Wednesday 4 July 2012


सिर्फ चिल्लाने से देश नहीं बदलेगा ,अपने अधिकारो का इस्तेमाल करे ।

लोकतन्त्र यानि "जनता के द्वारा जनता के लिए "
मतदाता ही लोकतन्त्र के मालिक है ॥ पर परिस्थितिया बदल गयी है ... जनता के द्वारा चुने लोग आज जनता का ही शोषण कर रहे है ॥ लोकतन्त्र सिर्फ नाम मात्र है , वर्तमान सरकार तानाशाही बन चुकी है ॥

अक्सर ऐसा होता है कि आजकल अपराधिक गतिविधियों से जुड़े लोग चुनाव के अखाड़े में होते है , वो अपने गैर कानूनी धंधे चलाने के लिए राजनीति को मोहरा बनाते है , जनता के सामने विकल्प है पर जानकारी नहीं उस विकल्प की .... पैसो के लालच या डर की वजह से वो किसी एक को वोट देने पर मजबूर होते है ॥
सरकार जागरूकता अभियान चलती है कि हर नागरिक अपने वोट का जरूर उपयोग करे , होने भी चाहिए ऐसे अभियान

पर सरकार जनता को इस बात से जागरूक नहीं करती कि जनता के पास सबको खारिज करने का अधिकार भी है । कोई  प्रत्यासी आपको पसंद नहीं है ,आपको लगता है कि उनमे से कोई भी जीतेगा तो जनता का शोषण होगा तो उन सब प्रत्यासियों को खारिज कर सकते है ।

पर सरकार इसे जनता तक नहीं पहुँचती ।

चुनाव कराने सम्बन्धित अधिनियम की धारा 49 (O) के तहत भारतीय मतदाता को यह भी अधिकार दिया गया है कि यदि वह समझता है कि कोई भी प्रत्याशी उपयुक्त नहीं है तो वह अपना मत किसी को न दे और इस बात को प्रारूप 17 A पर दर्ज कराए. यानी भारतीय नागरिक को मत देने के अधिकार के साथ-साथ मत न देने का भी अधिकार दिया गया है.

इस अधिकार का उपयोग कर हम एक जिम्मेदार और कर्तव्यनिष्ठ जनप्रतिनिधि का चयन कर सकते है ..

बहुत ही साधारण है

आप अपने पोलिंग बूथ पर जाए और चुनाव अधिकारी से मांग करे  "मैं किसी को वोट नहीं करना चाहता प्रारूप 17  उपलब्ध कराएं "

कल्पना करें कि सबसे ज्यादा मत पाने वाले उम्मीदवार से ज्यादा मतदाता सभी उम्मीदवारों को खारिज करने का विकल्प चुनते हैं. सैद्धांतिक रूप से इसका अर्थ होगा कि उस चुनाव क्षेत्र में ज्यादा मतदाता यही समझते हैं कि कोई उम्मीदवार चुना जाने लायक नहीं है. ऐसी दशा में चुनाव रद्द करा कर फिर से कराए जाने चाहिए, जिसमें पिछली बार खड़ा कोई भी प्रत्याशी पुनः खड़ा न हो.

यही बात राजनीतिक दलों के लिए खतरे की बात है. कहीं ऐसा न हो कि बड़े पैमाने पर जनता राजनीतिक दलों व उनके उम्मीदवारों को खारिज करना शुरू कर दे. अधिकारी भी अभी वर्तमान व्यवस्था के बदलाव के पक्ष में नहीं हैं. उनका निहित स्वार्थ इसी में है कि वर्तमान समय में मौजूद भ्रष्ट व्यवस्था ही कायम रहे. इसका प्रमाण है मतदान कराने हेतु जिम्मेदार अधिकारियों- कर्मचारियों का मतदाता के प्रति रवैया.

यह बड़ी अजीब बात है कि मतदाता जागरूकता को तो अच्छा समझा जाता है. लेकिन क्या मतदाता जागरूकता इतना भर है कि हम घर से निकल कर किसी को भी मतदान कर आएं? अधिकारियों को अभी यह लगता है यदि कोई मतदाता धारा 49 (ओ) के तहत अपने अधिकार का इस्तेमाल करना चाहे तो उनका काम बढ़ जाएगा.

मत देना तो जागरूक मतदाता की पहचान है लेकिन यदि आप किसी को मत न देने का अधिकार इस्तेमाल करना चाहें तो ऐसी टिप्पणी की जाती है कि क्या सबसे ज्यादा जागरूक आप ही हैं? या फिर यह कहा जाता है कि किसी को मत नहीं देना है तो यहां आए ही क्यों हो? इससे तो अच्छा होता कि घर बैठते. अधिकारियों की सोच इस मामले में अभी मतदाता के प्रति नकारात्मक है.

भ्रष्ट एवं आपराधिक पृष्ठभूमि के उम्मीदवारों को चुनाव के मैदान से बाहर करने का यह बहुत कारगर औजार हो सकता है. यदि जनता तय कर ले कि सभी अवांछनीय लोगों को चुनाव लड़ने से रोका जाए तो बड़े पैमाने पर लोग सभी उम्मीदवारों को खारिज करने के अधिकार का इस्तेमाल कर सकते हैं. और राजनीतिक दल भी फिर इस डर से कि कहीं जनता उनके उम्मीदवारों को नकार न दे सही किस्म के लोगों को उम्मीदवार बनाना शुरू करेंगे.

अभी तो उनको मालूम है कि जनता की मजबूरी है कि उसे उन्हीं में से किसी एक को चुनना है. इसलिए दल जनता की भावना को धता बताते हुए भ्रष्ट एवं अपाराधिक पृष्ठभूमि के लोगों को ही उम्मीदवार बनाते हैं.

दूसरा यह नियम बनाना कि यदि सबसे ज्यादा मत पाए उम्मीदवार से भी ज्यादा लोग सभी उम्मीदवारों को खारिज करने वाला बटन दबाते हैं तो चुनाव रद्द कर पुनः नए उम्मीदवारों के साथ मतदान कराना जिसमें पिछली बार खड़े प्रत्याशियों पर प्रतिबंध हो. इस प्रकिया से जनता अंततः सही उम्मीदवार को चुन लेगी और तमाम अवांछनीय प्रत्याशी खारिज कर दिए जाएंगे.

तो खुद भी जागे और औरों को भी जागरूक करे ॥ यह एक महत्वपूर्ण कदम होगा देश में भ्रष्टाचार ,अन्याय और भ्रष्ट व्यवस्था से निजात दिलाने के लिए ... 



 

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