Friday 9 March 2012

ऐसे हालातों में भी क्या चाहता हूँ
जाने क्यों ख्वाब इक नया चाहता हूँ

खून फैला हुआ है सड़कों पर
और मैं रंग भरा आसमाँ चाहता हूँ

आजकल सड़कों पे मौत घूमती है
मैं अपने लिए भी एक दुआ चाहता हूँ

मन्दिर में है कि मस्जिद में, या कि कहीं और
सुकून लाये जमीं पर वो खुदा चाहता हूँ

बिखरे हुए जिस्मों में पहचान ढूंढता हूँ
कल से है गुमशुदा वो आशना चाहता हूँ

बस एक अमन का ही तो ख्वाब देखा मैंने
और वो खुदा कहता है मैं कितना चाहता हूँ

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