Sunday, 27 May 2012


है खुश कभी तो कभी कुछ खफा खफा
ज़िंदगी है एक तजुर्बा ,ज़रा कर के देखिये
दूसरों की गलतियों से सीखने में है क्या
खुद अपनी नई खताएँ करके देखिये
भीड़ में ना जाने कहाँ ओझल हो गए हो
कभी कोई नई राह पकड़ कर देखिये
बेतुकि बेरंग सी हो गई है ज़िंदगी
घर की नहीं ,दिल की दीवारें रंग कर देखिये
सागर की सतह पर होती है लहरें कुछ अलग
कभी किसी के दिल की गहराई में उतर कर देखिये
लैला मजनू के किस्से अब हुए पुराने
दिल अपना भी किसी से लगा कर देखिये 
क्यूँ भरने नहीं देते दिल को अपने सपनों की उड़ान
कभी बारिशों में कागज़ की नाव चलाकर देखिये
काम पड़ने पर याद करते है सभी
कभी बिना मतलब किसी दोस्त को याद करके देखिये
गाड़ी ,धन -दौलत ,ऐशों आराम के पीछे भागते रहे
कभी माँ की गोद में दो पल सर रखकर देखिये
ना जाने किन चिंताओं में खोये रहते हो हरदम
कभी दूसरों के दुखो को जानकार देखिये
किस रफ्तार से जिये जा रहे हो ज़िंदगी
कभी रात भर जाग कर तारे गिन कर देखिये
सहमे सहमे जीने में रखा क्या है
कभी हौसला बढ़ाकर जीकर देखिये
रेत के घरोंदे बनाते थे बचपन में
आज भी बेफिकरी से जी कर देखिये
स्कूल के वो दिन भुला दिये कैसे
कभी तस्वीरों से धूल हटाकर देखिये
मरना है आखिर हर किसी को एक दिन
कभी इस खौफ को भूलकर जीकर देखिये

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