Tuesday 1 May 2012


इंसाफ की डगर पे बच्चो दिखाओ चल के 
यह देश है तुम्हारा नेता तुम्ही हो कल के । 

गाना है बहुत अच्छा ,सुनने से हो या भावार्थ से , बढ़िया गाना है । पर क्या आज इस देश में इंसाफ का कोई रास्ता खुला है ? 
है इंसाफ का रास्ता खुला है पर वो सिर्फ अमीरों और राजनेताओ के लिए ही रहे है , आम जन को "इंसाफ " शब्द सुनने को मिलता है । 
भ्रष्टाचार और अनैतिकता के दलदल में धंसे लोकतंत्र के चारों स्तम्भ और रिकॉर्ड तोड़ती महंगाई। एक ओर भूख से बिलखते मासूम बच्चे और दूसरी ओर अमीरजादों की गोद में बैठकर बिस्कुट खाते कुत्ते-बिल्लियां। इंसाफ की आस में दर-दर की ठोकरें खाते आम लोग और इसी इंसाफ को चौराहे पर नीलाम करने की कुव्वत रखने वाले रसूखदार। देश के हालात पर तल्ख टिप्पणियां करने वाले मीडिया के बड़े नामों पर उठते सवालों के बीच आए दिन होने वाली आतंकी घटनाएं। यही है बदलते भारत की शर्मनाक तस्वीर! हालात ऐसे हैं कि आमजन के दिलो-दिमाग में 'गणतंत्र की छवि धूमिल हो गई है और वह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्रात्मक ढांचे को 'गंदातंत्र कहने में भी गुरेज नहीं कर रहा। वजह यह है कि देश के शीर्ष नेताओं, इंसाफ के पैरोकारों, अफसरशाही के दंभ में चूर घूसखोरों और जनता की आवाज होने का दम भरने वाले खबरनवीसों ने आम आदमी की हर उम्मीद तोड़ते हुए उसे ऐसी जिंदगी जीने को मजबूर कर दिया है कि वह न तो इन हालात को बदलने में ही सक्षम है और न ही उसमें यह सब सहन करने की हिम्मत बची है। 

 राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आए दिन धरने-प्रदर्शन किए जाते हैं लेकिन विरोध के इन परम्परागत और घिसे-पिटे तरीकों से आम हिन्दुस्तानी की रोजमर्रा की जिन्दगी में बदलाव आना संभव नहीं है।
 नेताओं को देश को लूटने से फुर्सत नहीं है और अफसर भी उनकी जी-हजूरी कर अपनी तिजोरियां भरने में जुटे हैं। भ्रष्टाचार का ऐसा गंदा खेल खेला जा रहा है कि आत्मग्लानि से जीना दुश्वार हो चला है। आम आदमी न चाहते हुए भी इस गंदे तंत्र का हिस्सा बन जाता है। 

 आए दिन जारी होने वाले सरकारी फरमान उसकी जान निकाल देते हैं। देश में कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा। हर तरफ स्वार्थ और निजी हितों के चलते लूट-खसोट मची हुई है।

एक ओर लोगों के पास खाने को रोटी नहीं हैं, वहीं अरबों रुपए का अनाज गोदामों में पड़ा-पड़ा ही सड़ गया। इस सड़े अनाज में भी साजिश के कीड़े हैं, जो देश के बड़े-बड़े शराब निर्माताओं की झोली भरने के लिए छोड़े गए 

 देश में गरीबी, भुखमरी, नक्सलवाद, बेरोजगारी, महंगाई, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, किसान विरोधी नीतियां और आतंकी घटनाओं जैसी गम्भीर समस्याओं की फेहरिस्त बहुत लम्बी है और इन्हें समूल समाप्त करने के लिए किए जा रहे प्रयास नाकाफी। ऐसे में यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि देश का भविष्य कैसा होगा और इन हालात में सुधार की कितनी गुंजाइश है। राष्ट्रीय समस्याओं के साथ-साथ सामाजिक बुराइयां भी देश को आतंरिक रूप से कमजोर बना रही हैं। जातिवाद, क्षेत्रवाद और भोगवाद ने जहां साम्प्रदायिक सौहार्द की भावना को ठेस पहुंचाई है, वहीं कन्या भू्रण हत्या, दहेज प्रथा, दुष्कर्मों और महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों  ने इसे सभ्य समाज की परिभाषा के दायरे से बाहर लाकर खड़ा कर दिया है। 

शायद एक दशक पहले तक भी किसी ने नहीं सोचा था कि देश में आने वाले कुछ सालों में ही भ्रष्टाचार इस कदर चरम पर पहुंच जाएगा और इस दलदल से लोकतंत्र का कोई भी स्तंभ अछूता नहीं रह पाएगा।
(हास्य )
धरती पर प्रलय होता है और दुनिया समाप्त हो जाती है तभी फिर से नयी दुनिया बन जाती है ,और पुरानी दुनिया के रहस्य जानने के लिए पूरातत्व विभाग के लोग खुदाई करते ,खुदाई में उनको एक सीडी मिलती है ,लोग सीडी को देख अचंभित हो गए कि भई यह क्या चीज़ है ,सब की अलग अलग राय , एक ने कहा हो न हो यह उन लोगो के लिए खाने की थाली रही होगी , तभी दूसरे ने कहा -अगर थाली है तो इसमे छेद क्यूँ है । अरे वहाँ के लोग थे ही ऐसे जिस थाली में खाते थे उसी में छेद किया करते थे 

देश की आजादी के लिए संघर्ष करने वालों ने यह कभी भी नहीं चाहा था कि हम एक गर्त से निकलें और दूसरे गर्त में गिर जाएं। इससे अच्छी तो गुलामी की स्थिति थी, जिसमें एक तंत्र तो था।

हमने अंग्रेजों की शिक्षा और कानून पद्धति तो अपना ली, परंतु उनसे यह नहीं सीख पाए कि इस तंत्र को किस तरह से चलाएमान करना है। 

लोकतंत्र हमारी आजादी का प्रतीक है लेकिन इसी लोकतंत्र की आड़ में इस देश को बांटने के षड्यंत्र रचे जाते हैं। आए दिन उठने वाली नए राज्यों की मांग विविधता में एकता की विचारधारा पर कुठाराघात है, जिसके गर्भ में राजनीतिक स्वार्थ पलते हैं।

दरअसल, यह हमारा भ्रम है कि हम तरक्की कर रहे हैं। हकीकत तो यह है कि वर्तमान भारत में दो भारत पैदा हो गए हैं। एक अमीरों का भारत और दूसरा गरीबों का भारत।

केवल आंकड़ों में देश की तरक्की दिखाने से कुछ नहीं होगा, इसके लिए जमीनी स्तर पर हर किसी को प्रयास करना होगा। देश में गरीबी, भुखमरी, नक्सलवाद, बेरोजगारी, महंगाई, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, किसान विरोधी नीतियां और आतंकी घटनाओं जैसी गम्भीर समस्याओं की फेहरिस्त बहुत लम्बी है और इन्हें समूल समाप्त करने के लिए किए जा रहे प्रयास नाकाफी। ऐसे में यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि देश का भविष्य कैसा होगा और इन हालात में सुधार की कितनी गुंजाइश है। राष्ट्रीय समस्याओं के साथ-साथ सामाजिक बुराइयां भी देश को आतंरिक रूप से कमजोर बना रही हैं। जातिवाद, क्षेत्रवाद और भोगवाद ने जहां साम्प्रदायिक सौहार्द की भावना को ठेस पहुंचाई है, वहीं कन्या भू्रण हत्या, दहेज प्रथा, दुष्कर्मों और महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों  ने इसे सभ्य समाज की परिभाषा के दायरे से बाहर लाकर खड़ा कर दिया है।

 इस देश के कर्मवीरों ने अपनी जान की बाजी लगाकर भी आजाद हिन्दुस्तान के स्वप्न को स्वीकार किया। अब पुन: उसी जज्बे और जुनून की जरुरत है कि हम इस आजाद मुल्क को सच्चे गणतंत्र के रूप में स्थापित करें।

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