Wednesday 11 January 2012

::हक़ के लिए::

सुबह सुबह हम अख़बार के पन्ने पलट रहे थे कि पांडे जी  दिखाई दिए, हमने उनको बुला लिया " अरे पांडे जी  कहा निकल सुबह सुबह इतनी ठण्ड में ? " ! पांडे जी ने कहा - अरे सुनील बेटा  आज घर वाली ने फटकार सुना दी कि बाबु जी से अपने हिस्से कि बात कर के अपना हिस्सा ले लो वरना बाद में शायद बाद में बचा कुचा जूठन ही मिलेगा और फिर उसने कहा कि अगर मैंने आज बात नहीं कि तो वोह अपने मायके जा बैठेगी ! अब कौन समझाए इन्हें कि माँ बाप अपने बेटे के लिए ही तो सब कुछ करते है ,तनिक भी विश्वास नहीं करती ! अरे इतनी ठण्ड है आओ जरा चाय वाय पीकर थोडा तारो तजा होई जाओ और फिर निकल लेना भई - मैंने कहा ! भाभी जी एक कुर्सी  ला दीजिये पांडे जी आये है और हा एक कप चाय भी ! वैसे भी आजकल हक़ कि लड़ाइया जोरो से चल रही है तो हमारी घरवाली को भी थोडा डर सा हो गया कि अपना हक़ खुद नहीं मांगोगे तो क्या अन्ना जी आएंगे हक़ दिलाने -पांडे जी ने कहा ! हा पांडे जी बात तो सोलह आना सही  है भई भला अपना हक़ कौन छोड़ता आजकल ,बैठिये पांडे जी ,लीजिये चाय ! पांडे जी ठण्ड के मारे काँप रहे थे और चाय कि चुस्किय ले रहे थे ! भाभी जी पिता जी ने कहा कि आज से घर कि जिम्मेदारी आप ही संभाले - मैंने भाभी जी से कहा ! नहीं सुनील पिताजी से कह देना अम्मा और पिता जी के रहते यह परिवार उनका है और परिवार के मुख्या भी वो ही होंगे ! भाभी जी के जाने के बाद पांडे जी अचम्भे में पड़ गए और कहने लगे" भई सुनील तुम्हारा परिवार सही मायनो में परिवार कहने लायक है ,वरना आजकल कौन सास ससुर के साथ रहना चाहता ,अपना हक़ लिया और चल दिए अकेले रहने को ,हमारा भी वही हाल हो रहा सुनील ,अब हम जाकर पिताजी से कहे भी तो क्या कहे ! यह कि पिताजी मेरी पत्नी ने कहा कि आप मुझे मेरा हिस्सा दे दीजिये ,,,,अरे जिनके सामने मैंने आज तक ऊँची आवाज़ में बात नहीं कि उनसे मैं हिस्से कि बात किस मुह से कह पाउँगा ,सब कुछ उनका कमाया हुआ है ,पाल पोस कर बड़ा किया और अच्छे संस्कार दिए आज मुझे अपने पैरो पर खड़े होने काबिल बनाया ,यही असली पूंजी है ! पर कौन समझाए ऐसे इंसानों को जो पैसे के मोह में परिवार का मोह भूल जाती है ! पांडे जी तनिक शांति रखो सब ठीक हो जायेगा - मैंने कहा ! पांडे जी अपने सुना सेठ फकीरचंद के परिवार में भी ""हक़ "" का महाभारत चल रहा है - मैंने कहा ! क्या हुआ सुनील - पांडे जी ने पूछा ! अरे सेठ फकीरचंद का छोटा बेटा हक़ के लिए परदेश जाकर अनसन पर बैठा  है ,साथ में सेठ जी के तिजोरी कि चाबिय भी लेकर गया ! हालांकि सेठ फकीर चंद ने उससे वादा किया और बिना लिखित उसे उसका हिस्सा दे दिया पर बेटे को बाप पर विश्वास ही नहीं ! ,मैंने जब फ़ोन किया तो कहने लगा " अपना हक़ लेने का यही एक चारा बचा है सुनील " अब सेठ के गले में फंदा लग गया करे भी तो क्या ,घर का राशन तक लेने के लिए लोगो से उधर ले रहे , लोग भी अचंभित हो गए जो सेठ लोगो को उधर देता आज उसे खुद उधर लेना पड़ रहा ,वक़्त .... वक़्त पांडे जी ! अब जब फकीरचंद को एहसास हो गया कि उसे उसका हिस्सा देने में ही भलाई तो राज़ी कर के बुलाया और उसका हिस्सा उसके नामे करवा दिया ! इससे एक बात तो साफ हो गयी कि अन्ना जी का जादू आब घर परिवार में भी छा गया ,सीधे तरीके से अपना हक़ मिल जाये तो ठीक वरना अनसन करो, अनसन से बढ़िया कोई हथियार भी नहीं है अब ,सांप भी मर जायेगा और लाठी भी नहीं टूटेगी ! इस पर हम दोनों कि हंसी छुट गयी ! पांडे जी अपना हक़ लेने गए और हम अपने पिताजी के साथ काम पर निकल लिए !
:-राजू सीरवी (राठौड़)

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