Monday 21 May 2012


एक झलक ,और थामे नजारें
एक सिफारिस ,और कई इशारे
चाहतों की कश्ती साहिल के किनारें
उठती है लहरें रेत के सहारे
चूमती धड़कनों को ठंडी बयार की साँसे
थोड़ी प्यासी कोशिश ,कभी बूंदें तो कभी बहे
इस ओर से उस ओर दुभाषिया यह दिल
लफ्ज नहीं है पर नज्म है आंहे
कभी मिली थी राहे कहते सुनते यह चौराहे
एक की थी मंज़िल यही ,एक पर हुए फासले
रूखी रही थी दुयाएँ ,चली तो बस लम्हो की हवाए
अक्स भी वही था ढले तो बस शाम के साये
नज़दीक है अब कुछ निशानी मुहाजिम रात कहानी
सीढ़ियों पर रखे है मंज़र , जमीं पर टिके फ़लक के सहारे

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