Sunday 20 May 2012

लिखना बहुत कुछ है ,पर शब्द कहीं खो गए 
भावनाओं के समन्दर थे कभी,अब दिलो के मैदान भी बंजर हो गए 

साथ चले थे सफ़र में जिंदगी के, कई हमराही 
अब कौन कहे की रास्ते मुड़े थे,या वो ही साथ छोड़ गए 

जल्दी में बहुत हर शख्श यहाँ, सब कुछ पाने की
कि सब्र से सारे शब्द अब बेमायने हो गए ,

आज धन के प्रति ये देखिये समर्पण,
कि धनवान सारे अपने ओर, सब अपने बेगाने हो गए...........

बात करो आज ,मतलब की बस यहाँ पर,
रिश्ते, नाते, प्यार, विश्वास सब गुजरे ज़माने हो गए

वही हँसता है आज हम पर, दीवाना कहकर हमें,
जिसके जुल्मो - सितम से हम, दीवाने हो गए........

ढूंढ़ने निकले थे कि शायद मिल जाये कोई इंसान मुर्दों की इस भीड़ में ,
पर आज टटोला खुद को तो जाना,हम खुद एक जिन्दा लाश हो गए ............


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