Sunday 11 March 2012


लोकतंत्र का उत्सव

मना रहे इस बार

जनता नेताओं से

खाए बैठी है खार ।

जनता के हाथ में

आ गया एक हथियार

जूते से हैं लैस सब

चलाने को तैयार ।

नेताजी अब सोच रहे

कैसे होगा बेडा पार

भरी सभा में डर रहे

क्या रखें अपने विचार ?

जनता से कर धोखा

और करके अत्याचार

आज खड़े हैं आ कर वो

जूते का पहने हार ।

त्रस्त हुई अब जनता

नेताओं पर कर विश्वास

पर नेताजी घूम रहे

ले कर जीत की आस ।

कोई नहीं है ऐसा नेता

जो सुने जनता की पुकार

जनता तो ठगी ही जायेगी

आए कोई भी सरकार 



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