पैसा,
बन चुका है लोगों का ईमान
कुचल कर रख दी है
इसने लोगों की संवेदनाए।
पैसा,
कहीं ज्यादा बड़ा है
इंसानी रिश्तों से
आपसी प्रेम और भाईचारे से।
पैसा,
गढ़ता है
रिश्तों की बिल्कुल नई परिभाषा।
जिसके चारों तरफ बस
झूठ, फरेब और आडम्बरों की
एक अलग दुनिया है।
पैसा,
काबिज है लोगों की सोच पर
इस कदर जकड़ रखा है कि
सिवा इसके
लोगों को कुछ नजर नहीं आता।
पैसा,
जो चलायमान है
कभी एक जगह नहीं रहता।
फिर भी लोग
इसके पीछे दिवानों की तरह
सारी जिन्दगी भागते हैं।
पैसा,
चाहे जितना एकत्र करो
इसकी लिप्सा कभी खत्म नहीं होती।
क्या हमें
इसका एहसास नहीं होता
कि शायद हम बदल चुके हैं
उस रक्त पिपासु राक्षस की तरह।
फर्क सिर्फ इतना है कि
उसे प्यास है खुन की
और हमें पैसों की।
:-अमित चन्द्र
बन चुका है लोगों का ईमान
कुचल कर रख दी है
इसने लोगों की संवेदनाए।
पैसा,
कहीं ज्यादा बड़ा है
इंसानी रिश्तों से
आपसी प्रेम और भाईचारे से।
पैसा,
गढ़ता है
रिश्तों की बिल्कुल नई परिभाषा।
जिसके चारों तरफ बस
झूठ, फरेब और आडम्बरों की
एक अलग दुनिया है।
पैसा,
काबिज है लोगों की सोच पर
इस कदर जकड़ रखा है कि
सिवा इसके
लोगों को कुछ नजर नहीं आता।
पैसा,
जो चलायमान है
कभी एक जगह नहीं रहता।
फिर भी लोग
इसके पीछे दिवानों की तरह
सारी जिन्दगी भागते हैं।
पैसा,
चाहे जितना एकत्र करो
इसकी लिप्सा कभी खत्म नहीं होती।
क्या हमें
इसका एहसास नहीं होता
कि शायद हम बदल चुके हैं
उस रक्त पिपासु राक्षस की तरह।
फर्क सिर्फ इतना है कि
उसे प्यास है खुन की
और हमें पैसों की।
:-अमित चन्द्र
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