Wednesday 23 May 2012

ढल गई शाम इंतज़ार ए यार में
होता है यही अक्सर एतबार में

वो फूल जो किसी के प्यार में खिले
मुरझा गए उसी के इंतज़ार में

दुनियाँ की रौनक युही सिमट गई
बनकर वफा निगाह ए अश्कबार में

साजिस नहीं किसी की किस्मत की बेवफ़ाई
डूबा हुआ जिगर है इंतज़ार में

विरानियों के दायरे ज़मीनों आसमान पे
कहीं कोई खुशी नहीं इख्तेयार में

धड़कन में जागती जीती जवान उमंग
कैद हो गई है किसी मंजर में

मुस्कान ए शाब कोई चाँदनी थी शायद
टूटा सितारा दीदार ए यार में

खुशबू खरीद लाना सस्ती मिले ए जान
गिरती है रोज़ किमाते बाज़ार में 

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