Saturday 7 July 2012

सुकून इन्सान के जीवन का वह पल ! जिसके के लिए इन्सान अपनी पूरी जिंदगी निकाल देता है ! फिर भी इन्सान पूरी उम्र तरसता रहता हैं ,उस एक पल के सुकून के लिए !
सुकून जो होता है सिर्फ क्षणिक भर का और कुछ पलों का ! और यह पल इन्सान के जीवन मैं कब आते हैं ! और कब यह पल निकल जाते हैं ! इसका अंदाजा तो इन्सान कभी लगा ही नहीं पाता ! और फिर तैयार हो जाता है! वह सब कुछ करने के लिए जो उसे एक पल का ही सही पर सुकून दे सके !
इन्सान को सुकून कब मिलता है ! क्या कोई इन्सान है जिसने पाया हो सुकून इस दुनिया मैं ! मैं जब ढूँढने निकला तो मुझे एक भी नहीं मिला ! आज हम अपने जीवन मैं कितना भी कर लें , कुछ भी कर लें पर सुकून तो जैसे हमसे इतनी दूर है ! कि लगता है हमारा पूरा जीवन ही निकल जायेगा ! इस एक पल के सुकून को पाने मैं !

जीवन की आपाधापी मैं इन्सान आज इतना उलझा हुआ हैं ! दिनोदिन बढ़ती समस्याएं और दिन बा दिन प्रदूषित होता हमारे आस-पास का वातावरण सब कुछ इतना बड गया कि इन्सान उलझ के रह गया आज के माहौल मैं ! या यूँ भी कह सकते हैं कि इन्सान ने अपने आप को इतना व्यस्त कर लिया है ! कि वह सुकून और ख़ुशी महसूस ही नहीं कर पाता ! और वह दूर होता जाता है , अपनों से, अपने समाज से, नहीं रहता किसी का भी ध्यान ,और लग जाता कभी ना खत्म होने बाले जीवन के कार्यों मैं ! 
आज इन्सान लगा हुआ है मशीनों की तरह काम करने ! बस कभी ना रुकने बाले घोड़ों की तरह ! और नहीं है दीन-दुनिया कि खबर ! आज इन्सान ने अपने जरूरतें इतनी पैदा कर ली हैं! जिन्हें पूरा करते करते इन्सान पर बुढ़ापा तक आ जाता है फिर भी ! जरूरतें कभी पूरी नहीं होती !अपितु जरूरतें समय के साथ साथ बढ़ती जाती हैं ! 
एक समय था जब इन्सान अपने जीवन मैं सुख और सुकून का अनुभव करता था ! तब इन्सान आज की तरह आधुनिक नहीं था ! और ना ही उसकी जरूरतें ज्यादा थी ! उस वक़्त उसे चाहिए था ! रोटी -कपडा -मकान ! इन्सान के पास होता था उसका सबसे बड़ा हथियार सब्र ! जो उसे हमेशा सुकून का अनुभव कराता था ! फिर वह पल भर का ही क्यों ना हो ! तभी तो आज के कई बुजुर्ग यह कहते हैं ! कि समय तो हमारा था ! जिसमें इन्सान के पास सब कुछ था ! और रहते थे सुकून से ! जितनी चादर उतना ही पैर फैलाता था ! और उठाता था जीवन मैं सुकून का आनंद !
लेकिन आज के माहौल मैं उसे यह सब कुछ देखने को नहीं मिलता ! 

अगर जीवन मैं पाना है सुकून और सुख की अनुभूति ! तो जुड़े रहिये अपने परिवार के साथ, जुड़े रहिये अपने समाज के साथ ! ना दौड़ें आधुनिकता की तरफ अंधों की तरह ! 
आज इन्सान के शौक इतने हो गए हैं ! की वह जीवन भर उन्हें पूरा नहीं कर सकता ! इच्छाएं तो अन्नंत हैं ,जिनका कोई अंत नहीं ,और सुकून होता है पल भर का ,तो उस पल को महसूस करें , 
ज़िंदगी को जीएं ,काटे नहीं

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