नज़रिया ज़िंदगी का सरल बना कर देखो
जाति और धर्म नहीं ,व्यक्ति का बस दिल देखो
जो दिख रहा है दूर से सफ़ेद पत्थर सा
क्या पता मोम हो ,तुम प्यार से छूकर देखो
किसी की आँख से दिल तक अगर पहुंचाना हो
अपनी धुन में बढ़ो ,मत मील के पत्थर को देखो
किसी की नज़ारे -इनायत नहीं होती यू ही
खुद की औकात भी उसके मुक़ाबले देखो
तेरी ही रार ठनी रहती क्यों आजू बाजू
कभी फुरसत मिले तो खुद से झगड़ कर देखो
सफल लोगो को देख कर कभी कुंठित ना बनो
फूलों के नीचे बिछा काँटों का बिस्तर देखो
कोहिनूर आसमान से खुद ब खुद बरसते नहीं
खान में जाकर कभी खाक छान कर देखो
जब तलक पंख है नाज़ुक ,उड़ान छोटी भरो
ख्वाबों को तुम कई किस्तों में बाँट कर देखो
चुक गया मान ,बूढ़े पेड़ो से दूरी ना करो
ना सही फल ,महज़ छाया सुकून लेकर देखो
जहां की सबसे उम्दा गजल जब पढ़ना चाहो
भर के महबूब को बाहों में , आंखो में देखो
जाति और धर्म नहीं ,व्यक्ति का बस दिल देखो
जो दिख रहा है दूर से सफ़ेद पत्थर सा
क्या पता मोम हो ,तुम प्यार से छूकर देखो
किसी की आँख से दिल तक अगर पहुंचाना हो
अपनी धुन में बढ़ो ,मत मील के पत्थर को देखो
किसी की नज़ारे -इनायत नहीं होती यू ही
खुद की औकात भी उसके मुक़ाबले देखो
तेरी ही रार ठनी रहती क्यों आजू बाजू
कभी फुरसत मिले तो खुद से झगड़ कर देखो
सफल लोगो को देख कर कभी कुंठित ना बनो
फूलों के नीचे बिछा काँटों का बिस्तर देखो
कोहिनूर आसमान से खुद ब खुद बरसते नहीं
खान में जाकर कभी खाक छान कर देखो
जब तलक पंख है नाज़ुक ,उड़ान छोटी भरो
ख्वाबों को तुम कई किस्तों में बाँट कर देखो
चुक गया मान ,बूढ़े पेड़ो से दूरी ना करो
ना सही फल ,महज़ छाया सुकून लेकर देखो
जहां की सबसे उम्दा गजल जब पढ़ना चाहो
भर के महबूब को बाहों में , आंखो में देखो
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