Monday 16 September 2013

* मुजफ्फरनगर में आज **

* मुजफ्फरनगर में आज **

मनमोहन सिंह घायलों को देखने अस्पताल पहुचे

मनमोहन : नमस्ते , कैसे हैं आप ?
घायल व्यक्ति : नमस्ते सरदार जी , मैं ठीक हु आप सुनाओ
मनमोहन : मैं भी ठीक हु , कोई परेशानी हो तो मुझे बताये मैं समाधान करूँगा
घायल व्यक्ति : नहीं जी कोई परेशानी नहीं , वैसे आप हैं कौन ??
मनमोहन : मैं भारत का प्रधानमंत्री हु और आप ?
घायल व्यक्ति : मैं बिलगेट्स का दामाद हु , ये गाँव खरीदने आया था
मनमोहन : अजी मजाक मत कीजिये
घायल व्यक्ति : शुरू किसने किया बे?
मनमोहन : hmmmm..........ठीक हैं

Friday 7 June 2013

थोडा झुक हूँ ,पर अभी मैं हरा नहीं
थोडा रूका हूँ ,पर अभी मैं थम नहीं
थोडा ओझल हूँ ,पर अभी मैं मिटा नहीं
थोडा दूर ही सही ,पर आप सब से जुदा नहीं
आँखों में आंसू है ,पर अभी मैं रोया नहीं
नींद शायद खुली है ,पर सपना अभी मैंने खोया नहीं
दिल में दर्द है ,पर दिल अभी टूटा नहीं
लक्ष्य को है पाना ,
क्यूंकि सपना मेरा झूठा नहीं...... 
surendra
ज़िन्दगी खुली आँखों का एक सपना है
और मौत एक अनकही सच्चाई
ज़िन्दगी कभी न ख़त्म होने वाला एक मुकदमा है
और मौत उसकी आखिरी सुनवाई है

Friday 24 May 2013

गीत को मैंने चुना है ,मन मेरे क्यूँ अनमाना है 
बादलों के साथ रहना ,नीर सा अनवरत बहना है 
डर भला क्या आंधियों से ,हर दिशा में डग भरना है 
पर नहीं तो क्या हुआ ,व्योम का सम्बल घना है  
छटपटाती भावनायें ,नेह वाली कामनायें 
अब न थमती दिख रही है स्वप्न देखी वर्जनायें 
प्यार की दीवार ,दिल की कामना से घर बना है
साथ साहस है तसल्ली ,जग उड़ाये खूब खिल्ली 
कर्म को मैंने सराहा ,फिर कहाँ है दूर दिल्ली  
लक्ष्य कैसे कह सकेगा ,पास आना मना है 
गुनगुनाते पार पाना ,संग समय के मुस्कुराना 
हर तरफ चर्चा यही है ,हो गया है "राज " दीवाना 
उसकी धरा क्या ,व्योम क्या ,गाँव क्या ,क्या परगना है 
गीत को मैंने चुना है ,मन मेरे क्यूँ अनमाना है 

Monday 18 March 2013

भारत में लोकतन्त्र और मानवाधिकार कागजों में तो है ,लेकिन एक बेहद छोटे वर्ग के पास इन अधिकारों को मांगने की हैसियत ,पैसा ,पहुँच और किस्मत है (धनाढ्य, राजनीतिक और गैर सरकारी संस्थाएं )
बाकी लोगो के लिए संविधान कागज़ का एक टुकड़ा भर है । जब किसी राष्ट्र में कुछ हासिल करने के लिए "संबंधों " और "पहुँच" का सहारा लेना पड़े तो उस राष्ट्र का तंत्र असफल साबित होता है ।
कई देशभक्त लोग भारत के भविष्य को लेकर बेहद चिंतित है ,अलग अलग ताकते भारत के गणतन्त्र पर चारों और से दबाव डाल रही है । अमीर श्रेणी के बीच अपना खुद का गणतन्त्र बनाने की एक नयी अवधारणा पनप रही है । अमीर वर्ग ने अपने लिए निजी सुरक्षा व्यवस्था ,निजी स्वास्थ्य व्यवस्था ,निजी पेयजल व्यवस्था तैयार कर एक तरह से अपने अपने निजी गणतन्त्र खड़े कर लिए है । पड़ोसी अंजान अपरिचित हो गए ,सरकार से उम्मीद मर गई और "समुदाय" की भावना खत्म हो रही है
दूसरी तरह भारत के गरीब वर्ग में एक अलग ही तरह की सोच इसे खोखला कर रही है । नकसलवाद और वामपंथी उग्रवाद आज देश के लगभग 30 % हिस्से को तोड़ रहा है । मौजूदा हालात में आने वाले एक लंबे दौर तक भारत की लगभग 50 करोड़ जनता संपन्नता और खुशहाली से वंचित रहेगी   करोड़ो भारतीय इतने गरीब है कि "मार्क्स और एंजेल्स " के शब्दों में कहे तो उनके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है , सिवाय अपनी आबादी के ।
अगर आज हर भारतीय को भारत के विकास में अंशधारक का मौका नहीं दिया तो भारत का भविष्य निश्चित रूप से अंधेरे में होगा ।
जैसा मोदी जी ने कहा ,सुनियोजित व्यवस्था तेज और पर्यावरण के अनुकूल विकास सुनिश्चित करेंगे और देश की कमान देश के नागरिकों के हाथ में सोंप दी जाएगी तब ही इस देश का सर्वांगीण विकास हो सकता है ।
इसमे सिर्फ नेता ही नहीं आम जन को भी भागीदार बनाना होगा , लोगो में देश के विकास की भावना जगाना होगा , मोटिवेट करना होगा , तब ही संभव है ।
भारत का प्रबंधन ,इस विशाल रथ को हांकना आज विश्व के सामने एक बड़ी चुनौती है । भारत के राजनेताओ और जनता दोनों को मिलकर इस चुनौती से निपटने की जरूरत है ,बशर्ते लीडर साहसी और विकास पुरुष हो ,जो देश की रग रग से वाकिफ हो , देश की वर्तमान सरकार पूर्ण रूप से हर क्षेत्र में नाकाम साबित हो चुकी है ।
जरूरत है एक स्पष्ट भविष्योंन्मुख दृष्टि की ,एक विचारधारा की और एक साहस की । अब समय आ गाया है कि अब यह देश अपनी वर्षों पुरानी दक़ियानूसी सोच और नीतियाँ छोड़े और एक नए विकास मार्ग ,एक नयी सोच के साथ विश्व का अगुआ बन खड़ा हो । बात में निहित है -संतुलन
जय हिन्द ।

Sunday 17 March 2013

भारत सरकार घोटालों ,भ्रष्टाचार और घपलों में इतनी व्यस्त हो चुकी है कि वो देश के हालातों को देखने में सक्षम नहीं रही । ना तो देश आंतरिक रूप से सुरक्षित है ना ही बाहरी रूप से , कोई सुधार नज़र नहीं आता , देश में रोज कहीं ना कहीं छोटे मोटे दंगे फसाद होते रहते । मतलब प्रशासन की खामियाँ हर दिन बाहर आती है , यूं कहे तो प्रशासन लगभग सब जगह नाकाम सा चल रहा है । इसीलिए लोगो का कानून और प्रशासन से विश्वास उठने लगा है । वही भारत सरकार आतंक से निपटने में पूर्ण रूप से नाकाम सी साबित हो रही है , इंटेलिजेंस की अग्रिम सूचना के बावजूद देश में आतंकी हमले हुए जा रहे है । क्यूँ खुफिया विभाग की सूचनाओं को गंभीरता से नहीं लेती सरकार ? क्यूँ राज्य और केंद्र के खुफिया विभागो में समंजस्य नहीं है ?पता नहीं कितने आतंकवादियों को हिंदुस्तान में पनाह मिली हुई है ।
स्वार्थ की राजनीति ने देश के हालात को बिगाड़ दिया है , तेजी से विकास करने वाला देश अपनी आंतरिक खामियों में भी सबसे ऊपर पायदान पर है ।
देश के बिगड़ते हालातों के जिम्मेदार आम जन भी है ,जिन्होने अपने जमीर को नींद की गोलियां खिला कर सुला दिया है ,
जिसकी वजह से कहीं धर्म के ठेकेदार (निर्मल बाबा ,राधे माँ ,जाकिर नायक ,के ए पाल जैसे धर्म के ठेकेदार )तो कहीं राजनीति से जुड़े लोगो ने आम जन को गुमराह कर हिंसक संदेश देकर लोगो में हीं द्वेष पैदा करते है ।
लोग ऐसे ठेकेदारो के अंधभक्त हुए जा रहे है ,जिसकी वजह से इंसान ही इंसान से नफरत करने लगा है ।
इस तरह की अंधभक्ति समाज व देश की एकता के लिए घातक होती जा रही है , लोगो को अपने सोये जमीर को जागा कर इंसानियत को बचाना है ,देश की एकता कायम रखनी है ।
अक्सर राजनीतिक लोग कहते है कि संविधान से ऊपर कोई नहीं है इस देश में , हम कहते है संविधान और संसद से पर इस देश की जनता है जिसके लिए ये संविधान और संसद है ।
नेता अपनी मर्जी से कानून बनाते व बदलते है ,कानून बनाने में जनता की राय या जनता की भागीदारी जरूरी नहीं ?? जिनके लिए कानून बनाए जा रहे है ।
सरकारे अक्सर कानून बनाकर जनता पर "लाद " देती है , जिसके परिणाम आज भी हम देखते है कानून का पालन करने वालों से ज्यादा संख्या कानून तोड़ने वालों की है ।
जनता की मांग के अनुसार कानून बनाने में जिस सरकार को 2-2 साल लग जाते और फिर भी जनता द्वारा मांग किए कानून को नहीं बना सकी ,वही सरकार अपने मन मुताबिक कानून बनाने में और पास करने में जरा भी देरी नहीं करती ,विपक्ष विरोध करता या चिल्लाये ,इससे कोई फर्क नहीं पड़ता ,सब अपने मन मुताबिक करने में लगी है ये सरकार ।
विपक्ष भी क्षमता हीन हुए जा रहा है ,जो जनता की भलाई का दिखावा करने में बड़े माहिर है ।
अक्सर देखते है "आरक्षण " के लिए सब जगह आंदोलन होते देखे है ,
बाबा साहब ने आरक्षण को उस वक़्त जरूरी समझा कि निम्न वर्ग को महत्व दिया जाये जो दिन ब दिन पिछड़ते जा रहे है , बाबा साहब हर 5 साल में आरक्षण का कुछ % कम करते करते आरक्षण को पूर्ण रूप से हटा देना चाहते थे , पर राजनीतिक दलालो ने इसे अपना वोट बैंक बना लिया और आरक्षण को कम करते करते बन्द करने की बजाय बढ़ते रहे और हालात आज हम देख सकते है , देश की तरक्की नहीं हो रही क्यूँ कि आरक्षण कोटे से कमजोर लोग ऊंचे ओहदे पर बैठे है ।
राजनीतिक दल दिन ब दिन अपने स्वार्थ और वोट बैंक के लिए अपने नैतिक मूल्यो से गिरते जा रहे है , इसलिए आरक्षण के साथ एक और शब्द जोड़ दिया " अल्पसंख्यक "
अल्पसंख्यक शब्द का इस्तेमाल कर राजनीतिक किसी विशेष वर्ग को खुश करने में जुटे है ,
राजनेताओ ने अल्पसंख्यक की परिभाषा को मुस्लिम समुदाय से जोड़ा है , यानि मुस्लिम अल्पसंख्यक की श्रेणी में आते है ।
हम उन नेताओं से जानना चाहते है क्या "जैन समुदाय " अल्पसंख्यक नहीं ?
क्या "सीख समुदाय " अल्पसंख्यक नहीं ?
क्या "ईसाई समुदाय " अल्पसंख्यक नहीं ?
तो इनको उन तमाम सुविधाओ से वंचित क्यूँ रखा जाता ,जो अल्पसंख्यक के नाम पर सिर्फ मुस्लिम को दिया जाता ?
खत्म क्यूँ नहीं कर देते इस अल्पसंख्यक शब्द को जो समुदायो और जाति में नफरत का काम करते है ॥
आखिर आम जन इसे समझना क्यूँ नहीं चाहते कि ये लोग अपने स्वार्थ के लिए किसी भी हद तक गिर सकते है ।
सिर्फ मुस्लिम को अल्पसंख्यक मनाने के नतीजे से आज पाकिस्तान भारत पर अपनी जड़े मजबूत कर रहा है , जो इस अंधी सरकार को नहीं दिख रहा । और ये सरकार निरंतर देश की नीव को खोखला करने में लगी है चाहे आर्थिक रूप से हो या सामाजिक रूप से या सुरक्षा के लिहाजे से ।
मेजर जनरल बख्सी ने साफ कहा कि आखिर ये सरकार कब तक अपने दुश्मनों से यूं हाथ मिलकर भोज करती रहेगी , मुह तोड़ जवाब देने की जगह ये सरकार उन पाकिस्तानियों का स्वागत करती जिन्होने हमारे जवानों के सिर काट दिये थे ।
उस देश के लोगो से हाथ मिलते जो "अफजल गुरु की तुलना "भगत सिंह और अन्य स्वतंरता सैनिको से करते ।
दोस्तो देश का दुर्भाग्य है कि एक ऐसे व्यक्ति के हाथ में बागडोर है जो खुद कभी फैसले नहीं ले सकता । एक अर्थशास्त्री होते हुए देश की आर्थिक स्थिति को मुह के बल गिरा दिया ।
दुर्भाग्य है हम आम जन का कि हमको सरकारे चुनने का अधिकार दिया जाता पर जब सरकार तानाशाही करने लगे तो उसे हटाने का अधिकार हमको नहीं दिया । एक बार चुनने के बाद 5 साल तक हमारा कोई अधिकार नहीं कि हम उन्हे हटाये ।
 अब तो इंतजार है किसी अच्छे नेतृत्वकर्ता की जो देश को सही दिशा दे सके । बाकी चार दिन के आंदोलनों से कुछ बदलने वाला नहीं ।
जय हिन्द

Wednesday 13 March 2013

शब्दों को यूं सँजोकर ,सुकून से लिखना है
चाहे आज अंबर है ,कल छप्पर भी होना है
ख़्वाहिशों की गहराई में ,जागकर भी सोना है
ख़्वाहिशों को छोडकर ,कोने में सिसककर रोना है
मंज़िले मिले या ना मिले आज ,गहरे समंदर में आँसू को भी धोना है
आजगम है आहिस्ता सा मगर ,वक़्त भी एक खिलौना है
खिलौने के इस खेल से ,कभी अलविदा भी होना है
वक़्त है अभी मजबूर ,पर मन्नतों को भी संजोना है
ख़्वाहिशों की चादर से उठकर ,
हकीकत की जमीं पर भी सोना है ... 

Monday 11 March 2013

सीरवी महासभा !!!! बहुत जोरों से चल रही थी संगठन बनाने की तैयारियाँ, सभाओं का होना और लोगों का भाग लेना, समाज सुधार व विकास की चर्चा करना, खुशी होती थी कि समाज में जो अनिवार्य बदलाव की जरूरत है वो होगा, समाज को नई दिशा मिलेगी,
पर संगठन बन गया, सभाए हो गई, सदस्य नियुक्त किये जा चुके
समाज को दिशा तो मिली पर सिर्फ राजनीति की, बाकि जमीनीं हकीकत में विकास या परिवर्तन की कोई दिशा नजर नही रही,
तकनीकी युग में इंटरनेट मंच सोसल मीडिया को ताक में रख कर

सीरवी महासभा नाम का पेज भी बना कि कम से कम महिने में एक बार महासभा संबंधी जानकारी मिलेगी,
पर कुछ खबर नही मिलती, कोई जानकारी नही, क्या समाज में सामंजस्य बनाना, जरूरी परिवर्तन लाना समाज विकास सिर्फ और राजनीति में सक्रिय हो जाने से हो जायेंगे? या सभाओ का आयोजन विकास व सुधार की बाते खोखली रह कर ठंडे बस्ते में चली गई ?


क्या लगता आपकोसमाज कासिर्फ राजनीति में सक्रिय हो जाने से समाजबदल जाएगा ?

महासभा में समाज में विकास व बदलाव के जिन मुद्दो पर चर्चा हुई क्या उन पर अमल हो रहा है ?

महासभा बनाने के बाद समाज की एकता का ग्राफ कितना बढ़ा ?

Thursday 14 February 2013

जय श्री आईमाता जी की
सीरवी समाज के भाई बंधुओ समाज विकास के लिए और समाज को पहचान दिलाने के लिए सिर्फ खुद की प्रसिद्धि या खुद की उन्नती काफी नहीं है , समाज में उस तबके का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए जो सबकी बराबरी नहीं कर सकते है ।
आजकल हम देख सकते है कि दक्षिण भारत में माँ आईजी के बहुत से मंदिर बने है ।
बहुत बढ़िया बात है ,देवी के प्रति आपकी श्रद्धा ऐसे ही बनी रहे और माँ आईजी सबका कल्याण करे ।
पर क्या समाज का विकास सिर्फ मदिर बनाने और लाखों करोड़ो खर्च  कर मंदिर बनाने से हो जाएगा ?
या इससे यह सिद्द हो सकता कि आपकी भक्ति, सच्ची भक्ति और श्रद्धा है माँ आईजी के प्रति ?
श्रद्धा और भक्ति को जब मूल्यो में नहीं तोला जा सकता तो ,क्यूँ दिखावा किया जाता समाज में "भडी बीज़" जागरण या मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह पर बोलियाँ लगाकर ?
क्या बोलियाँ लगा कर उस धनराशि से किसी जरूरतमंद की मदद होती है ?
बोलियों से मिलने वाली राशि समाज विकास के लिए खर्च की जाती है ?
बोलियों की राशि को बने बनाए मंदिरों में लगाने की बजाय समाज में जरूरतमंद को शिक्षा ,जरूरतमंद को चिकित्सा उपलब्द करने में किया है कभी ?
कोई धनवान अपनी हैसियत से बोली लगाता , कोई माध्यम वर्गीय अपनी आय को ध्यान में रखकर ।
कभी कबार तो कई भाई बंधु बोली के लिए मुंह भी नहीं खोलते कि कही कोई उनसे ज्यादा बोली चढ़कर उनका मान कम ना कर दे ।
और कई बार होता है बोली लगाई जाती और धनवान व्यक्ति बोली को बढ़ा चढ़ा कर लेते है , जिससे मध्यमवर्गीय लोगो के मन में एक लज्जा सी होती और कुंठित से रहते ।
और फिर एक दूसरे में बैर पनपता है ,कि "भाई हम अपना अलग मंदिर बनाएँगे ,बड़े लोगो की हम बराबरी नहीं कर सकते "
फिर कुछ लोग -परिवार मिल कर अलग से मंदिर बनवाते ,सब जने मिल कर करोड़ो खर्च करते मंदिर बनाने में ,और वो भी वही रास्ता अपनाते मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह व जागरण पर , बोलियाँ लगते । कुछ साल तो हिलमिल कर रहते फिर उनमे भी बोलियों की वजह से टीस बन जाती और फिर से एक नया मंदिर ।
कब तक चलेगा यह सिलसिला ?
मंदिर पहले भी बनाते थे ,भजन संध्याये भी होती थी पर बोलियाँ नहीं हुआ करती थी , सब को समान रूप से काम दिया जाता था
पहले आज की तरह "पूजा ,ध्वजा ,पाट ,प्रसाद ,आरती ,दीवान जी का बधावा ,भेल पूजन " इन सब की ख़रीदारी नहीं हुआ करती थी ।
जिससे समाज में एकता और भाईचारा बना रहता था ,और समाज में समंजस्य भी बना रहता ।
समाज में कई बड़े और अच्छे अच्छे ज्ञानी लोग है , कहते है ना गुप्त दान महा दान ,तो ये बोलियो में उस दान की नुमाइस करके आखिर क्या दिखाना चाहते ?
आज समाज तिनके की तरह बिखर रहा है ,जरूरत है कि समाज को फिर से एकता के धागे में बांध कर भाईचारे को बढ़ाए व समंजस्य बनाए ताकि समाज का नाम हो और समाज का विकास हो । इसलिए ऐसे कार्यो से वंचित रहे जो समाज को तोड़ने का काम करते है ।

आप की राय जरूर लिखे
भजन संध्या और मंदिर प्राण प्रतिष्ठा पर बोलियाँ लगानी चाहिए या नहीं ?
:-राजू सीरवी (राज सीरवी राठौड़)

Sunday 10 February 2013

आज समाज और देश में परिवर्तन कही पतन की तरफ तो नहीं ????(पश्चिमी सभ्यता को अपनाना )

प्राचीन काल में विज्ञान, संस्कृति और दर्शन के क्षेत्र में अपनी पैठ बना चुके भारत को विश्वगुरू की उपाधि से नवाजा जा चुका है. दुनियां भर के लोगों को भारतीय संस्कृति और परंपराओं से बहुत कुछ सीखने का अवसर प्राप्त हुआ है. लेकिन अब परिस्थितियां पहले जैसी नहीं रहीं.
एक समय था जब हमारे युवाओं के आदर्श, सिद्धांत, विचार, चिंतन और व्यवहार सब कुछ भारतीय संस्कृति के रंग में रंगे हुए होते थे। वे स्वयं ही अपने संस्कृति के संरक्षक थे, परंतु आज उपभोक्तावादी पाश्चात्य संस्कृति की चकाचौंध से भ्रमित युवा वर्ग को भारतीय संस्कृति के अनुगमन में पिछडेपन का एहसास होने लगा है। आज अंगरेजी भाषा और अंगरेजी संस्कृति के रंग में रंगने को ही आधुनिकता का पर्याय समझा जाने लगा है। जिस युवा पिढी के उपर देश के भविष्य की जिम्मेदारी है , जिसकी उर्जा से रचनात्मक कार्य सृजन होना चाहिए,उसकी पसंद में नकारात्मक दृष्टिकोण हावी हो चुका है। संगीत हो या सौंदर्य,प्रेरणास्त्रोत की बात हो या राजनीति का क्षेत्र या फिर स्टेटस सिंबल की पहचान सभी क्षेत्रो में युवाओं की पाश्चात्य संस्कृति में ढली नकारात्मक सोच स्पष्ट परिलछित होने लगी है।
हम स्वयं ही अपनी मौलिक परंपराओं और मान्यताओं को दरकिनार कर, पाश्चात्य रिवाजों और उनकी जीवनशैली को अपनाते जा रहे हैं. हालांकि किसी अन्य राष्ट्र से सीखना और उन्हें ग्रहण कर लेना कोई बुरी बात नहीं हैं. लेकिन आधुनिकता के पथ पर चलते हुए इन रिवाजों को अपने भीतर समाविष्ट करने की यह प्रक्रिया किस हद तक हो, इसे लेकर अभी तक भारतीय लोगों की समझ विकसित नहीं हो पाई है.
आज युवाओ के लिए सौंदर्य का मापदण्ड ही बदल गया है। विश्व में आज सौंदर्य प्रतियोगिता कराये जा रहे है, जिससे सौंदर्य अब व्यवासाय बन गया है। आज लडकिया सुन्दर दिख कर लाभ कमाने की अपेक्षा लिए ऐन -केन प्रकरण कर रही है। जो दया, क्षमा, ममता ,त्याग की मूर्ति कहलाती थी उनकी परिभाषा ही बदल गई है। आज लडकियां ऐसे ऐसे पहनावा पहन रही है जो हमारे यहॉ इसे अनुचित माना जाता है। आज युवा वर्ग अपने को पाश्चात्य संस्कृति मे ढालने मात्र को ही अपना विकाश समझते है।आज युवाओ के आतंरिक मूल्य और सिद्धांत भी बदल गये है। आज उनका उददेश्य मात्र पैसा कमाना है। उनकी नजर में सफलता की एक ही मात्र परिभाषा है और वो है दौलत और शोहरत । चाहे वो किसी भी क्षेत्र में हो । इसके लिए वो कुछ भी करने को तैयार है।
भारतीय संस्कृति में सदा से मेहनत, लगन, सच्चाई का मूल्यांकन किया जाता रहा है,परंतु आज युवाओ का तथाकथित स्टेटस सिंबल बदल चुका है, जिन्हे वो रूपयो के बदले दुकानो से खरीद सकते हे। कुछ खास . खास कंपनियों के कपडे, सौंदर्य. प्रसाधन एवं खाध सामग्री का उपयोग स्तर दर्शाने का साधन बन चुका है। महंगे परिधान ,आभूषण, घडी ,चश्मे, बाइक या कार आदि से लेकर क्लब मेंबरशिप, महॅंगे खेलो की रूचि तक स्टेटस. सिंबल के प्रदर्शन की वस्तुए बन चुकी है। संपन्नता दिखाकर हावी हो जाने का ये प्रचलन युवाओं को सबसे अलग एवं श्रेष्ठ दिखाने की चाहत के प्रतीक लगते हैं।
भारत आने वाले विदेशी सैलानी सबसे ज्यादा हमारी संस्कृति और परंपराओं से प्रभावित होते हैं. उन्हें भारतीय परिधान बहुत अधिक आकर्षित करते हैं. अकसर हम विदेशी  महिलाओं को भारतीय पारंपरिक लिबास में देखते हैं. लेकिन हमारी युवा पीढ़ी को यह परिधान आउट-डेटेड लगते हैं. उन्हें विदेशी लोगों की तरह संवरना और कपड़े पहनना ज्यादा पसंद आता है. फैशन के नाम पर क्या-क्या नहीं किया जाता. बिना सोचे-समझे हर उस क्रिया-कलाप की नकल की जाती है जो विदेशियों की संस्कृति है.
आखिर युवाओं की इस दिग्भ्रांति का कारण क्या है ?
इसका जवाब यही है कि कारण अनेक है। सबसे प्रमुख कारण है ,प्रचार -.प्रसार माध्यम ।युवा पीढी तो मात्र उसका अनुसरण कर रही है। आज भारत में हर प्रचार माध्यम के बीच स्वस्थ प्रतियोगिता के स्थान पर पश्चिमी मानदंडों के अनुसार प्रतिद्धंद्धी को मिटाने की होड लगी हुई है। सनसनीखेज पत्रकारिता के माध्यम से आज पत्र. पत्रिकाए, ऐसी समाजिक विसंगतियो की घटनाओं की खबरो से भरी होती हैंए जिसको पढकर युवाओ की उत्सुकता उसके बारे में और जानने की बढ जाती है। युवा गलत तरह से प्रसारित हो रहे विज्ञापनों से इतने प्रभावित हो रहे है कि उनका अनुकरण करने में जरा भी संकोच नहीं कर रहें है।
अगर भारत सरकार को भरतीय संस्कृति की रक्षा करनी है तो ऐसे प्रसारणो पर सख्ती दिखानी चाहिए ,जो गलत ढंग से प्रस्तुत किये जाते हैं। इन प्रसारणो से समाज में गलत संदेश जाता है। इन्ही पत्र. पत्रिकाए ,विज्ञापनो को गलत ढंग से पेश कर समाज मे युवाओ को भ्रमित किया जाता है। अगर हमारी संस्कृति को प्रभावी बनाना है तो युवाओ को आगे आना होगा । लेकिन आज युवाओ का झुकाव पाश्चात्य संस्कृति की ओर है ,जो हमारे संस्कृति के लिए गलत है। आज सरकार और देशवासियो को मिलकर संस्कृति के रक्षा के लिए नए कदम उठाने की जरूरत आन पडी है,जिससे संस्कृति को बचाया जा सके।
परिवर्तन प्रकृति का नियम है, लेकिन ये परिवर्तन हमें पतन के ओर ले जायेगा ।
हमारे परिवर्तन का मतलब सकारात्मक होना चाहिए जो हमे अच्छाई से अच्छाई की ओर ले जाए । युवाओ की कुन्ठीत मानसिकता को जल्द बदलना होगा और अपनी संस्कृति की रक्षा करनी होगी ।
आज युवा ही अपनी संस्कृति के दुश्मन बने हुए है। अगर भारतीय संस्कृति न रही तो हम अपना अस्तित्व ही खो देगें।संस्कृति के बिना समाज में अनेक विसंगतियॉं फैलने लगेगी ,जिसे रोकना अतिआवश्यक है। युवाओ को अपने संस्कृति का महत्व समझना चाहिये और उसकी रक्षा करनी चाहिए । तभी भारतीय संस्कृति को सुदृढ और प्रभावी बनाया जा सकता है।
साभार - शिव शंकर जी व दैनिक जागरण

Monday 4 February 2013

ज़िंदगी की किताब हाथ में ,
ज़िंदगी को पढ़ने लगे
जी रहे थे फिर से इस ज़िंदगी को
पन्नो को उलटते हुए
हर एक पन्ने पर दफन थी, पूरानी कहानियाँ
हर एक लफ्ज रो रहा था
गम का अफसाना सुनते हुए
कुछ दुख .... कुछ दर्द
कुछ अपनों के ... कुछ गैरो के
फिर से महसूस किए
वो सब कुछ अश्कों को बहते हुए
कुछ पाया ही नहीं हमने तो , ज़िंदगी से
बस खोया ही है .....
फिर भी हर राह पर
चलते रहे हम मुसकुराते हुए
अब थक गए है ....
पर मंज़िल तक जाना है
राह में मायूसी के कांटे
मगर फिर भी .....
चलते ही जाना है .......................

Sunday 3 February 2013

है ज़रा सा सफर 
गुजर जाएगा ये भी 
धूप की तापिस में 
साया भी मिल जाएगा 
बादल जो रोये आज बहुत 
कल वो भी मुस्कुराएगा 
ये किस्सा हवा का छोड़
पत्थर दिलो को तोड़ा 
ज़िंदगी के हज़ार रास्तो में 
मेरी मंज़िल को रास्ता मिला 
आखरी ख़्वाहिश जो थी मेरी 
उसको सहील का किनारा मिला