Wednesday 7 March 2012



अब कैसे रंगू रंगों से
चेहरा तुम्हारा असर करता नहीं
रंग हमारा, रंग है नकली
नकली है चेहरा तुम्हारा 

होली तो हो ली
अब रंगों में रंगत नहीं है
कान्हा-राधा सरीखे सखा-सखी की
पंगत नहीं है 

तुमको रंगू तो
रंगू कैसे
होली की क्या बात करते हो
तुमतो गिरगिट को भी
मात करते हो 

यूं तो इस दुनिया में
रंग बहुत है
लाऊं कहां से पानी
कुओं में भंग बहुत है
हम हैं जिन्दा
लोग तंग बहुत है

सुना-पढा है
होली जला दी थी
भक्त प्रह्लाद ने
फिर
कैसे जिन्दा हो गई
इतना बाद में 

चूल्हा मांगे गैस
चाय मांगे चीनी
रोटी मांगे दाल
ऐसे में
याद ना आता
गाल-गुलाल
लाल-गुलाल
कान्हा तेरी होली
तू ही सम्हाल! 

रसोई करे पुकार
बीवी मांगे पैसा
हम हो जाते लाचार
वह हो जाती है लाल
हम पीले हो जाते हैं
इस तरह
हमारे होली के दिन
रंगीले हो जाते हैं 
om purohit..

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