Sunday, 20 May 2012

लिखना बहुत कुछ है ,पर शब्द कहीं खो गए 
भावनाओं के समन्दर थे कभी,अब दिलो के मैदान भी बंजर हो गए 

साथ चले थे सफ़र में जिंदगी के, कई हमराही 
अब कौन कहे की रास्ते मुड़े थे,या वो ही साथ छोड़ गए 

जल्दी में बहुत हर शख्श यहाँ, सब कुछ पाने की
कि सब्र से सारे शब्द अब बेमायने हो गए ,

आज धन के प्रति ये देखिये समर्पण,
कि धनवान सारे अपने ओर, सब अपने बेगाने हो गए...........

बात करो आज ,मतलब की बस यहाँ पर,
रिश्ते, नाते, प्यार, विश्वास सब गुजरे ज़माने हो गए

वही हँसता है आज हम पर, दीवाना कहकर हमें,
जिसके जुल्मो - सितम से हम, दीवाने हो गए........

ढूंढ़ने निकले थे कि शायद मिल जाये कोई इंसान मुर्दों की इस भीड़ में ,
पर आज टटोला खुद को तो जाना,हम खुद एक जिन्दा लाश हो गए ............


जाग जरा इंसान ,जीवन दो घड़ी का है 
चेत रे नादान ,जीवन सिर्फ दो घड़ी का है 

काल नगाड़ा बाजे सर पर ,क्यूँ बैठा है गाफिल होकर 
यह संसार है देश बेगाना , तुमको यहाँ से एक दिन है जाना 
अपना घर पहचान ,जीवन दो घड़ी का है 

चला चली का सब है खेला ,झूठ सारा यही है झमेला
पल दो पल का जग है मेला ,उड़ जाएगा एक दिन हंस अकेला
इस सच्चाई को जान ,जीवन दो घड़ी का है

जोड़ी है जो पाई-पाई ,सब है माल पराया
क्या करता है मेरी मेरी ,हो जाएगा खाक की ढेरी
छोड़ दे अभिमान ,जीवन दो घड़ी का है

मन मंदिर की ज्योत जगा ले ,नाम ईश्वर का इसमे बसा ले
सुख दुख का है नाम सहायी ,नाम जगत में है सुखदाई
ले सतगुरु से ज्ञान ,जीवन सिर्फ दो घड़ी का है



फिर आज शाम से गुजरी तन्हाई है
वो जो रहते थे मेरी नज़रों में बूंद की तरह
आज फिर वही एक मुलाकात याद आयी है

हर तरफ सदमे की भीड़ सा लगे
वो गीला कभी हल्के हल्के से गिरे
नज़्म की परछाई में आज जैसे झरने का रुख कर आयी है
फिर आज शाम से गुज़री तन्हाई है

दो पलक वक़्त का मतलब जो समझे
मद्दम मद्दम सी चाँदनी में कहीं
हरकतें सोज़ की बन्दिशों इस कदर आज हीना सी रंग लायी है
फिर आज शाम से गुजरी तन्हाई है

मेरे मालिक मेरे खुदा मुझसे एक रोज़ जो मिले
एक सबाब रौशनी का बेदाग हमें भी दिखे
क़यामत की जो रौशनी से रुसवाई है
फिर आज शाम से गुजरी तन्हाई है

ये जो छलका है मेरा घुमान की तरह
है नहीं वो एक मौसम का कैदी
एक कारवां है जलते किस्सो का जो इस तरह नज़र आयी है
फिर आज शाम से गुजरी तन्हाई है
वो जो रहते थे मेरी नज़रों में बूंद की तरह
आज फिर वही मुलाकात याद आयी है
 

सुर्ख सी खुशी है ...नादान सी जरूरत 
धीरे धीरे साँसो को भी हो चुकी एक मुद्दत 
आसमानों के परे कभी खिल सा रहा एक फूल 
कैसे कहें .... है क्या ... कह दु तो तुम हो ना कहूँ तो नज़ाकत 
थोड़ी सी करने का दिल करता है एक शरारत 
बदमाश यह ... ना फरमान सब...उँगलियों पर लिखते है एक नसीहत 

कदमों पे कदम रख के चलना 
थोड़ी दबती कुछ रूहाती 
हर आरज़ू की एक छोटी सी चाहत 
चाहत कि धागे का सिरा 
बंधे अपने हाथों में रखा है 
तेरी नज़दीकियों की अमानत

Thursday, 10 May 2012

आज देश में नीचे से ऊपर तक फैले भ्रष्टाचार से लोग उकता गए हैं और अब तो इस तंत्र से बदबू भी आने लगी है। ये जनसैलाब जो सड़कों पर उतरा है, इसके पीछे यही भ्रष्टाचार ठोस वजह है।

इस भीड़ का दुश्मन नंबर एक कौन है ? इस सवाल का सिर्फ एक जवाब है वो है राजनेता। इस सवाल का दूसरा कोई जवाब हो ही नहीं सकता।

पहला चुनाव लड़ने के दौरान जिस आदमी की हैसियत महज एक 1974 माडल जीप की थी, आज वो कई एकड वाले रिसार्ट, आलीशान बंगला, फरारी, पजीरो और होंडा सिटी कार का मालिक कैसे बन गया। नेताओं के बच्चे कैसे विदेशों में पढाई करने के साथ ही मल्टीनेशनल कंपनी में ऊंचे ओहदे पा गए। हम तो यही सोच कर शांत हो  गए कि.


प्यास ही प्यास है जमाने में, एक बदली कहां कहां बरसे।
ना जाने कौन कौन उसे छलकाएगा, कौन दो घूंट के लिए तरसे।। 
 
आज करोडों नौजवानों के हाथ पढाई पूरी करने के बाद भी खाली हैं। अगर पढा लिखा नौजवान किसी भी नौकरी के लिए जाता है, तो जिस तरह पैसे की मांग होती है, वो किसी से छिपी नहीं है। जब देश की सीमा की रखवाली करने के लिए हम सेना में भर्ती होने की बात करते हैं और वहां भी पैसे की मांग होती है, तब सच में शर्म आने लगती है भारतीय होने पर।
 
किसी भी महकमें में नौजवान आवेदन करता है तो उससे खुलेआम पैसे की मांग की जाती है। तब मै सोचता हूं जो लोग लाखों रुपये रिश्वत देकर नौकरी पाते हैं तो हम उनसे ईमानदारी की उम्मीद कैसे कर सकते हैं।
 
इस मामले को लेकर अगर आप अपने इलाके के सांसद के पास चले गए तो भगवान ही मालिक है। उसके रवैये पर हैरत होती है।
 
कोई राहत की भीख मांगे, तो  आप संगीन तान लेते हैं।
और फौलाद के शिकंजे में, फूल का इंतहान लेते हैं।। 
 
नेताओं ने रिश्वतखोरी,बेईमानी को न सिर्फ बढावा दिया है, बल्कि ये इसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इसलिए हमारा गुस्सा इनको लेकर जितना भी है वो कम है।
 
भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए हमारे पास कानून की कमी नहीं है। उसका कड़ाई से पालन भर किया जाए तो बहुत कुछ समस्या का समाधान हो सकता है। तमाम बडे बडे नेताओं को भ्रष्टाचार के मामले में जेल की हवा खानी पड़ चुकी है। आज भी कई नेता जेल में हैं। सैकडो आईएएस और आईपीएस अफसर भ्रष्टाचार के मामले में पकडे जा चुके हैं। लेकिन कानून का पालन ही ना हो, तो लोकपाल बन जाने से भी कुछ नहीं होने वाला है।
 
अफजल गुरु को सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सजा सुनाए जाने के पांच साल बाद तक उसका मामला गृहमंत्रालय में सिर्फ इसलिए लटकाए रखा जाए, हमें एक खास तपके का वोट चाहिए। मुंबई हमले के आरोपी कसाब को वीआईपी सुविधाएं दी जाएं। आतंकवादियों के खिलाफ सख्त और जल्दी कार्रवाई के लिए बने पोटा कानून को इसी कांग्रेस की सरकार ने खत्म कर दिया।
 
 

Tuesday, 8 May 2012

पश्चिमी सभ्यता को हम क्यूं स्वीकर करें 
छोड़ के अपना आंगन गैरों के घर से क्यूँ प्यार करें

आठ इंच की  हील कहीं, कहीं कमर से नीचे पैंट है
खान-पान में पिट्जा बर्गर फिल्मों में जेम्स बांड है
हिंदी भी अब रोने लगी है देख के आज युवाओं को
बात-चीत की शैली में जो अमरिकन एक्सेंट है

जरूरी है क्या इन चीजों को खुद से अंगीकार करें
पश्चिमी सभ्यता को हम क्यूं स्वीकार करें

हेड फोन कानों में लगा है जुबां पे इसके गाली है
बाल हैं लंबे, हेयर बेल्ट और कान में इसके बाली है
देख के कैसे पता चले यह लड़का है या लड़की है
चाल चलन भी अजब गजब है चाल भी इसकी निराली है

कहता है कानून हमारा लड़कों से भी प्यार करें
पश्चिमी सभ्यता को हम क्यूं स्वीकार करें

सरवार दुपट्टा बीत गया अब जींस टॉप की बारी है
वस्त्र पहनकर पुरुषों का यह दिखती कलयुगी नारी है
सोचो आज की लड़की क्या घर आंगन के काबिल है
रोज-रोज ब्यॉ फ्रेंड बदलना फैशन में अब शामिल है

आधुनिकता को ढाल बनाकर इश्क का क्यूं व्यपार करें
पश्चिमी सभ्यता को हम क्यूं स्वीकार करें

जींस कहीं आगे से फटी पीछे से फटी यह डिस्कोथेक जेनरेशन है
भूल के अपनी भारत मां को  पश्चिम में करते पलायन है
होंठ लाल नाखुन भी बड़े यह दिखती बिल्कुल डायन है
गांधी जयंती याद नहीं पर याद इन्हें वेलेनटायन है

भारत की गौरव का कब तक यूं ही हम तिरस्कार करें
पश्चिमी सभ्यता  को हम क्यूं  स्वीकार करें

मेक-अप से सजा है चेहरा इनका बिन मेकअप सब खाली है
बच के  रहना तुम इनसे यह माल मिलावट वाली है
दर्पण पर एहसान करे श्रृंगार करे यह घंटों में
रंग बदलती गिरगिट की तरह है दिल बदले यह मिनटों में

इनसे हासिल होगा नहीं कुछ चाहे हम सौ बार करें
पश्चिमी सभ्यता को हम क्यूं  स्वीकार करें

Tuesday, 1 May 2012


इंसाफ की डगर पे बच्चो दिखाओ चल के 
यह देश है तुम्हारा नेता तुम्ही हो कल के । 

गाना है बहुत अच्छा ,सुनने से हो या भावार्थ से , बढ़िया गाना है । पर क्या आज इस देश में इंसाफ का कोई रास्ता खुला है ? 
है इंसाफ का रास्ता खुला है पर वो सिर्फ अमीरों और राजनेताओ के लिए ही रहे है , आम जन को "इंसाफ " शब्द सुनने को मिलता है । 
भ्रष्टाचार और अनैतिकता के दलदल में धंसे लोकतंत्र के चारों स्तम्भ और रिकॉर्ड तोड़ती महंगाई। एक ओर भूख से बिलखते मासूम बच्चे और दूसरी ओर अमीरजादों की गोद में बैठकर बिस्कुट खाते कुत्ते-बिल्लियां। इंसाफ की आस में दर-दर की ठोकरें खाते आम लोग और इसी इंसाफ को चौराहे पर नीलाम करने की कुव्वत रखने वाले रसूखदार। देश के हालात पर तल्ख टिप्पणियां करने वाले मीडिया के बड़े नामों पर उठते सवालों के बीच आए दिन होने वाली आतंकी घटनाएं। यही है बदलते भारत की शर्मनाक तस्वीर! हालात ऐसे हैं कि आमजन के दिलो-दिमाग में 'गणतंत्र की छवि धूमिल हो गई है और वह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्रात्मक ढांचे को 'गंदातंत्र कहने में भी गुरेज नहीं कर रहा। वजह यह है कि देश के शीर्ष नेताओं, इंसाफ के पैरोकारों, अफसरशाही के दंभ में चूर घूसखोरों और जनता की आवाज होने का दम भरने वाले खबरनवीसों ने आम आदमी की हर उम्मीद तोड़ते हुए उसे ऐसी जिंदगी जीने को मजबूर कर दिया है कि वह न तो इन हालात को बदलने में ही सक्षम है और न ही उसमें यह सब सहन करने की हिम्मत बची है। 

 राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आए दिन धरने-प्रदर्शन किए जाते हैं लेकिन विरोध के इन परम्परागत और घिसे-पिटे तरीकों से आम हिन्दुस्तानी की रोजमर्रा की जिन्दगी में बदलाव आना संभव नहीं है।
 नेताओं को देश को लूटने से फुर्सत नहीं है और अफसर भी उनकी जी-हजूरी कर अपनी तिजोरियां भरने में जुटे हैं। भ्रष्टाचार का ऐसा गंदा खेल खेला जा रहा है कि आत्मग्लानि से जीना दुश्वार हो चला है। आम आदमी न चाहते हुए भी इस गंदे तंत्र का हिस्सा बन जाता है। 

 आए दिन जारी होने वाले सरकारी फरमान उसकी जान निकाल देते हैं। देश में कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा। हर तरफ स्वार्थ और निजी हितों के चलते लूट-खसोट मची हुई है।

एक ओर लोगों के पास खाने को रोटी नहीं हैं, वहीं अरबों रुपए का अनाज गोदामों में पड़ा-पड़ा ही सड़ गया। इस सड़े अनाज में भी साजिश के कीड़े हैं, जो देश के बड़े-बड़े शराब निर्माताओं की झोली भरने के लिए छोड़े गए 

 देश में गरीबी, भुखमरी, नक्सलवाद, बेरोजगारी, महंगाई, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, किसान विरोधी नीतियां और आतंकी घटनाओं जैसी गम्भीर समस्याओं की फेहरिस्त बहुत लम्बी है और इन्हें समूल समाप्त करने के लिए किए जा रहे प्रयास नाकाफी। ऐसे में यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि देश का भविष्य कैसा होगा और इन हालात में सुधार की कितनी गुंजाइश है। राष्ट्रीय समस्याओं के साथ-साथ सामाजिक बुराइयां भी देश को आतंरिक रूप से कमजोर बना रही हैं। जातिवाद, क्षेत्रवाद और भोगवाद ने जहां साम्प्रदायिक सौहार्द की भावना को ठेस पहुंचाई है, वहीं कन्या भू्रण हत्या, दहेज प्रथा, दुष्कर्मों और महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों  ने इसे सभ्य समाज की परिभाषा के दायरे से बाहर लाकर खड़ा कर दिया है। 

शायद एक दशक पहले तक भी किसी ने नहीं सोचा था कि देश में आने वाले कुछ सालों में ही भ्रष्टाचार इस कदर चरम पर पहुंच जाएगा और इस दलदल से लोकतंत्र का कोई भी स्तंभ अछूता नहीं रह पाएगा।
(हास्य )
धरती पर प्रलय होता है और दुनिया समाप्त हो जाती है तभी फिर से नयी दुनिया बन जाती है ,और पुरानी दुनिया के रहस्य जानने के लिए पूरातत्व विभाग के लोग खुदाई करते ,खुदाई में उनको एक सीडी मिलती है ,लोग सीडी को देख अचंभित हो गए कि भई यह क्या चीज़ है ,सब की अलग अलग राय , एक ने कहा हो न हो यह उन लोगो के लिए खाने की थाली रही होगी , तभी दूसरे ने कहा -अगर थाली है तो इसमे छेद क्यूँ है । अरे वहाँ के लोग थे ही ऐसे जिस थाली में खाते थे उसी में छेद किया करते थे 

देश की आजादी के लिए संघर्ष करने वालों ने यह कभी भी नहीं चाहा था कि हम एक गर्त से निकलें और दूसरे गर्त में गिर जाएं। इससे अच्छी तो गुलामी की स्थिति थी, जिसमें एक तंत्र तो था।

हमने अंग्रेजों की शिक्षा और कानून पद्धति तो अपना ली, परंतु उनसे यह नहीं सीख पाए कि इस तंत्र को किस तरह से चलाएमान करना है। 

लोकतंत्र हमारी आजादी का प्रतीक है लेकिन इसी लोकतंत्र की आड़ में इस देश को बांटने के षड्यंत्र रचे जाते हैं। आए दिन उठने वाली नए राज्यों की मांग विविधता में एकता की विचारधारा पर कुठाराघात है, जिसके गर्भ में राजनीतिक स्वार्थ पलते हैं।

दरअसल, यह हमारा भ्रम है कि हम तरक्की कर रहे हैं। हकीकत तो यह है कि वर्तमान भारत में दो भारत पैदा हो गए हैं। एक अमीरों का भारत और दूसरा गरीबों का भारत।

केवल आंकड़ों में देश की तरक्की दिखाने से कुछ नहीं होगा, इसके लिए जमीनी स्तर पर हर किसी को प्रयास करना होगा। देश में गरीबी, भुखमरी, नक्सलवाद, बेरोजगारी, महंगाई, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, किसान विरोधी नीतियां और आतंकी घटनाओं जैसी गम्भीर समस्याओं की फेहरिस्त बहुत लम्बी है और इन्हें समूल समाप्त करने के लिए किए जा रहे प्रयास नाकाफी। ऐसे में यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि देश का भविष्य कैसा होगा और इन हालात में सुधार की कितनी गुंजाइश है। राष्ट्रीय समस्याओं के साथ-साथ सामाजिक बुराइयां भी देश को आतंरिक रूप से कमजोर बना रही हैं। जातिवाद, क्षेत्रवाद और भोगवाद ने जहां साम्प्रदायिक सौहार्द की भावना को ठेस पहुंचाई है, वहीं कन्या भू्रण हत्या, दहेज प्रथा, दुष्कर्मों और महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों  ने इसे सभ्य समाज की परिभाषा के दायरे से बाहर लाकर खड़ा कर दिया है।

 इस देश के कर्मवीरों ने अपनी जान की बाजी लगाकर भी आजाद हिन्दुस्तान के स्वप्न को स्वीकार किया। अब पुन: उसी जज्बे और जुनून की जरुरत है कि हम इस आजाद मुल्क को सच्चे गणतंत्र के रूप में स्थापित करें।