Tuesday, 29 May 2012


शाम का धुंधलका छाने लगा है,
चलो चलें कहीं ऐसे सफ़र पर,
जहां न हो अंधेरों का साम्राज्‍य, जहां रोशनी की किरणें,
हमें अह्लादित करें, चलो चलें कहीं ऐसे सफ़र पर।
घुंघरुओं की छनछन के साथ, बज उठे शहनाई,
जहां की हर सुबह, खुबसूरती से भरी हो,
जहां हर कोई अपना हो, जहां बच्‍चों का खिलखिलाना,
दे जाए हमें जीवन गीत, चलो चलें कहीं ऐसे सफर पर।
जहां हर कोई गाए-गुनगुनाए, जहां किसी भी दर्द की आवाज न हो,
हर पल जहां मधुमास हो, हर पर जीने का एहसास हो,
जब कोई गज़ल महके कहीं, तो हर कोई महसूस करे उसकी सुगंध,
चलों चलें कहीं ऐसे सफर पर।

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