Sunday 8 April 2012

तुम्हारे पाँवो के नीचे कोई ज़मीन नहीं
कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यकीन नहीं

मैं बेपनाह अँधेरे को सुबह कैसे कहूँ ,
मैं इन नज़ारो का अंधा तमाशबीन नहीं ।

तेरी जुबान है झूठी जम्हूरियत की तरह ,
तू एक जलील सी गाली बेहतरीन नहीं ।

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