Sunday, 20 May 2012

सुर्ख सी खुशी है ...नादान सी जरूरत 
धीरे धीरे साँसो को भी हो चुकी एक मुद्दत 
आसमानों के परे कभी खिल सा रहा एक फूल 
कैसे कहें .... है क्या ... कह दु तो तुम हो ना कहूँ तो नज़ाकत 
थोड़ी सी करने का दिल करता है एक शरारत 
बदमाश यह ... ना फरमान सब...उँगलियों पर लिखते है एक नसीहत 

कदमों पे कदम रख के चलना 
थोड़ी दबती कुछ रूहाती 
हर आरज़ू की एक छोटी सी चाहत 
चाहत कि धागे का सिरा 
बंधे अपने हाथों में रखा है 
तेरी नज़दीकियों की अमानत

No comments:

Post a Comment