Sunday 18 March 2012

"क्या यही एक उपाय है हमारे पास अपना हक मांगने के लिए "
सरकार ने आम बजट में लोगो को गन्ने की तरह पीस कर  निचोड़ने का फरमान जारी कर दिया । एक तो सोना चाँदी के भाव आसमान से बाते कर रहे वही सरकार ने कर का बोज लादकर लोगो की कमर तोड़ने का काम कर दिया । अब माध्यम वर्ग स्वर्ण आभूषण को सिर्फ देख सकता है खरीदने के लिए उसे 100 बार सोचना पड़ेगा ॥ 

ऐसे में स्वर्ण व्यापारियों ने (मैं भी शामिल हूँ ) ने देशव्यापी तीन दिन हड़ताल का ऐलान कर दिया । 
क्या हड़ताल करने से हमको न्याय मिलगे ?
अब वो दिन गए जब हड़ताल करने से कोई अपनी बात मान जाता , पर अब इनको पता है आखिर कब तक हम हड़ताल करेंगे 2 दिन 4 दिन या 10 दिन आखिर हमको अपने काम धंधे पर लगना ही पड़ेगा इसलिए मुझे नहीं लगता सरकार हम व्यापारियों के सामने झुकेगी । 

मेरी राय तो यही है कि देश में जिस तरह स्वर्ण व्यापारी दुकान बंद करके हड़ताल कर रहे है उसी तरह सब व्यापारी अपना टैक्स देना बंद करदे जब तक हमारी मांगे ना मनी जाए । 
हड़ताल तो शहरों में होती है छोटे गाँव या कस्बो में नहीं करते यह सोच कर कि हमको यहा कौन देखेगा या कौन कहने वाला । 
और अगर यह ऐलान करेंगे कि जब तक हमारी मांगे नहीं मनी जाएगी तब तक कोई भी सर्राफ व्यापारी सरकार को टैक्स नहीं देगा , तो शायद बात बन सकती है ॥ 
बाकी तो हमारे सीनियर हमसे बेहतर जानते है उनको क्या करना है । 

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