Wednesday 2 September 2015

हड़ताल ! ... मकसद क्या ?



हड़ताल .... STRIKE

अपने हक़ के लिए ...या... अपनी बात मनवाने के लिए ...

क्या अपना हक़ पाने के लिए यही एकमात्र उपाय है ?
हड़ताल...... सरकारी नीतियों का विरोध करना ।

वैसे हड़ताल की परिभाषा क्या है सही मायने में और होता क्या है ...
वैसे आज के दौर की हड़ताल ...

चंद सामाजिक या राजनितिक ठेकेदारों द्वारा मामूली भीड़ जुटा कर रोड पर चिल्लाते रहना,
और
जनता के द्वारा जनता को परेशान करना मात्र हड़ताल है ।

किसका भला होता ? क्या भला होता ?

उसी सन्दर्भ में

किसका नुकसान होता ? कितना नुकसान होता ?

हड़तालियों का मोटो
भला किसी का हो या ना हो मगर नुकसान करो ताकि कुछ निजी स्वार्थ पूरा हो जाए ।
कुछ लोग निम्न स्तर के राजनितिक दल्ले जो अपना राजनितिक ग्राउंड बनाने के लिए दिखावे के लीडर बनते है बिन विवेक के लोगो के ।
चंद लोगो द्वारा आर्गनाइज्ड हड़ताल में कुछ लफंगे लोगो की भीड़ होती है ... वास्तव में आम जन कोई नहीं .... सिवाय भाड़े के टट्टुओं के ...

चंद लोगो का हड़ताल से मकसद सिर्फ Blackmailing है ... सत्ता पक्ष से कुछ मांग तांग कर जेबे भर कर चले जाते और भीड़ को खोटे सिक्को से बहला देते ।

हड़ताल सदियों से होती आई है ... तब अथाह जनसमूह होता था समस्य सबकी हुआ करती थी सब साथ में हमला करते थे । तब जाँत-पाँत के आधार पर हड़ताल नहीं हुआ करती थी ... वाकई में समस्याओं के समाधान के लिए ना कि Blackmailing

कुछ दिनों से हार्दिक पटेल जो cheap publicity के लिए भीड़ जुटा रहा है (हालाँकि भीड़ जुटाने का काम हार्दिक को चेहरा बना कर राजनीति करने वाले करते है)

यही नज़ारा आज की ट्रेड यूनियन की हड़ताल में देखा ...चंद लोग बारी बारी से फ़ोटो खिचवा रहे थे ...

छलावा हो रहा जनता के साथ मगर जनता भी मुर्ख ख़ुशी से छलावे को स्वीकार कर रही ।

और आज मजदुर यूनियन की हड़ताल
क्या मिलता इनको हड़ताल करने से ...सिर्फ जनता परेशान होती है ।
हाँ हड़ताल तब सफल होती जब सम्पूर्ण आम जन एक साथ हो

5 लाख की आबादी में 300 जने हड़ताल करते ... यानि 499700 लोगो को किसी से कोई शिकायत नहीं पर सिर्फ 300 लोगो को हो रही है ... उन 300 के 3 लीडर होते है जो Blackmailing का धंधा (हड़ताल) करते है ... कुछ ठूस ठास कर दोपहर तक भीड़ तितर बितर हो जाती ...

ऐसे लोगो के लिए किसानों की मौत या कुछ अनर्थ होना मसाले से कम नहीं ... ये लोग ऐसे मौको को भुनाने में लगे रहते है ।

पर यह निश्चित है कि इन ठेकेदारों की पीड़ित लोगो के प्रति कोई हमदर्दी रहती ।

यहाँ पर भी लोगो को " स्वविवेक " से सोचना होगा ।
कि किन लोगो के क्या मकसद से हम किन के समर्थन में उतरे है ... पर दुर्भाग्य .... भेड़ बकरिये की तरह चल पड़ते किसी राजनितिक गड़रिये के पीछे ।

आज देश की करीब आधी आबादी गरीबी रेखा से निचे (वजह गन्दी राजनीति और पॉलिटिशियन के निजी स्वार्थो के कारण)
इस आबादी की दशा और दिशा "ठेकेदार" करते है

फिर भले धर्म के ठेकेदार हो
सामाजिक ठेकेदार हो
या राजनितिक ठेकेदार

जनता सब जानती भी है ... मगर स्वाभिमान को गहरी नींद सुला दिया ।

आम जन हो सकता एक - जब हो स्वविवेक
जय हिन्द ।।  

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