फिर आज शाम से गुजरी तन्हाई है
वो जो रहते थे मेरी नज़रों में बूंद की तरह
आज फिर वही एक मुलाकात याद आयी है
हर तरफ सदमे की भीड़ सा लगे
वो गीला कभी हल्के हल्के से गिरे
नज़्म की परछाई में आज जैसे झरने का रुख कर आयी है
फिर आज शाम से गुज़री तन्हाई है
दो पलक वक़्त का मतलब जो समझे
मद्दम मद्दम सी चाँदनी में कहीं
हरकतें सोज़ की बन्दिशों इस कदर आज हीना सी रंग लायी है
फिर आज शाम से गुजरी तन्हाई है
मेरे मालिक मेरे खुदा मुझसे एक रोज़ जो मिले
एक सबाब रौशनी का बेदाग हमें भी दिखे
क़यामत की जो रौशनी से रुसवाई है
फिर आज शाम से गुजरी तन्हाई है
ये जो छलका है मेरा घुमान की तरह
है नहीं वो एक मौसम का कैदी
एक कारवां है जलते किस्सो का जो इस तरह नज़र आयी है
फिर आज शाम से गुजरी तन्हाई है
वो जो रहते थे मेरी नज़रों में बूंद की तरह
आज फिर वही मुलाकात याद आयी है
वो जो रहते थे मेरी नज़रों में बूंद की तरह
आज फिर वही एक मुलाकात याद आयी है
हर तरफ सदमे की भीड़ सा लगे
वो गीला कभी हल्के हल्के से गिरे
नज़्म की परछाई में आज जैसे झरने का रुख कर आयी है
फिर आज शाम से गुज़री तन्हाई है
दो पलक वक़्त का मतलब जो समझे
मद्दम मद्दम सी चाँदनी में कहीं
हरकतें सोज़ की बन्दिशों इस कदर आज हीना सी रंग लायी है
फिर आज शाम से गुजरी तन्हाई है
मेरे मालिक मेरे खुदा मुझसे एक रोज़ जो मिले
एक सबाब रौशनी का बेदाग हमें भी दिखे
क़यामत की जो रौशनी से रुसवाई है
फिर आज शाम से गुजरी तन्हाई है
ये जो छलका है मेरा घुमान की तरह
है नहीं वो एक मौसम का कैदी
एक कारवां है जलते किस्सो का जो इस तरह नज़र आयी है
फिर आज शाम से गुजरी तन्हाई है
वो जो रहते थे मेरी नज़रों में बूंद की तरह
आज फिर वही मुलाकात याद आयी है
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