Tuesday, 8 May 2012

पश्चिमी सभ्यता को हम क्यूं स्वीकर करें 
छोड़ के अपना आंगन गैरों के घर से क्यूँ प्यार करें

आठ इंच की  हील कहीं, कहीं कमर से नीचे पैंट है
खान-पान में पिट्जा बर्गर फिल्मों में जेम्स बांड है
हिंदी भी अब रोने लगी है देख के आज युवाओं को
बात-चीत की शैली में जो अमरिकन एक्सेंट है

जरूरी है क्या इन चीजों को खुद से अंगीकार करें
पश्चिमी सभ्यता को हम क्यूं स्वीकार करें

हेड फोन कानों में लगा है जुबां पे इसके गाली है
बाल हैं लंबे, हेयर बेल्ट और कान में इसके बाली है
देख के कैसे पता चले यह लड़का है या लड़की है
चाल चलन भी अजब गजब है चाल भी इसकी निराली है

कहता है कानून हमारा लड़कों से भी प्यार करें
पश्चिमी सभ्यता को हम क्यूं स्वीकार करें

सरवार दुपट्टा बीत गया अब जींस टॉप की बारी है
वस्त्र पहनकर पुरुषों का यह दिखती कलयुगी नारी है
सोचो आज की लड़की क्या घर आंगन के काबिल है
रोज-रोज ब्यॉ फ्रेंड बदलना फैशन में अब शामिल है

आधुनिकता को ढाल बनाकर इश्क का क्यूं व्यपार करें
पश्चिमी सभ्यता को हम क्यूं स्वीकार करें

जींस कहीं आगे से फटी पीछे से फटी यह डिस्कोथेक जेनरेशन है
भूल के अपनी भारत मां को  पश्चिम में करते पलायन है
होंठ लाल नाखुन भी बड़े यह दिखती बिल्कुल डायन है
गांधी जयंती याद नहीं पर याद इन्हें वेलेनटायन है

भारत की गौरव का कब तक यूं ही हम तिरस्कार करें
पश्चिमी सभ्यता  को हम क्यूं  स्वीकार करें

मेक-अप से सजा है चेहरा इनका बिन मेकअप सब खाली है
बच के  रहना तुम इनसे यह माल मिलावट वाली है
दर्पण पर एहसान करे श्रृंगार करे यह घंटों में
रंग बदलती गिरगिट की तरह है दिल बदले यह मिनटों में

इनसे हासिल होगा नहीं कुछ चाहे हम सौ बार करें
पश्चिमी सभ्यता को हम क्यूं  स्वीकार करें

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