Monday 23 January 2012

फिर से खत्म हो चुकी कहानी को शुरू करना का मन करता है

आज फिर से उस कब की बंद कहानी पे
कलम चलने का मन करता है
फिर से मुझे बचपन में जाने का मन करता है
आज फिर से मुझे चोकलेट के पेपर
इक्कठे करने का मन करता है ...
फिर से मंदिर में जाकर दो बार प्रसाद
लेने का मन करता है ...
आज फिर से माँ से छुपकर शक्कर खाने का मन करता है
बिना किसी बात के दर जाने का मन करता है
आज फिर से छोटी के हिस्से की मिठाई खाने का मन करता है
फिर से बुज चुके दिवाली के दियो में पठाखे जलने का मन करता है
आज फिर से दोनों हाथो से खाना खाने का मन करता है
फिर से मेगी की प्लेट को मुह से साफ़ करने का मन करता है
आज फिर से मनु के घर केरम खेलने का मन करता है
फिर उसे मोटू मोटू कहकर चिड़ाने का मन करता है
आज फिर किरण की पेन्सिल चुराने का मन करता है
फिर अंजू का लंच बॉक्स इंटरवल से पहले खाने का मन करता है
आज फिर संदीप को चिड़ा चिड़ा कर रुलाने का मन करता है
आज फिर राजकमल के घर  कम्पूटर खेलने जाने का मन करता है
आज फिर मुझे हाथ से नाक पोछने का मन करता है
फिर पापा की पॉकेट से रूपया चुराने का मन करता है
आज फिर
पर जान चूका हूँ अब मैं की रात कट गई मेरी वो जो लिखी सोने से थी
अब बाकी बची ज़िन्दगी लिख दी मैंने कांटो से खुद ही ने
मांग नहीं सकता दवा भी मैं पांवो के लिए किसी से मूड के
मुड़ने से भी कांटे लगते ज़ख़्मी पांवो में अब सभी से ही मुझे
न बचा है आगे साथ किसी का मेरे लिए
और तोड़ लिए पिछले सरे रिश्ते नाते सभी से ही मैंने
अब तो मेरा हँसने से भी मन डरता है
फिर भी आज मेरा बचपन में जाने का मन करता है
फिर से खत्म हो चुकी कहानी को शुरू करना का मन करता है
दिल को और रुलाने का मन करता है

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