Saturday 29 October 2011

::खतरों से सफलता::

सफलता पाने के लिए सोच समझ कर खतरे भी उठाने पड़ते है | खतरे उठाने का मतलब बेवकूफी भरा जुआ खेलना और गैरजिम्मेदारी बरतना नहीं होता | कई बार लोग गैरजिम्मेदारी पूर्ण और  ऊटपटाँग कामो को करना भी खतरा उठाना मान लेते है | इस वजह से जब बुरे नतीजे मिलते है तो वो अपनी किस्मत को दोष देते है |
हमें कौनसी चीज़ पीछे धकेल रही है ?
खतरे का मतलब अलग अलग इन्सान के लिए हो सकता है और यह ट्रेनिंग का नतीजा भी होता है | पहाड़ पर चढ़ना किसी प्रशिक्षित व्यक्ति और किसी नए सिखने वाले दोनों के लिए खतरनाक हो सकता है ,लेकिन प्रशिक्षित व्यक्ति के लिए इसे गैरजिम्मेदारी भरा खतरा नहीं मन जा सकता | जिम्मेदार ढंग से खतरे उठाने के लिए ज्ञान ,प्रशिक्षण ,ध्यानपूर्वक  अध्ययन .आत्मविश्वास और काबिलियत की जरुरत होती है | खतरा सामने होने पर ये चीज़े हमको उनका सामना करने की हिम्मत देती है | खतरा न उठाने वाला आदमी कोई गलती भी नहीं करता | लेकिन कोशिश नहीं करना ,कोशिश करके असफल होने से भी बड़ी गलती है |
कई लोगो में फैसला न पाने की आदत बन जाती है ,और यह छुआछुत बीमारी की तरह फैलती है | ऐसे लोग फैसले न ले पाने के कारण कई अवसरों से हाथ धो बैठते है  | खतरे उठाइए ;पर जुआ मत खेलिए |
खतरा उठाने वाले अपनी आंखे खुली करके आगे बढ़ते है ,जबकि जुआ खेलने वाले अँधेरे में तीर चलते है |
एक बार किसी ने एक किसान से पूछा "क्या तुमने इस मौसम में गेहू की फसल बोई है ?" किसान ने जवाब दिया "नहीं मुझे बारिश न होने का अंदेशा था " उस आदमी ने पूछा :क्या तुमने मक्के की फसल बोई ?'' किसान ने कहा ;नहीं मुझे दर था कि कीड़े मकोड़े खा लेंगे " तो उस आदमी ने पूछा ;आखिर तुमने बोया क्या है , किसान ने कहा ; कुछ नहीं , मैं कोई खतरा नहीं उठाना चाहता था "

हँसने में बेवकूफ समझे जाने का डर है |
रोने में जज्बाती समझे जाने का डर है |
लोगो से मिलने में नाता जुड़ जाने का डर है |
अपनी भावनाएं प्रकट करने में ,मन कि सच्ची बात खुल जाने का डर है |
अपने विचार ,अपने सपने लोगो से कहने में ,उनके चुरा लिए जाने का डर है |
किसी को प्रेम करने पर बदले में प्रेम न पाने का डर है |
जीने में डरने का डर है | 
आशा में निराशा का डर है |
कोशिश करने में असफलता का डर है |
लेकिन खतरे जरुर उठाएं जाने चाहिएं क्यों कि ,
ज़िन्दगी में खतरा न उठाना ही सबसे बड़ा खतरा है |
जो सख्स खतरा नहीं उठता वह न तो कुछ करता है ,
न कुछ पाता है ,और न कुछ बनता है |
वे जिंदगी में दुःख दर्द से तो बच सकते है ,लेकिन
वे सिखने ,महसूस करने ,बदलाव लेन ,आगे बढ़ने या प्रेम करने ,
और जीवन जीने को सीख नहीं पाते है |
अपने नज़रिए कि जंजीरों में बंधकर गुलाम बन जाते है |
और अपनी आज़ादी खो देते है |
सिर्फ खतरा उठाने वाला इन्सान  ही सही मायनो में आज़ाद है |

:- राजू सीरवी (राठौड़)

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