं ॥ 

मुझे समझ में नहीं आता कि अगर सरकार कोयला खनन की नीलामी करती तो आम जन को क्या नुकसान होता । 
हाँ नुकसान तो होता पर आम जन का नहीं बल्कि इटालियन मम्मी (कांग्रेस की मम्मी सोनिया ) का जिनको घुस नहीं मिलती ,और उनके पालतू लोगो को नुकसान जरूर होता ॥ अब आप ही देख लो एक विदेशी मेम भारत में 45000 करोड़ की मालकिन बन गई और देश को चला रही अपने इशारो पर । 

हे प्रभु क्या होगा इस देश का 

इस भ्रष्टाचारी सरकार के साथ साथ देश के दिग्गज व्यवसायी भी इस देश से गद्दारी करने पर तुले है ...
किस पर भरोसा करे किसको देश की कमान सोपे ? 

सरकार तो आम जनता ने ही बनाई यह विश्वास करके कि लोगो का भला करेगी , 

अब यह हमारा खून ही नहीं हड्डियों का भी चूरमा बना कर खा रही है ,

पर अब यह हम आम जन के हाथ में नहीं रहा कि इस सरकार को उखाड़ फेके ....लोकतन्त्र के रखवाले बना कर भेजते पर लोकतन्त्र को इटली में बेच कर यह लोग लोभतंत्र चला रहे है । 

सरकार ने एक काम बहुत नेक किया कि देश के सारे गरीबो को अमीरों कि श्रेणी में ल खड़ा किया जबकि उनके पास न घर है न तन पर कपड़े 2 जून कि रोटी के लिए दर दर भटकता पर उसे अमीर बना दिया । 

जो भी भ्रष्टाचारी का बेटा यह पोस्ट पढ़ रहा क्या तुमको जरा भी शर्म नहीं महसूस होगी कि तुम चोर के बेटे कहलाओगे , भ्रष्टाचारी का बेटा कहा जाएगा , लोगो कि बददुआ बड़ी खराब होती है बच कर रहना ॥ 

इसलिए सब से निवेदन है कि अगर आपको पता है कि आपके माता पिता ने काही घुस ली है तो आप उनको रोके और अपने आप को चोर का बेटा या भ्रष्टाचारी का बेटा होने से बचाए  

Wednesday 21 March 2012


सरकार अक्षर कहती रही है कि 29 रुपये कमाने वाला व्यक्ति गरीब नहीं होता , आज के इस दौर में भिखारी भी सुबह से शाम तक 100 -150 रुपये कमा लेता है , यानी भिखारी भी ट्रिपल अमीर है , मतलब आज भारत के भिखारी भी अमीर श्रेणी में आते है ।

तो अब राजनेताओ को यह राग तो अलापना छोड़ देना चाहिए कि "देश में गरीबी हटाएँगे , गरीबो की  सरकार ,गरीबो के हित में काम करेगी , गरीब को न्याय मिलेगा , गरीब को कम दाम में अनाज दिया जाएगा , गरीब के लिए अच्छे शिक्षा के प्रबंध किया जाएगा , गरीबो को काम दिया जाएगा ,

ओ सरकारी भैया ! तनिक हमको बताओ तो सही गरीब है कौन इस देश में , अपने तो भीख मांग कर खाने वाले को भी अमीर बना दिया तो किसके लिए यह सब बकबक करते हो , वैसे तुम राजनीतिक तो भिखारियों से भी गए गुजरे हो , भिखारी मांग कर खाता पर तुम राजनीतिक तो चोरी करते हो बेईमानी करते हो , ठगी करते हो ।

रहने को जगह नहीं , पहनने को कपड़ा नहीं , पर भारत को अमीरों कि श्रेणी में ला खड़ा कर दिया इस सरकार ने , वाकई तारीफ के काबिल है यह सरकार तो , जी करता जूतो कि माला पहनाऊ एक एक कर सबको ।

( काल्पनिक ) सरकार ने बजट सत्र में गरीबो के उन्मूलन और विकास के लिए 500 करोड़ करोड़ का बिल पास किया । करेंगे क्यूँ नहीं सारा पैसा इनकी जेब में जाएगा क्यूँ कि इस देश में गरीब है ही नहीं .....हा हा हा हा हा

अब इस अमीर देश की गाथा सुन लो

एक आदमी सुबह काम पर जाता शाम तक घर 100 या 150 रुपये लता मतलब अमीर आदमी है , अब वो अमीर आदमी 50 रुपये का दारू पिएगा , भई वह क्या रजवाड़ा मिजाज है 29 रुपये वाला अमीर और यह 50 की दारू पी जाता है । 10 रुपये टिप भी देगा , बचे 90 रुपये घर खर्च के लिए ,,,, वह यहा पर भी अंबानी बन गए ट्रिपल अमीर परिवार ।





अरमान दिल के लेकर चला 
तो देखा वाहनो का आना जाना
कोई इधर भागे तो कोई उधर 
 ना जाने किसको कहाँ जाना 

आशाओ के पहिये लुढ़क रहे 
फितरत इनकी
 कदमो से आगे बढ़ जाना  
अकेला ही निकाल पड़ा 
कि 
मुझको है मंजिल पाना 

कदम बढ़ाए चल दिया 
था मौसम सुहाना 
पर दिल में उपजी शंका 
कि 
आखिर है कहाँ अपना ठिकाना 



Tuesday 20 March 2012

बैठा था नदी किनारे 
आँखों में थे अनगिनत नज़ारे 

देखा मैंने 

नदी का 
निर्मल पानी का कलरव कानों में 
मधुर संगीत जैसे कोयल गाये 

बहती है अपनी धुन में निरंतर 
रास्ता रोके चट्टान तो बाजू से गुजर जाए 

कहीं पर सिकुडना पड़ जाए तो सिकुड़ कर बहे 
कही आज़ाद होकर अपनी मंजिल की और बढ़ जाए 

कही झरने से गिरती होगी 
धड़ाम ... 
पर कभी ना अपना दर्द किसी को दिखाये '

अहंकार मन में तनिक भी नहीं 
परोपकार कर 
सबका जीवन आनंदमय बनाए । 



Monday 19 March 2012

देखा था हमने एक सपना प्यारा 
तेरे आने के बाद 
खुशियों से भर गया छोटा सा संसार हमारा 

 अनुपम सुन्दरता की मूरत है तू , इस जीवन की ज़रुरत है तू ,
सौंदर्य की रानी दिखती है, परियों से भी खुबसूरत है तू  |
तुझे देखता हूँ अपलक नज़रों से हर पल ,
इस जीवन के पुण्य पर्व का, पूर्ण पावन महूरत हैं तू 


 दमक रहा है रूप तेरा जैसे अम्बर का कोई तारा,
देखा था हमने एक सपना प्यारा
तेरे आने के बाद
खुशियों से भर गया छोटा सा संसार हमारा

कोमल तेरे गाल है ऐसे, मानो पुष्प पंखुड़ियों पर ओस के मोती,
तेरी प्यारी बोली सुनकर , होती अनन्त सुख की अनुभूति |
समक्ष उसके चंद्रमा भी मलीन दिखता है, 
दिव्यमान स्वरुप तेरा , पा कर स्वयं लक्ष्मी की ज्योति |

शीतल स्वच्छ यह स्वरुप उसका, मानो नदिया की हो धारा,
देखा था हमने एक सपना प्यारा
तेरे आने के बाद
खुशियों से भर गया छोटा सा संसार हमारा


गरमी गरम करती गरम हवायें,
ऊष्मा की तपती लहरें चल जायें,
हर क्षण जब हो तीक्ष्ण प्रहार,
व्याकुल हों प्यासे, शीतलता अभाव,
तपिश को बहने दो, बहेगी वह,
आकार बड़ा, प्राणी-प्राणी कहेगी वह,
‘मेरा रुप विशाल, जल जाओगे,
दूंगी सबको शुष्कता, क्या पाओगे?
कुछ नहीं, कुछ नहीं होगा मेरा,
हे, मानुष-जीव कहां दंभ तेरा?’
छिपकर रहना सिखा दिया है,
नित्य है संघर्ष बता दिया है।

"from vradhablog "


Sunday 18 March 2012

"क्या यही एक उपाय है हमारे पास अपना हक मांगने के लिए "
सरकार ने आम बजट में लोगो को गन्ने की तरह पीस कर  निचोड़ने का फरमान जारी कर दिया । एक तो सोना चाँदी के भाव आसमान से बाते कर रहे वही सरकार ने कर का बोज लादकर लोगो की कमर तोड़ने का काम कर दिया । अब माध्यम वर्ग स्वर्ण आभूषण को सिर्फ देख सकता है खरीदने के लिए उसे 100 बार सोचना पड़ेगा ॥ 

ऐसे में स्वर्ण व्यापारियों ने (मैं भी शामिल हूँ ) ने देशव्यापी तीन दिन हड़ताल का ऐलान कर दिया । 
क्या हड़ताल करने से हमको न्याय मिलगे ?
अब वो दिन गए जब हड़ताल करने से कोई अपनी बात मान जाता , पर अब इनको पता है आखिर कब तक हम हड़ताल करेंगे 2 दिन 4 दिन या 10 दिन आखिर हमको अपने काम धंधे पर लगना ही पड़ेगा इसलिए मुझे नहीं लगता सरकार हम व्यापारियों के सामने झुकेगी । 

मेरी राय तो यही है कि देश में जिस तरह स्वर्ण व्यापारी दुकान बंद करके हड़ताल कर रहे है उसी तरह सब व्यापारी अपना टैक्स देना बंद करदे जब तक हमारी मांगे ना मनी जाए । 
हड़ताल तो शहरों में होती है छोटे गाँव या कस्बो में नहीं करते यह सोच कर कि हमको यहा कौन देखेगा या कौन कहने वाला । 
और अगर यह ऐलान करेंगे कि जब तक हमारी मांगे नहीं मनी जाएगी तब तक कोई भी सर्राफ व्यापारी सरकार को टैक्स नहीं देगा , तो शायद बात बन सकती है ॥ 
बाकी तो हमारे सीनियर हमसे बेहतर जानते है उनको क्या करना है । 

नन्ही सी कोमल काली 
रुई के फाहे सी सफ़ेद 
घने काले केशों के संग 
मानो श्याम मेघो के 
बीच चंदा ,रहा चमक 
इन्द्रधनुषी आभा सी दमकती 
मेरे आँगन में चमकती 

नयनों की डिबिया को 
झप-झप झपकाती 
कस के बंद 
गुलाबी मुट्ठियों को 
हिलती डुलती 
अलि सी गुनगुन में 
गुनगुनाती -इठलाती 

हमारी दुलारी है तू 
चाँद सी प्यारी है तू 
रौशन होगा तुमसे ही 
अपने घर का हर कोना 
हर त्योहार में तू ही 
रचेगी बसेगी 
तेरी किलकारी से 
हमारी दुनिया सजेगी 
जब-जब तू खिलखिलाएगी 
भतीजी ! हमारी दुनिया जगमगाएगी 
 "प्यारी पवित्रा हमारी "

मन क्यूँ बावरा कोसों भटकता रहता है 
दिल की मुराद पूरी हो जाए ,
तो पल भर के लिए ठहर जाता है 
टूट जाए अगर कोई सपना 
तो 
काँच के टुकड़ो की तरह चटक जाता है 
लेकिन 
आशाओ का सैलाब
दिल में फिर उमड़ आये 
और 
 ये मन बावरा कोसों दूर भटक जाता है । 

Thursday 15 March 2012

कहावत है " धोबी का कुत्ता ना तो घर का ना घाट का "
रेल बजट के बाद सरकार की हालत भी कुछ इसी तरह हो गई है , जाए तो जाए किधर , इधर कुआ उधर खाई । 
आखिर झुकना सरकार को ही पड़ा । रेल मंत्री ने रेल बजट में किराया बढ़ाया तो ममता बनर्जी ने सरकार को चीट्टी लिख रेल मंत्री को हटा कर अपनी पसंद का रेल मंत्री बनाने की धमकी दे डाली । अब सरकार ना माने तो ममता बहन बहुमत वापस ले लेती और शायद सरकार को अपना बहुमत खोना पद जाता । 

पर ममता जी अपने इस फैसले से जनता को क्या फायदा होगा , फायदा होना ही है तो मुकुल राय को होगा जिनको आप रेल मंत्री बनाना छह रहे है । आप ने तो खुद का स्वार्थ देखा , दिनेश त्रिवेदी को हटा कर मुकुल राय को रेल मंत्री बनाया तो फायदा तो आपके चहेते का ही होगा , आम जन को तो ठेंगा ही दिखाया ना । 

खैर ममता जी ऐसा करके आप ने यह तो साबित कर दिया की सरकार चलती है तो पश्चिम बंगाल से , आखिर सरकार को ममता जी के सामने सिर झुकना ही पड़ा । 

कल भी मंत्री को ही फायदा हुआ अब ममता जी के ऐसे कदम के बाद भी मंत्री ही खाएगा । 

जैसे मैंने कल कहाँ था की "सरकार चाहे कोई भी हो पीसना तो आखिर आम जन को ही है ।

ममता जी मंत्री बदलने से कौनसा किराया कम हो गया ।

मेरे मित्र ने कल कहा " यार राजू अबकी बार तो मैं flight से राजस्थान जाऊंगा "
मैंने कहा :- क्यूँ भाई कोई ऑफर है क्या या income बढ़ गई
तो उसने मुह लटका कर कहाँ :- ना तो कोई ऑफर है ना कोई income बढ़ी , बढ़ा है तो रेल का किराया , अब 4 महीने पहले बूकिंग कराओ तो शायद conform टिकिट मिले , और 4 महीने पहले ही flight का टिकिट बूक करवा दो तो 100 -200 ही ज्यादा लगेंगे , पर सफर flight का ही करूंगा ।

तभी हमारे चाचा जी आए और कहा जल्दी से डॉक्टर को बुला मेरा सर फटे जा रहा है ....
मैंने पूछा चाचा जी क्या हुआ , इतना हदबड़ाए क्यूँ हो ,
अरे क्या बताउ रेल का किराया सुन कर तो मैं बेहोश हो गया ।

खैर एक बात तो साफ हो गई कि देश का कि सरकार पश्चिम बंगाल से चल रही  है ।

एक गाना है "अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ भुला सकते नहीं , सर कटा सकते है लेकिन सर झुका सकते नहीं "

यह एक सच्चा हिंदुस्तानी ही कह सकता है , वरना देखो आज के स्वार्थियों को जो यही कहेंगे " माय बाप सर झुका दूंगा ,जीतने जूते मारने मार दे पर मुझे देश को लूटने दे ।

एक प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री के सामने सिर झुका देता है ।

यह है आज़ाद भारत ...
जय हिन्द !

ज्यो निकाल कर बादलों की गोद से 
थी अभी एक बूंद कुछ आगे बढ़ी 
सोचने फिर यही मन में लगी 
आह क्यों घर छोड़ कर मैं यों बढ़ी । 

दैव मेरे भाग्य में क्या लिखा ,
मैं बचूँगी या मिलूँगी धूल में ,
या जलूँगी गिर अंगारे पर किसी 
या छु पड़ूँगी कमल के फूल में । 

बह गई उस कल कुछ ऐसी हवा 
वह समुंदर की ओर आई अनमानी 
एक सुंदर सीप का मुंह था खुला 
वह उसी में जा पड़ी और मोती बनी । 

लोग यों ही झिझकते सोचते 
जबकि उनको छोडना पड़ता है घर 
किन्तु घर का छोडना अक्सर उन्हे 
बूंद की तरह कुछ और ही देता कर । 

Wednesday 14 March 2012


भगवान मेरे, क्या जमाना आया है,
चारों ओर पाप का ही कोहरा छाया है,

भूख के मारे लाखों लोग रोते हैं,
छोटे-छोटे मासूम बच्चे भी कपड़े धोते हैं,

किंतु अमीर न परवाह करते, न कुछ खोते हैं,
वे तो ए.सी. में आराम से सोते हैं,

बापू का सत्याग्रह गया कहां?
अब तो हृदयाग्रह ही चलता है यहां,

जो छोटी दुश्मनी को हत्या का रुप देते हैं,
वही लोग तो कानून के चहेते हैं,

पैसों के लालच में लोग तोते की तरह रटते हैं,
आखिर मासूम लोग ही तो फांसी के हत्थे चढ़ते हैं,

पार्टियों से निकलने का टाइम ही नहीं मिलता है,
पूजा कौन आजकल करता है,

रिश्तों का नाम जपना तो सिर्फ एक सपना है,
जिसके पास धन-दौलत वही तो अपना है,

यहां कोई इंसान नहीं सभी हैवान हैं,
न दया नाम की चीज और न ही भगवान हैं,

आखिर क्यों इंसान ने ये पैसा बनाया है?
हर तरफ पाप का ही कोहरा छाया है।
subhangi from vradhgram 

Monday 12 March 2012

रब ! मेरे वतन को  लगी है किसकी छाया  , 
एकता और सर्वधर्म का प्रतीक रहा 
फिर क्यूँ वक़्त ने इस पर जुल्म ढाया , 
आए पुर्तगाली ,फ्रांसीसी और अंग्रेज़ भी आया 
मेहमान जानकर भारत माँ ने इनको भी अपनाया 
सदभाव और प्रेम से रहने वालों में 
क्यूँ ईष्या और नफरत का खेल रचाया ,
रहा हो हमेशा जो परिपूर्ण और सुखमय 
क्यूँ उनमे भ्रष्टाचारी और बेईमानी  को पनपाया , 
बेईमानो को नरभक्षी बनाकर तू जरा भी न घबराया , 
ईमानदार को मरते देख तू तनिक भी ना शरमाया 
आते है सब तेरे दर ,कोई मांगे औरों की खुशी तो कोई मांगे माया 
मैं भला क्या चहु तुझसे , दे सबको हिम्मत इतनी 
कि कर सके बेईमानी ,भ्रष्टाचार का सफाया । 


Sunday 11 March 2012


Life is a drag and death is her sister 
Sleep is her cousin,
then comes…
The big brother

Life as we know it…

Life can often be pretty 
as long as death’s not beside her
without death, a family portrait would seem rather empty,
Therefore she won’t appear in the picture till long after 

The big brother however
disguises him self and seldom tells the truth.
Some might say he’s mighty clever
Or just a gorilla in a suit

Life as we know it…

He guides our spiritual troops,
To fight over the mythical truth
Drowning in the political soup 
Confusing the ever gullible youth...

Despite living in a dysfunctional way
We’re all in the same picture, striking different poses
But at the end of the day 
If we lived a little more righteous 
We would bunch together like roses.      


लोकतंत्र का उत्सव

मना रहे इस बार

जनता नेताओं से

खाए बैठी है खार ।

जनता के हाथ में

आ गया एक हथियार

जूते से हैं लैस सब

चलाने को तैयार ।

नेताजी अब सोच रहे

कैसे होगा बेडा पार

भरी सभा में डर रहे

क्या रखें अपने विचार ?

जनता से कर धोखा

और करके अत्याचार

आज खड़े हैं आ कर वो

जूते का पहने हार ।

त्रस्त हुई अब जनता

नेताओं पर कर विश्वास

पर नेताजी घूम रहे

ले कर जीत की आस ।

कोई नहीं है ऐसा नेता

जो सुने जनता की पुकार

जनता तो ठगी ही जायेगी

आए कोई भी सरकार 



जीवन है भँवरे सा ,
फूलो पर भिनभिनए
रस लेकर फूलो का
क्यूँ ये जहर बनाए
मँडराते है कलियों पर
जैसे बन कर साये
स्वार्थ क्यूँ इनमे इतना
कि कभी कभी कली को ही काट खाये ॥

Saturday 10 March 2012


मैंने गुलाब को भी अपनाया
भले हो उसमे कांटा
मुझको क्यूँ मार दिया
जबकि
रहा है मेरा ईमानदारी से नाता ।

यही तो दुख है नरेंद्र भाई , कि आप जैसे ईमानदार देशभक्त अपने दुखो की परवाह ना करते हुए लोगो की रक्षा करते है और ईमानदारी से काम करते है , अपना कर्तव्य निभाते है , पर इस देश में ऐसे दरिंदे लालची है (जो कहने को लोकतन्त्र के रखवाले कहलाते है पर सच में है वो नरभक्षी ) जो ईमानदार व्यक्ति को मौत के तोहफे से नवाजते है ।
एक मंत्री को थप्पड़ मारने वाले को तुरंत जेल पहुंचा दिया जाता , पर एक ईमानदार और कर्तव्यनिष्ट  देशभक्त को कोई राजनीतिक मरवा  दे तो लंबी प्रक्रिया चलेगी जैसे
शुरुआती जांच
सबूत
पूछताछ
गवाह
चार्जशीट
ट्रायल
गवाह के बयान
एक दूसरे के वकीलो का वाद विवाद
argument
और फिर सजा ,
तब तक आरोपी की भी मौत हो जाएगी , और मामला खत्म ।
न्याय मिल गया ?????? अरे इस देश में सजा सुनाने के बाद सजा नहीं दी जाती तो क्या उम्मीद की जा सकती है इन राजनेताओ और सरकारो से ॥
नरेंद्र भैया इस देश में स्वार्थी ,लालची लोग है , आप जैसे ईमानदार और कर्तव्यनिष्ट बहुत कम है ।

देश में पुलिस को अपनी सुरक्षा के लिए बंदूक तो थमा दी जाती पर उसे चलाने के लिए सरकार के आदेश की जरूरत होती है , और जब तक आदेश मिले तब तक बहुत देर हो जाती ।

नरेंद्र कुमार अगर उस ट्रैक्टर वाले को गोली मार देते तो सभी राजनीतिक लोग यही कहते कि " प्रशासन व्यवस्था लचर है । पुलिस जनता की हिफाज़त करने के लिए होती है उनकी जान लेने के लिए नहीं , और यहा एक पुलिस अधिकारी को मार दिया तो गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले राजनेता कहते है न्यायिक जांच करेंगे ! किसकी न्यायिक जांच करेंगे , इसके असली इक्के और बादशाह तो तुम राजनेता ही हो जो आम जन की नज़ारो में धूल झोक कर लोगो का दिल बहला कर बेवकूफ बना कर शांत कर देते हो ...

इस मामले में मुख्य आरोपी को पकड़ना कोई मुश्किल काम नहीं है सरकार के लिए पर सरकार ऐसा करेगी नहीं क्यूँ कि सरकार की  छवि धूमिल ना हो जाए इसलिए ।

किसको पता नहीं कि इस मामले के तार आखिर कहा से जुड़े है ,,,, खनन माफिया ! इसमे कोई शक नहीं कि राजनेता ,मंत्री या इनके करीबी इसमे शामिल नहीं ।

क्यूँ इन राजनेताओ को शर्म नहीं आती कि ऐसे मामलो पर न्याय की मांग करने की बजाय इस में भी राजनीतिक रोटिया सेक रहे है , एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप ।

क्या हमको इसी तरह अपने होनहार , ईमानदार और कर्तव्यनिष्ट देशभक्तों को इन नरभक्षियों के काल का शिकार होते देखते रहेंगे ?????? आज नरेंद्र भैया , कल किसी और नरेंद्र भैया को यह काल बनाएँगे , और फिर हम आम जन की भी बारी आएगी ॥

क्या दुकाने और काम धंधे बंद करने से किसी को न्याय मिल जाएगा ?
न्याय के लिए जंग लड़नी पड़ती है .......

मैं सब से निवेदन करता हूँ कि ईमानदारी का साथ दो और बेईमान लोगो के खिलाफ पुलिस(ईमानदार पुलिस अधिकारी का , क्यूँ कि इन मे भी 100 में से 90 बेईमान है ) का साथ दे और अपना फर्ज़ निभाए देश का जिम्मेदार नागरिक होने का ।

नरेंद्र भैया आपको न्याय मिलेगा , और हम फिर से कोई IPS नरेंद्र कुमार को खोना नहीं चाहेंगे ।
भगवान नरेंद्र कुमार IPS को श्रद्धांजली ....
जय हिन्द !

Friday 9 March 2012

ऐसे हालातों में भी क्या चाहता हूँ
जाने क्यों ख्वाब इक नया चाहता हूँ

खून फैला हुआ है सड़कों पर
और मैं रंग भरा आसमाँ चाहता हूँ

आजकल सड़कों पे मौत घूमती है
मैं अपने लिए भी एक दुआ चाहता हूँ

मन्दिर में है कि मस्जिद में, या कि कहीं और
सुकून लाये जमीं पर वो खुदा चाहता हूँ

बिखरे हुए जिस्मों में पहचान ढूंढता हूँ
कल से है गुमशुदा वो आशना चाहता हूँ

बस एक अमन का ही तो ख्वाब देखा मैंने
और वो खुदा कहता है मैं कितना चाहता हूँ

Thursday 8 March 2012


चुनाव खत्म हो गए , और इसी बीच सरकार को अपनी गलतियों का खामियाजा भी भुगतना पड़ा । पर इतना सब होने के बावजूद सरकार कुछ समझने को तैयार नहीं । और अब सरकार समझने वालों में नहीं रही क्यूँ कि उनको पता चल गया कि 2014 चुनाव में कांग्रेस का आना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है तो सरकार ने फिर से जनता को लूटने का मन बना लिया है । पेट्रोल 5 रुपये तक महंगा करने की घोषणा जल्द ही करने वाली है है सरकार । कांग्रेस के समर्थको को तो कुछ नहीं मिलेगा पर सरकार के मंत्री और नेताओ ने जरूर 7 पीढ़ी तक का इंतजाम कर दिया है । ऐसे में भला क्या आम जन होली का जश्न मनाएगा । 

यहा पढे :-

कोई खेल रहा है रंग, कोई मचा रहा हुड़दंग
मँहगाई ने हर चेहरे का उड़ा दिया है रंग

रंग-बिरंगी होली ऐसी प्रायः सब रंगीन बने
अबीर-गुलाल छोड़ कुछ हाथों में देखो संगीन तने
खुशियाली संग कहीं कहीं पर शुरू भूख से जंग
कोई खेल रहा है रंग, कोई मचा रहा हुड़दंग
मँहगाई ने हर चेहरे का उड़ा दिया है रंग

प्रेम-रंग से अधिक आजकल रंग-चुनावी दिखते
धरती लाल हुई इस कारण काले रंग से लिखते
भाषण देकर बदल रहे वो गिरगिट जैसा रंग
कोई खेल रहा है रंग, कोई मचा रहा हुड़दंग
मँहगाई ने हर चेहरे का उड़ा दिया है रंग

सतरंगी आशाओं के संग सजनी आस लगाये
मन में होली का उमंग ले साजन प्यास बुझाये
ना आने पर रंग भंग है सुमन हुआ बदरंग
कोई खेल रहा है रंग, कोई मचा रहा हुड़दंग
मँहगाई ने हर चेहरे का उड़ा दिया है रंग


Wednesday 7 March 2012



अब कैसे रंगू रंगों से
चेहरा तुम्हारा असर करता नहीं
रंग हमारा, रंग है नकली
नकली है चेहरा तुम्हारा 

होली तो हो ली
अब रंगों में रंगत नहीं है
कान्हा-राधा सरीखे सखा-सखी की
पंगत नहीं है 

तुमको रंगू तो
रंगू कैसे
होली की क्या बात करते हो
तुमतो गिरगिट को भी
मात करते हो 

यूं तो इस दुनिया में
रंग बहुत है
लाऊं कहां से पानी
कुओं में भंग बहुत है
हम हैं जिन्दा
लोग तंग बहुत है

सुना-पढा है
होली जला दी थी
भक्त प्रह्लाद ने
फिर
कैसे जिन्दा हो गई
इतना बाद में 

चूल्हा मांगे गैस
चाय मांगे चीनी
रोटी मांगे दाल
ऐसे में
याद ना आता
गाल-गुलाल
लाल-गुलाल
कान्हा तेरी होली
तू ही सम्हाल! 

रसोई करे पुकार
बीवी मांगे पैसा
हम हो जाते लाचार
वह हो जाती है लाल
हम पीले हो जाते हैं
इस तरह
हमारे होली के दिन
रंगीले हो जाते हैं 
om purohit..


रंग-बिरंगी प्यारी-प्यारी,
होली की भर लो पिचकारी ।

इक-दूजे को रंग दो ऐसे,
मिटें दूरियां दिल की सारी ।

तन भी रंग लो मन भी रंग लो,
परंपरा यह कितनी न्यारी ।

रंगों का त्योहार अनोखा,
आज है पुलकित हर नर-नारी ।

प्रेम-पर्व है आज बुझा दो,
नफ़रत की हर-इक चिंगारी ।

जाति-धर्म का भेद भुला दो,
मानवता के बनो पुजारी ।

मेलजोल में शक्ति बहुत है
वैर-भाव तो है बीमारी ।

Tuesday 6 March 2012

मृत्यु पर आरूढ़ हो


सोचता है इन्सान कि


शायद जीवन से उसको


मिल गया है निर्वाण ।



पर ये शब्द भी


आरूढ़ हो चुका है


एक अर्थ के लिए


प्राप्त नहीं होता


सबको निर्वाण



जब छूट जाती हैं साँसें


और तन हो जता है जड़


उस अवस्था को केवल


कह सकते हैं देहावसान ।



जो मनुष्य होता है मुक्त


काम , क्रोध , लोभ ,से


उसे ही मिल जाता है


जीते जी निर्वाण ।

Sunday 4 March 2012

हमारे गणतंत्र के समक्ष कई गंभीर चुनौतियाँ हैं. सत्ता और व्यवस्था कार्पोरेट लोकतंत्र की राह पर चल रही है. संविधान द्वारा नागरिकों को दिए गए अधिकार छीने जा रहे हैं. चौतरफ़ा मची लूट, अन्याय, भ्रष्टाचार, हिंसा वगैरह से मुल्क़ का आम नागरिक परेशान है

लोकतंत्र की स्थापना के बाद आजाद भारत में वो क्या है जो बचा रह गया है, और वो किस रूप में आज हमारे सामने है। संविधान कहता है कि लोकतंत्र में सर्वोच्च सत्ता जनता के हाथ में होती है और संसद तथा कार्यपालिका में लोग या तो उसके द्वारा प्रदत्त किए गए अधिकारों के तहत काम करते हैं या जनता के सेवक होते हैं। यानि जनप्रतिनिधियों के पास जो भी संवैधानिक सत्ता है वह उन्हें देश के नागरिकों  के द्वारा दी गई हैं।

देश में लोकतंत्र कितना बचा हुआ है और आम जनता की स्थिति क्या है।  पिछले वर्षों में लोकतंत्र का लगातार क्षरण होता गया है और सारी सत्ता उन गिने-चुने ताकतों के हाथ में रह गई है जो ऐसी योजनाएं बना रहे हैं, जो स्वयं लोकतांत्रिक हितों के विरुद्ध ठहरती है।

हमारे देश की जनता वोट देकर जिस सरकार को बनाती है, उसी जनता के बहुत साधारण और न्यायिक मांगों के विरूद्ध सरकार को सेना और अर्धसैनिक बलों का प्रयोग क्यों करना पड़ रहा है। भोजन, पानी, शिक्षा, चिकित्सा, बिजली, घर, जमीन, अभिव्यक्ति की आज़ादी और ऐसी हर चीज पर से देश के नागरिकों का अधिकार छिनता चला जा रहा है।

कई बार तो ऐसा लगता है कि यह जो कारपोरेट डेमोक्रेसी है वह किसी भी तरह से अतीत की उन सर्वसत्तावादी, निरंकुश व्यवस्थाओं से अलग नहीं रह गई है जिन्होंने अपनी प्रजा से उसका सबकुछ छीन लिया था।

इक्कीसवीं सदी आई थी तो हम सबने बहुत विश्वास और आशा के साथ भविष्य की ओर देखा था। लेकिन पहला दशक बीतने के बाद जब हम पीछे की ओर देखते हैं तो वो दशक आर्थिक घेटालों, भ्रष्टाचार और वैश्विक आर्थिक मंदी का सबसे भयावह दौर भी इसी बीच आया।

भ्रष्टाचार अपने आप में एक ऐसी ताकतवर विचारधारा (आइडियोलाजी) और व्यवस्था (सिस्टम) है, जो दूसरी किसी भी विचारधारा और व्यवस्था को निगल जाती है। आप खुद देख सकते हैं कि इसने समाजवाद और लोकतंत्र, दोनों को विफल कर दिया है।

विडंबना यह है कि हमारे प्रधानमंत्री  दुनिया के सबसे विश्वसनीय आर्थिक विशेषज्ञ राजनेता माने जाते हैं लेकिन उनके कार्यकाल में महंगाई और भ्रष्टाचार इतना बढ़ा कि गरीबों की थाली से दाल और प्याज भी गायब हो गए। उन्नीसवीं सदी के मध्य में आधुनिक हिंदी के पितामह कहे जानेवाले भारतेंदु का नाटक ‘अंधेर नगरी’ आज बार-बार याद आता है- ‘‘अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा।’’ आज आप खुद देख लीजिए,आज हर जरूरी वस्तुओ के दाम हमारे घर का बजट बिगाड़ रहे है ।

इस नई उदारवादी अर्थनीति ने सामान्य भारतीय नागरिकों के सामने एक ऐसा संकट प्रस्तुत किया है जिसकी किसी ने कभी कल्पना भी नहीं की थी। यह हमारे इतिहास का अब तक का सबसे भयावह दौर है। जिस स्वतंत्र बाजा़र को सभी संकटों का स्वयं विमोचक कहा जा रहा था, आज उसके सामने बड़े सवालिया निशान हैं। चंद मुट्ठी भर व्यापारिक समूहों की आय और मुनाफा बढ़ा कर सकल घरेलू आर्थिक विकास का भ्रम पैदा करने वाले इस बाज़ार ने बेरोजगारी, महंगाई, कर्जदारी, आर्थिक-सामाजिक विषमता की डरावनी खाई जिस तरह पैदा की है, उसका भविष्य डरावना लगता है।

देश में हर सत्ताइस मिनट पर एक नागरिक आत्महत्या कर रहा है। आंध्र और विदर्भ में गरीबी और कर्ज में डूबे किसानों की हताशा के साथ शुरू हुआ आत्महत्या का संक्रामक रोग मध्यप्रदेश, बुंदेलखंड और उत्तर प्रदेश तक पहुंच गया है। सरकार जीडीपी की उपलब्धियों के नाम पर पूरे देश को अंधेरे में नहीं रख सकती। अपनी जिस सेना पर हम कभी गर्व करते थे, वह सेना भी अब भ्रष्टाचार की चपेट में आ चुकी है। अंधाधुंध दौलत की हवस कहां तक जा पहुंचेगी, हमने कभी यह सोचा भी नहीं था।

आम नागरिक को तो ट्रैफिक का उल्लंघन करने पर भी जुर्माना भरना पड़ता है, किसान लगान देता है, जनता लगभग सभी शासकीय अनुदेशों का पालन करती है। लेकिन जो स्वयं शासक वर्ग है वह संविधान की मर्यादाओं के बाहर जा चुका हैं। यह बड़ा ही कठिन और चुनौतीपूर्ण समय है।

नई अर्थनीति ने एक ऐसी लुटेरी व्यवस्था को जनम दिया है, जिसमें आज हमारे देश की सारी राष्ट्रीय संपदा और संप्रभुता ही नहीं सामान्य नागरिकों का जीवन भी खतरे में है। मानवाधिकारों, उपभोक्ताओं के हितों और नागरिकों के तकाजों की कोई परवाह इस शासक वर्ग में नहीं रह गई है।

राजधानी में राजपथ पर राष्ट्रपति भवन के सामने नए-नए टैंकों, लड़ाकू जहाजों, मिसाइलों की प्रदर्शनी बजाय प्याज, लहसुन, प्राणरक्षक दवाइयों, विस्थापितों के पुनर्वास के लिए बने मकानों के मॉडल और देश के गरीब परिवारों के उपयोग में आ सकने वाले स्कूलों-अस्पतालों-बिजलीघरों-नलकूपों के नमूनों और उन जरूरी सामग्रियों का प्रदर्शन होना चाहिए जिनकी जनता को जरूरत है। हम सब वही देखना चाहते हैं। 
by  uday prakash ..

तुम्हारे संग बिताये उन हसीं लम्हों की
याद आते ही मै तुम्हारी याद में खो जाता हु
और तुम्हे जिंदगी में कभी भी भूल सकू
इस उद्देश से अपने
भविष्य के लम्हों में से
कुछ लम्हे ख़ास तुम्हारी यादो को
याद करके जीने के लिए
संजो के रख देता हु
अपने दिल की तिजोरी में
कभी नहीं था सोचा मैंने, ऐसा भी हो सकता है ।
बिन ईंधन के चलना मुश्किल, सब की हालत खसता है ।।
सब की हालत खसता है, ईंधन हुआ महंगा नशा ।
अमेरिका-ईरान संबंधों से, हुई यह दुर्दशा ।।
कच्चे तेल की बढ़ती कीमत, परेशान हैं आज सभी ।
दादा गिरी, आपना असत्तव, असर दिखाए कभी-कभी ।।

बिगड़ा पर्यावरण, कहीं है बाढ़-कहीं है सूखा ।
कृषि उत्पादन कमी आई है, आज किसान है भूखा ।।
आज किसान है भूखा, लागत ज्यादा उत्पादन कम ।
कर्जा चुका नहीं है पाता, तोड़ रहा है दम ।।
सुरसा जैसा मुँह फैलाए, महंगाई ने झिगड़ा ।
विदेशी आनाज मंगाया, देशी बजट है बिगड़ा ।।

मकान, सोना चाँदी, हुई आज है सपना ।
बेरोजगारी बढ़ती जाती, रंग दिखाती अपना ।।
रंग दिखाती अपना, आज है मुश्किल शिक्षा पाना ।
भ्रष्टाचार का जाल है फैला, योग्य-अयोग्य न जाना ।।
शादी के संजोए सपने, महंगाई फीके पकवान ।
कर्मचारी, मजदूर, किसान, बचा सके न आज मकान ।।
नेता की परिभाषा बदली, पाखंडी बनाया बेश ।

कभी भूनते तंदूरों में, बाहुबली चलाते देश ।।
बाहुबली चलाते देश, धर्म-जाति आपस लड़बाते ।
सत्ता में आ जाते , वेतन सुख-सुविधाएं पाते ।।
सब कुछ मंहगा मौत है सस्ती, लाज के ये क्रेता ।
कुछ नहीं सिद्धांत इनका, भ्रष्ट आचरण नेता ।।

दर-दर बढ़ती जनसंख्या, भूमि है स्थाई ।
कृषि भूमि में बनी हैं बस्ती, ऐसी नौबत आई ।।
ऐसी नौबत आई, जनसंख्या पर रोक लगाओ ।
नूतन तकनीती से, आवश्यकता पूर्ण कराओ ।।
विज्ञानकों का कर आह्वान, अविष्कार को कर ।
पर्यावरण का कर संरक्षण, रोको महंगाई की दर ।।

Saturday 3 March 2012

बरसों से अरमां सजाए
हाथों में मेहँदी लग जाए
खुश थी कितनी मुद्दत बाद
मिलने वाली थी मन की मुराद
आने वाली थी बारात
बस चंद रोज ही शेष बचे थे
मदमस्त गाँव गलियारे जाती
झूम झूम जंगल में गाती
अकस्मात् एक दिन जंगल में
शेर खड़ा था उसके पास
उसने कहा मुझे छोड़ दो
मेरे सभी अरमां हैं बाकि
मुझे मेहँदी लगवानी है
दुल्हन बन पीया घर जाना है
शेर में जज्बात कहाँ
दिया झपट्टा मार गिराया
पल में प्राण पखेरू उड़ गए
रह गए सभी अरमां अधूरे
वो तो पशु था
दिल भी पशुवत
हम मनुष्य हैं फिर भी पग पग
पशुता ही दिखलाते हैं

बकरी को चारा दिया
हिष्ट पुष्ट तंदुरुस्त बन जाए
मुर्गी को दाना दिया
अंग अंग कोमल हो जाए
मछली को भोजन दिया
निगलें तो कांटा न आए
सब जीवों को हमने पाला
स्वाद स्वाद में वध कर डाला
बरछी भाला चाकू छुरी से
कितने जीव कर दिए हलाल

तब तो तनिक भी रूह न कांपी
अपने पाँव में शूल चुभे तो

कैसी चीखें चिल्लाते हो

मूक निरीह कमजोर जीव का

मांस चाव से खाते हो

धर्म कर्म उपदेश की बातें
मानव क्यूँ दोहराते हो
सोचो गर तुम्हें कोई मारे
अंग अंग छिन्न भिन्न कर डाले
भुने आग में
तले तेल में
हल्दी मिर्च का लेप लगाए
शरीर तुम्हारा मृतप्राय पर
आत्मा रह रह चिल्लाए
एक माँ की ममता हो तुम
एक पिता का गहन दुलार
पत्नी के माथे की बिंदी
बहन की राखी से बंधा प्यार
भूखे बच्चों की रोटी हो
सबकी आँखों का मोती हो
तुम्हे कोई स्वाद की चाह में मारे
सोचने से भी घबराते हो
वो जीव भी माता पिता हैं
वो भी किसी की आँख के तारे
तो फिर क्यूँ तुम मनुष्य होकर
अधम पशु बन जाते हो

स्वाद स्वाद में

हत्या दर हत्या

कितने पाप कमाते हो ।